दिल्ली की राजनीति में एमसीडी और मुख्यमंत्री की कुर्सी के बीच दिलचस्प संबंध रहा है. यहां परंपरा रही है कि जिस पार्टी का एमसीडी पर कब्जा रहता है, उस पार्टी का दिल्ली की सत्ता में कब्जा नहीं होता है. दिल्ली में लंबे समय से ये ट्रेंड बरकरार है.
सबसे हालिया उदाहरण 2022 से सामने आता है. आम आदमी पार्टी ने 15 साल से एमसीडी में काबिज भाजपा को हराकर दिल्ली नगरनिमग की कुर्सी पर कब्जा किया था. हालांकि, 2025 में दिल्ली में जब विधानसभा चुनाव हुआ तो पुराने ट्रेंड के अनुसार ही परिणाम आए. एमसीडी पर राज कर रही आप दिल्ली विधानसभा चुनाव हार गई. एमसीडी में मात खाई भाजपा ने दिल्ली विधानसभा में 27 साल बाद बहुमत हासिल कर लिया.
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दिल्ली में तीन पावर सेंटर
2022 में हुए एमसीडी चुनाव में आप ने 134 सीटें जीती तो वहीं भाजपा के खाते में 104 सीटें आई. कांग्रेस को महज नौ सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. एमसीडी की तीन सीटें निर्देलीय के खाते में गई है. बता दें, दिल्ली में तीन पावर सेंटर हैं, जिसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकार और एमसीडी है. एमसीडी सत्ता का सबसे अंतिम चरण है. एमसीडी पार्षदों को भी जनता चुनती है, जिस वजह से इसका भी काफी ज्यादा महत्व है.
2007 से दिल्ली नगरनिगम पर भाजपा का कब्जा
आम आदमी पार्टी एमसीडी में 2022 में सत्ता में आई. उसने भाजपा की 15 साल पुरानी सत्ता को खत्म किया. भाजपा 2007 से दिल्ली नगर निगम पर काबिज है. भाजपा ने साल 2013 और 2015 में हुए विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन भाजपा जीत नहीं पाई. भाजपा ने इसके बाद 2019 में भी दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन आठ सीटों पर भाजपा जीत दर्ज कर पाई. 15 साल की सत्ता के बाद भाजपा को एमसीडी में हार का मुंह देखना पड़ा लेकिन भाजपा ने दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीत लिया.
बता दें, दिल्ली विधानसभा के 2008 चुनावों में कांग्रेस की शीला दीक्षित ने 43 सीटें जीती थी और लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी की थी.
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