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दिल्ली में कोरोना केस में आ रही कमी, लेकिन केजरीवाल सरकार से सवाल बाकी है?

जून के अंतिम सप्ताह में जहां दिल्ली में 1 दिन में 4000 नए करोना मरीज आ रहे थे, वहीं अब इनकी संख्या 1000 और 12 सौ तक रह गई है.

Updated on: 27 Jul 2020, 08:44 PM

नई दिल्ली :

बीते करीब 2 सप्ताह से राजधानी दिल्ली में कोरोना के नए मामलों में कमी आ रही है, लेकिन उसके बावजूद कोविड केयर के नाम पर हॉस्पिटल बेड, आईसीयू और वेंटिलेटर रिजर्व है. जिसके चलते अन्य बीमारियों के मरीज इलाज नहीं करा पा रही है.

जून के अंतिम सप्ताह में जहां दिल्ली में 1 दिन में 4000 नए करोना मरीज आ रहे थे, वहीं अब इनकी संख्या 1000 और 12 सौ तक रह गई है. यानी 1 दिन में नए मामलों में तीन चौथाई से ज्यादा की गिरावट, लेकिन अभी भी महामारी के नाम पर सीमित हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को कोविड-19 के लिए रिजर्व रखा गया है.

कितने बेड खाली और कितना रिजर्व यहां देखें-

  • कोरोना के लिए रिजर्व 15301 बेड में से 12468 बेड खाली
  • रिजर्व में रखे गए 1188 वेंटिलेटर में से 760 वेंटिलेटर खाली
  • कोविड-19 के नाम पर रीजन 80 पर्सेंट आईसीयू बेड खाली
  • बड़ी संख्या में कैंसर, हॉट ,लंग और टीबी के मरीजों का नहीं हो पा रहा है इलाज


ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि कब तक महामारी के नाम पर सीमित स्वास्थ्य संसाधनों को रिजर्व में रखा जाएगा. अगर आंकड़ों में कमी आ रही है तो क्या दिल्ली सरकार को अपना अध्यादेश चरणबद्ध तरीके से वापस नहीं लेना चाहिए ? क्या अन्य बीमारियों के मरीजों का इलाज खाली पड़े आईसीयू वार्ड और वेंटिलेटर में नहीं होना चाहिए ?

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अस्पताल के बेड में इलाज की मांग मानसून की सीजन में ज्यादा बढ़ जाती है. हालांकि अभी तक राजधानी दिल्ली में डेंगू के 22 और मलेरिया के 38 ही मामले सामने आए हैं. लेकिन बारिश बढ़ने के साथ इनकी संख्या में इजाफा संभव है. खासतौर पर तब जब डेंगू में पीड़ित व्यक्ति का खून पतला होता है और करोना से पीड़ित मरीज का खून मोटा लिहाजा, अगर डेंगू और मलेरिया में काबू पाने में हल्की सी भी चूक हुई तो महामारी के दौर में मृत्यु दर बढ़ सकती है.

आमतौर पर मानसून का सीजन आते ही एमसीडी और एनडीएमसी के कर्मचारी घर-घर दौरा करते थे ,कूलर से लेकर गमलों की जांच की जाती थी कि कहीं बारिश के पानी में मच्छर पैदा तो नहीं हो रहे. लेकिन कोरोना संक्रमण काल में यह सर्वे और जुर्माना भी संभव नहीं है. लिहाजा सिविक एजेंसी या कॉलोनियों में फागिंग और जागरूकता के अलावा कुछ कर भी नहीं पा रही.

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महामारी से लड़ना अकेली सरकार की बस की बात नहीं ,लिहाजा जिम्मेवारी सिविक एजेंसियों के साथ साथ हमारी भी बनती है. हमें खुद देखना होगा कि कई घर में ,गमलों में ,कूलर में ऐसा पानी तो नहीं जिसमें डेंगू मलेरिया के मच्छर का लारवा पैदा हो जाए. हमें यह भी तय करना होगा कि जब जब बारिश आए तो बारिश से बचाव के लिए भीड़ वाले स्थान को ना चुने और सरकार को भी आज नहीं तो कल यह फैसला लेना होगा कि कैसे सीमित स्वास्थ्य संसाधनों का प्रयोग महामारी के साथ-साथ अन्य बीमारियों से लड़ने में किया जा सकता है.