दिल्ली विधानसभा में पेश हुई एक और CAG रिपोर्ट, दिल्ली के निर्माण श्रमिकों के कल्याण में भारी लापरवाही उजागर

भारत की राजधानी दिल्ली में निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए बनाए गए सिस्टम की जमीनी हकीकत को लेकर दिल्ली विधानसभा मेँ मगंलवार को मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता नें CAG रिपोर्ट सदन पटल पर रखी.

भारत की राजधानी दिल्ली में निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए बनाए गए सिस्टम की जमीनी हकीकत को लेकर दिल्ली विधानसभा मेँ मगंलवार को मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता नें CAG रिपोर्ट सदन पटल पर रखी.

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Harish
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सीएम रेखा गुप्ता Photograph: (SM)

दिल्ली विधानसभा में पेश हुई नई CAG रिपोर्ट ने राजधानी में निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए बनाई गई योजनाओं की जमीनी सच्चाई उजागर कर दी है. मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता द्वारा सदन में रखी गई इस रिपोर्ट में बताया गया कि भारी-भरकम फंड होने के बावजूद जरूरतमंद श्रमिकों तक मदद पहुंच ही नहीं पा रही है.

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रजिस्ट्रेशन के आंकड़ों में भारी गड़बड़ी

रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली सरकार के पास पंजीकृत निर्माण श्रमिकों का कोई स्पष्ट और सटीक डेटा नहीं है. कुल 6.96 लाख पंजीकृत श्रमिकों में से केवल 1.98 लाख का ही पूरा रिकॉर्ड मौजूद है. कहीं एक नाम पर दो तस्वीरें हैं, तो कहीं तस्वीर में चेहरा ही साफ नहीं दिख रहा. 

नवीनीकरण की हालत सबसे खराब

जहां पूरे देश में रजिस्ट्रेशन नवीनीकरण का औसत 74% है, वहीं दिल्ली में यह सिर्फ 7.3% है. इसका मतलब साफ है कि ज्यादातर श्रमिक सिस्टम से बाहर हो रहे हैं क्योंकि उनका डेटा अपडेट नहीं हो पा रहा.

खर्च नहीं हुआ फंड

मार्च 2023 तक दिल्ली भवन और निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड के पास 3579 करोड़ का सेस फंड था, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा खर्च नहीं किया गया. 2019 से 2023 के बीच जो खर्च हुआ, उसका 87% सिर्फ कोविड और प्रदूषण से जुड़ी राहत पर किया गया जबकि बोर्ड की असली जिम्मेदारी थी श्रमिकों के जीवन में सुधार लाना.

पंजीकरण और सेस कलेक्शन में भी अनियमितताएं

CAG रिपोर्ट में बताया गया कि 97 निजी संस्थान जिन्होंने सेस जमा किया था, वे खुद बोर्ड में पंजीकृत ही नहीं थे. दिल्ली फायर सर्विस की वेबसाइट पर सूचीबद्ध 25 संस्थान भी पंजीकरण से बाहर थे. इसके अलावा, सेस कलेक्शन में भी ₹204.95 करोड़ का फर्क सामने आया यानी एक ही डेटा जिला कार्यालय और बोर्ड में अलग-अलग दर्ज है. एमसीडी ने ₹142 करोड़ समय पर जमा नहीं किया और 283 चेक बाउंस हुए, जिनकी कुल राशि ₹9.58 करोड़ थी. 

योजनाएं कागजों में सिमटी रहीं

बोर्ड ने 17 योजनाएं घोषित की थीं, लेकिन सिर्फ 12 पर ही कुछ काम हुआ. गर्भपात सहायता, उपकरण खरीद और मकान ऋण जैसी योजनाओं पर कोई खर्च नहीं हुआ. बच्चों की शिक्षा के लिए जो राशि 2018-19 और 2019-20 में जारी होनी चाहिए थी, वह मार्च 2022 में दी गई. सबसे हैरान करने वाली बात ये रही कि प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना के तहत किसी भी श्रमिक को लाभ नहीं मिल सका.

श्रमिकों को जानकारी ही नहीं

CAG द्वारा कराए गए सर्वे में 300 श्रमिकों से बातचीत की गई. इसमें 72% ने बताया कि उन्हें किसी योजना की जानकारी नहीं है. 21% को थोड़ी-बहुत जानकारी थी और कोई भी श्रमिक किसी जागरूकता शिविर में शामिल नहीं हुआ था. यानी न जानकारी पहुंचाई गई और न ही जागरूकता फैलाने का कोई ठोस प्रयास हुआ.

इस रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि दिल्ली में निर्माण श्रमिकों के लिए बनी योजनाएं सिर्फ कागजों पर चल रही हैं. जरूरतमंद श्रमिक अभी भी उन अधिकारों से वंचित हैं जो उन्हें मिलने चाहिए थे. रिपोर्ट में जिन संस्थानों और विभागों की लापरवाहियों का जिक्र है, उन्हें सुधारने की जरूरत है ताकि योजनाओं का असली लाभ जमीन पर दिखे. 

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