Krishna Janmashtami 2025: वैज्ञानिकों का कहना है कि इन अवशेषों की कार्बन डेटिंग उन्हें महाभारत काल यानी लगभग 3000 से 1500 ईसा पूर्व तक ले जाती है. यह खोज द्वारका की ऐतिहासिकता को मजबूती देती है.
Dwarka: गुजरात की धरती पर स्थित द्वारका न केवल आस्था का केंद्र है बल्कि इतिहास और रहस्य का संगम भी. मान्यता है कि भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़कर अरब सागर किनारे एक नई नगरी बसाई थी. यही नगरी आगे चलकर द्वारका कहलायी, जिसे उनके बैकुंठ गमन के बाद समुद्र ने अपने भीतर समा लिया.
धार्मिक ग्रंथों में है ये वर्णन
धार्मिक ग्रंथों में वर्णन है कि कृष्ण ने 18 अक्षौहिणी सेना (करीब 50 लाख सैनिकों) के लिए भव्य और समृद्ध द्वारका का निर्माण कराया था. आस्था के अनुसार यह सोने की नगरी थी, जिसे समुद्र महाराज ने भगवान की आज्ञा से सात दिनों में जलमग्न कर दिया. आज भी यह प्रश्न बना हुआ है कि क्या वास्तव में समुद्र के नीचे वही द्वापर कालीन द्वारका छिपी है?
जुटाए कई अहम साक्ष्य
पुरातत्व विभाग और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी की टीम ने समुद्र की गहराइयों में शोध कर कई अहम साक्ष्य जुटाए. गोताखोरों को समुद्र तल पर तराशे हुए पत्थर, दीवारों के अवशेष, स्तंभ और यहां तक कि प्राचीन मुद्राएं भी मिलीं. वैज्ञानिकों का कहना है कि इन अवशेषों की कार्बन डेटिंग उन्हें महाभारत काल यानी लगभग 3000 से 1500 ईसा पूर्व तक ले जाती है. यह खोज द्वारका की ऐतिहासिकता को मजबूती देती है.
आस्था और रहस्य का एक और अद्भुत पहलू है पंचकुई तीर्थ. द्वारकाधीश मंदिर के पास खारे समुद्र और गोमती नदी के बीच पांच कुएं मौजूद हैं, जिनका जल मीठा है. हर कुएं के पानी का स्वाद अलग है और इन्हें पांच पांडवों से जोड़ा जाता है. हैरानी की बात यह है कि समुद्र से घिरे इस क्षेत्र में इन कुओं का जल स्तर कभी बदलता नहीं और हमेशा पीने योग्य मीठा जल मिलता है.
क्या है श्रद्धालुओं की आस्था
श्रद्धालु मानते हैं कि यहीं भगवान कृष्ण अपने परिवार के साथ निवास करते थे और सुदामा से उनकी प्रसिद्ध भेंट भी बेट द्वारका में हुई थी. वहीं वैज्ञानिक इसे एक बड़ी जल-भौगोलिक पहेली मानते हैं, जिसका रहस्य अब तक पूरी तरह उजागर नहीं हो पाया.
आज भी द्वारकाधीश मंदिर का भव्य ध्वज दिन में पांच बार बदला जाता है और दूर-दूर से भक्त यहां शीश नवाने पहुंचते हैं. लेकिन समुद्र के भीतर बसी नगरी की खोज अब भी जारी है. सवाल यही है कि क्या यह वास्तव में कृष्ण की द्वारका है या किसी और सभ्यता का शहर?
एक ओर आस्था इसे ईश्वर की लीला मानती है तो दूसरी ओर विज्ञान इसे इतिहास का भूला हुआ अध्याय. लेकिन सच यही है कि समुद्र की गहराइयों में छिपी द्वारका आज भी करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था और शोधकर्ताओं की जिज्ञासा को एक साथ जीवित रखे हुए है.
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