बंदरों को खाना खिलाने को दिल्ली हाईकोर्ट ने बताया हानिकारक, जानें क्यों की ऐसी टिप्पणी?

Delhi High Court: बंदरों को खाने खिलाने को लेकर शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की. उच्च न्यायालय ने कहा कि उनके द्वारा बंदरों को खाना खिलाने से उनका कोई फायदा नहीं होता.

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Suhel Khan
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Delhi High Court (File Photo)

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को बंदरों को खाना खिलाने को लेकर अहम टिप्पणी की. उच्च न्यायालय ने कहा कि, बंदलों का खाना खिलाना जानवरों को कल्याण और मानव कल्याण के लिए हानिकारक है. कोर्ट ने राजधानी दिल्ली में बंदरों की बढ़ती समस्या को लेकर सिविक एजेंसियों से कहा कि उन्हें लोगों को यह बताने की जरूरत है कि, लोगों का बंदरों को खाना खिलाने से उनका (बंदरों) कोई फायदा नहीं होता.

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'लोगों के खाना खिलाने से बंदरों को नहीं होता फायदा'

दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि भोजन जानवरों को कई तरीकों से नुकसान पहुंचाता है. उन्होंने कहा कि ऐसा करने से उनकी मनुष्यों पर निर्भरता बढ़ती है और जंगली जानवरों और मनुष्यों के बीच प्राकृतिक दूरी भी कम हो जाती है.

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'ऐसा करना जानवरों और मानव कल्याण के लिए हानिकारक'

दिल्ली हाईकोर्ट की मुख्य पीठ ने कहा कि अदालत मानती है कि दिल्ली के लोगों को अगर एहसास होगा कि जंगली जानवरों को खाना खिलाना जानवरों के कल्याण के साथ मानव कल्याण के लिए भी हानिकारक है, तो वह अपना व्यवहार बदल देंगे. पीठ ने कहा कि सिविक एजेंसियों को राजधानी के लोगों को यह बताने के लिए लगातार एक जागरुकता अभियान चलाना चाहिए.

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कोर्ट ने कहा कि इस अभियान से लोगों को ये बताया जा सकेगा कि उनके भोजन से बंदरों को कोई फायदा नहीं हो रहा है. इसके साथ ही कचरा प्रबंधन पर पीठ ने कहा कि सार्वजनिक पार्कों, फूड हब, ढाबा और कैंटीन आदि में खुले में फैला कूड़ा बंदरों की आबादी को आकर्षित करता है.

आसपास कूड़ा न फैलाएं लोग- दिल्ली हाईकोर्ट

इसके साथ ही पीठ ने कहा कि अगर दिल्ली के नागरिक सुरक्षित वातावरण में रहना चाहते हैं, तो उन्हें अपने आसपास कूड़ा नहीं फैलाना होगा. कोर्ट ने कहा कि इस पहलू को भी जन जागरूकता अभियान में उजागर करने की जरूरत है. इसके साथ ही अदालत ने दिल्ली नगर निगम (MCD) और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (NDMC) को राष्ट्रीय राजधानी में बंदरों के खतरे से निपटने के लिए एक कार्यक्रम तैयार करने और लागू करने का निर्देश दिया. बता दें कि कोर्ट ने ये निर्देश साल 2015 में दो गैर सरकारी संगठनों- न्याय भूमि और द सोसाइटी फॉर पब्लिक काज द्वारा दायर की गई दो जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दिया. इस मामले की अगली सुनवाई 25 अक्टूबर को होगी.

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