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NCT बिल के खिलाफ अरविंद केजरीवाल को मिला ममता बनर्जी का साथ 

अरविंद केजरीवाल को इस बिल पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भी समर्थन मिला है. इस पर केजरीवाल ने ममता बनर्जी को ट्वीट कर आभार जताया.

Updated on: 18 Mar 2021, 02:22 PM

highlights

  • केंद्र सरकार ने लोकसभा में पेश किया राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन विधेयक
  • 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बैंच भी सुना चुकी है फैसला
  • दिल्ली सरकार कानूनी पहलुओं पर ले रही विशेषज्ञों की राय

नई दिल्ली:

दिल्ली की केजरीवाल सरकार और केंद्र एक बार फिर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन विधेयक को लेकर आमने-सामने आ गए हैं. इस बिल के विरोध में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को जंतर मंतर पर प्रदर्शन भी किया. अरविंद केजरीवाल को इस बिल पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भी समर्थन मिला है. इस पर केजरीवाल ने ममता बनर्जी को ट्वीट कर आभार जताया. केजरीवाल ने कहा कि जो भी भारत और लोकतंत्र का समर्थन करता है वह इस बिल का विरोध जरूर करेगा. केजरीवाल में ममता बनर्जी के स्वास्थ्य और बंगाल चुनाव में उनकी जीत की भी कामना की. 

दरअसल सोमवार को केंद्र सरकार ने लोकसभा में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन विधेयक पेश किया. केंद्र की इस बिल के बहाने उपराज्यपाल और मजबूत करने की तैयारी है. अगर बिल पास होता है कि दिल्ली सरकार को कोई भी फैसला लेने से पहले उपराज्यपाल से इजाजत लेनी होगी. बिल के पास होने के बाद उपराज्यपाल की ताकत और बढ़ जाएगी. ऐसे में उपराज्यपाल की भूमिका और मजूबत होगी. इसी को लेकर दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने केंद्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. 

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केंद्र सरकार के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (संशोधन) अधिनियम-2021 को लेकर टकराव शुरू हो गया है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आज केंद्र सरकार के खिलाफ जंतर-मंतर पर विरोध-प्रदर्शन किया. आम आदमी पार्टी के दिल्ली संयोजक गोपाल राय ने कहा कि संसद में प्रस्तुत NCT बिल के विरोध में विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है. दूसरी तरफ कांग्रेस भी बिल के विरोध में है. आम आदमी पार्टी का कहना है कि इस बिल के बहाने केंद्र सरकार दिल्ली सरकार की शक्तियों को कम करने की प्रयास कर रही है. गोपाल राय ने कहा कि केंद्र सरकार दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियों को सीमित करने का प्रयास कर रही है और उसे अधिकारहीन करना चाहती है. उन्होंने कहा, 'ऐसा लगता है कि दिल्ली सरकार की देशभर में बढ़ती लोकप्रियता केंद्र सरकार की आंखों में खटक रही है.' राय ने दावा किया कि बीजेपी की केंद्र सरकार एक चुनी हुई सरकार की शक्तियों को सीमित करने की साजिश रच रही है और यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने की कोशिश है.

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यह पहला मौका नहीं है जब दिल्ली की केजरीवाल सरकार और केंद्र अपने अधिकारों को लेकर आमने-सामने हों. इससे पहले भी कई मौके सामने आ चुके हैं जब दोनों के बीच टकराव की स्थिति बन चुकी है. दिल्ली लॉकडाउन के दौरान अस्पतालों में कोरोना मरीजों के लिए बेड रिजर्व करने की मांग को लेकर भी दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव की स्थिति बनी थी. 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बैंच और 2019 में सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बैंच का फैसला आने के बाद लगा था कि ये मसला अब सुलझ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने उन फैसलों में राज्य सरकार और उपराज्यपाल के अधिकारों को परिभाषित कर दिया था. लेकिन अब एक बार फिर ये मसला गर्माता हुआ दिखाई दे रहा है. 

इस बिल में क्या है?
मनीष सिसोदिया के मुताबिक विधेयक में कहा गया है कि सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा और हर काम के लिए दिल्ली सरकार को पहले उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी. ऐसे में चुनी हुई सरकार की जरूरत ही नहीं है. नए विधेयक के मुताबिक दिल्ली सरकार को अपने हर फैसले को लागू करवाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी. यानी की दिल्ली में निर्वाचित सरकार के 'सुपर बॉस' उपराज्यपाल होंगे. दिल्ली सरकार अब इस मामले के कानूनी पहलुओं को देखने में जुट गई है. उसके मुताबिक इस विधेयक से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने की कोशिश की जा रही है और इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की संभावनाएं भी तलाशी जा रही हैं.