उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने हत्या के मामले में कभी सजा-ए-मौत पाने वाले एक व्यक्ति को संदेह का लाभ देते हुए शुक्रवार को बरी कर दिया. मध्यप्रदेश में 2008 में दर्ज हुए हत्या के मामले में इस व्यक्ति सहित तीन लोग को निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और 34 (साझा मंशा) के तहत मौत की सजा सुनाई थी.
बाद में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने 2012 में कहा कि इस मामले में मौत की सजा सही नहीं है और तीनों को उम्रकैद की सजा सुना दी. व्यक्ति ने 2013 में उच्चतम न्यायालय में उम्रकैद की सजा सुनाने वाले उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए कहा कि इस मामले में उसके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है.
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अपने 43 पन्ने के फैसले में न्यायमूर्ति एस.के.कौल और के.एम. जोसफ ने कहा कि व्यक्ति को इस आधार पर हत्या सहित अन्य अपराधों का दोषी करार दिया गया कि उसके पास से मृत व्यक्ति का मोबाइल फोन मिला था, लेकिन उस मोबाइल फोन की बरामदगी अपने-आप में ही संदेह के घेरे में है.
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पीठ ने कहा कि मामले के तथ्यों को देखते हुए अपीलकर्ता की सजा को बरकरार रखना सुरक्षित/सही नहीं होगा। अन्य कई टिप्पणियों के साथ पीठ ने व्यक्ति को हत्या के दोष से बरी कर दिया.
Source : Bhasha