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कोविड से जंग के लिए DRDO ने उतारा एंटी-कोविड, कल से मरीजों को मिलेगी दवा

पिछले साल की तरह एक बार फिर से देश के कई राज्यों में कर्फ्यू लगा हुआ है. पिछले कुछ दिनों से कोरोना के मामलों में कमी देखी जा रही है. इस बीच डीआरडीओ ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिए एक और हथियार तैयार कर लिया है.

Updated on: 16 May 2021, 10:56 PM

highlights

  • कोविड से जंग के लिए DRDO ने उतारा एक और हथियार
  • डीआरडीओ ने लांच की एंटी-कोविड दवा, कल से मिलेगी
  • दिल्ली के कई अस्पतालों में 10 हजार डोज होगी उपलब्ध

नयी दिल्ली:

कोरोना की दूसरी लहर ने देश की कमर तोड़कर रख दी. पिछले साल की तरह एक बार फिर से देश के कई राज्यों में कर्फ्यू लगा हुआ है. पिछले कुछ दिनों से कोरोना के मामलों में कमी देखी जा रही है. इस बीच डीआरडीओ ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिए एक और हथियार तैयार कर लिया है. डीआरडीओ कल यानि कि 17 मई को एंटी-कोविड दवा, 2DG मार्केट में कोविड मरीजों के लिए उतार रही है. ये दवा सोमवार से ही मरीजों को मिलनी शुरू हो जाएगी. केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन कल सुबह 10:30 बजे इस एंटी-कोविड ड्रग के पहले बैच को लॉन्च करेंगे. दिल्ली के कई अस्पतालों में इस दवा की लगभग 10,000 डोज उपलब्ध हो जाएगी. 

ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीजीसीआई) ने इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज (आईएनएमएएस) द्वारा आपातकालीन उपयोग के लिए विकसित एक एंटी-कोविड दवा को मंजूरी दे दी है. रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को यह जानकारी दी. डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज (डीआरएल), हैदराबाद के सहयोग से रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की प्रयोगशाला आईएनएमएएस द्वारा दवा 2-डिऑक्सी-डी-ग्लूकोज (2-डीजी) का एक एंटी-कोविड-19 चिकित्सकीय अनुप्रयोग विकसित किया गया है.  नैदानिक परीक्षण परिणामों से पता चला है कि यह अणु अस्पताल में भर्ती रोगियों की तेजी से रिकवरी में मदद करता है एवं बाहर से ऑक्सीजन देने पर निर्भरता को कम करता है.

अधिक मात्रा में कोविड रोगियों के 2-डीजी के साथ इलाज से उनमें आरटी-पीसीआर नकारात्मक रूपांतरण देखा गया. यह दवा कोविड-19 से पीड़ित लोगों के लिए काफी फायदेमंद होगी. मंत्रालय ने शुक्रवार को एक बयान में कहा, महामारी के विरुद्ध तैयारी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के सिलसिले में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने 2-डीजी के एंटी-कोविड चिकित्सकीय अनुप्रयोग विकसित करने की पहल की. अप्रैल 2020 में महामारी की पहली लहर के दौरान, आईएनएमएएस-डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी), हैदराबाद की मदद से प्रयोगशाला परीक्षण किए और पाया कि यह दवा सार्स-सीओवी-2 वायरस के खिलाफ प्रभावी ढंग से काम करती है और वायरल बढ़ने को रोकती है.

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इन परिणामों के आधार पर ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑगेर्नाइजेशन (सीडीएससीओ) ने मई 2020 में कोविड-19 रोगियों में 2-डीजी के चरण-2 के नैदानिक परीक्षण की अनुमति दी. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने अपने उद्योग सहयोगी डीआरएल हैदराबाद के साथ मिलकर कोविड-19 मरीजों में दवा की सुरक्षा और प्रभावकारिता का परीक्षण करने के लिए नैदानिक परीक्षण शुरू किए. मई से अक्टूबर 2020 के दौरान किए गए दूसरे चरण के परीक्षणों में दवा कोविड-19 रोगियों में सुरक्षित पाई गई और उनकी रिकवरी में महत्वपूर्ण सुधार दिखाया गया. दूसरे चरण का संचालन छह अस्पतालों में किया गया और देश भर के 11 अस्पतालों में फेज 2 बी क्लीनिकल ट्रायल किया गया. फेज-2 में 110 मरीजों का ट्रायल किया गया.

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प्रभावकारिता की प्रवृत्तियों में 2-डीजी के साथ इलाज किए गए रोगियों ने विभिन्न एंडपॉइंट्स पर स्टैंडर्ड ऑफ केयर (एसओसी) की तुलना में तेजी से रोगसूचक उपचार प्रदर्शित किया. इस उपचार के दौरान रोगी के शरीर में विशिष्ट महत्वपूर्ण संकेतों से संबंधित मापदंड सामान्य बनाने में लगने वाले औसत समय में स्टैंडर्ड ऑफ केयर (एसओसी) की तुलना में एक बढ़िया अंतर (2.5 दिन का अंतर) देखा गया. सफल परिणामों के आधार पर डीसीजीआई ने नवंबर 2020 में चरण-3 नैदानिक परीक्षणों की अनुमति दी. दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु के 27 कोविड अस्पतालों में दिसंबर 2020 से मार्च 2021 के बीच 220 मरीजों पर फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल किया गया.

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तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल के विस्तृत आंकड़े डीसीजीआई को पेश किए गए. 2-डीजी के मामले में रोगियों के लक्षणों में काफी अधिक अनुपात में सुधार देखा गया और एसओसी की तुलना में तीसरे दिन तक रोगी पूरक ऑक्सीजन निर्भरता (42 प्रतिशत बनाम 31 प्रतिशत) से मुक्त हो गए जो ऑक्सीजन थेरेपी/निर्भरता से शीघ्र राहत का संकेत है.  इसी तरह का रुझान 65 साल से अधिक उम्र के मरीजों में देखा गया.