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प्रस्तावित बिजली संशोधन विधेयक गरीब तबकों, किसानों के हित में नहीं : भूपेश बघेल

बिजली भूपेशछत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केन्द्र सरकार के प्रस्तावित विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को समाज के गरीब तबकों और किसानों के लिए अहितकारी बताते हुए इस संबंध में केन्द्रीय विद्युत राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) आरके सिंह को पत्र लिखकर इसे स्थगित रखने का आग्रह किया है.

Updated on: 08 Jun 2020, 03:37 PM

रायपुर:

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केन्द्र सरकार के प्रस्तावित विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को समाज के गरीब तबकों और किसानों के लिए अहितकारी बताते हुए इस संबंध में केन्द्रीय विद्युत राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) आरके सिंह को पत्र लिखकर इसे स्थगित रखने का आग्रह किया है. राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों ने सोमवार को यहां बताया कि मुख्यमंत्री बघेल ने केन्द्रीय विद्युत मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए संशोधन बिल को लागू करने से पहले सभी राज्य सरकारों से इस पर विचार-विमर्श करने तथा समाज के गरीब तबकों एवं जन सामान्य के हितों का ध्यान रखने की बात कही है.

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बघेल ने केन्द्रीय मंत्री को प्रेषित अपने पत्र में कहा है कि इस संशोधन बिल में क्रास सब्सिडी का प्रावधान किसानों और गरीबों के हित में नहीं है. समाज के गरीब तबके के लोगों और किसानों को विद्युत सब्सिडी दिए जाने का वर्तमान प्रावधान जांचा परखा और समय की जरूरत के अनुरूप है. उन्होंने कहा कि किसानों को विद्युत पर दी जाने वाली सब्सिडी यदि जारी नहीं रखी गई तब किसानों के सामने फसलों की सिंचाई को लेकर संकट खड़ा हो जाएगा. इससे खाद्यान्न उत्पादन प्रभावित होगा और देश के समक्ष संकट खड़ा हो जाएगा.

मुख्यमंत्री ने कहा है कि किसानों और मजदूरों की मेहनत का सम्मान होना चाहिए. जिन्होंने अपनी मेहनत से देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया है. उन्होंने कहा है कि समाज के गरीब वर्ग के लोगों और किसानों को आत्मनिर्भर और सक्षम बनाने के लिए उन्हें रियायत दिया जाना जरूरी है.

उन्होंने संशोधित बिल में क्रास सब्सिडी को समिति किए जाने के प्रावधान को अव्यवहारिक बताया है. भूपेश बघेल ने कहा है कि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर सिस्टम जो वर्तमान में लागू है, वह सही है. इसमें बदलाव करने से समाज के गरीब तबके के लोग और लघु और सीमांत कृषक लाभ से वंचित हो जाएंगे.

मुख्यमंत्री ने कहा है कि खेती-किसानी के मौसम में प्रति माह फसलों की सिंचाई के लिए यदि कोई किसान एक हजार यूनिट विद्युत की खपत करता है तब उसे सात से आठ हजार रूपए के बिल का भुगतान करना होगा, जो उसके लिए बेहद कष्टकारी और असंभव होगा.

उन्होंने कहा है कि यह संशोधन बिल वातानुकूलित कमरों में बैठ कर तैयार करने वाले उच्च वर्ग के लोगों और सलाहकारों के अनुकूल हो सकता है लेकिन यह जमीन सच्चाई से बिलकुल परे है. इस संशोधन बिल को लागू करने से देश के समक्ष कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होंगी. इससे गरीब, किसान और विद्युत कम्पनियों और आम लोगों को नुकसान होगा. रियायती दर पर किसानों को बिजली न मिलने से फसल सिंचाई प्रभावित होगी. खाद्यान्न उत्पादकता घटेगी जिसके चलते देश के समक्ष खाद्यान्न का संकट पैदा हो जाएगा.

मुख्यमंत्री ने कहा है कि इस संशोधन बिल के माध्यम से राज्य सरकारों के अधिकारों की कटौती तथा राज्य विद्युत नियामक आयोग की नियुक्तियों के अधिकारों को केन्द्र सरकार के अधीन किया जाना संघीय ढांचे की व्यवस्था के विपरीत है. यह बिल राज्य विद्युत नियामक आयोग के गठन के संबंध में राज्यों को सिर्फ सलाह देने का प्रावधान देता है. नियुक्ति के संबंध में राज्य की सहमति आवश्यक नहीं है. यह प्रावधान राज्य सरकार की शक्तियों का स्पष्ट अतिक्रमण है.

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अधिकारियों ने बताया कि मुख्यमंत्री बघेल ने विद्युत वितरण प्रणाली को आम जनता की जीवन रेखा बताते हुए कहा है कि इसे निजी कम्पनियों का सौंपा जाना किसी भी मामले में उचित नहीं होगा. यह संशोधन विधेयक पूंजीवाद को बढ़ावा देने वाला और निजी कम्पनियों को इलेट्रिसिटी बोर्ड को कब्जा दिलाने वाला है.

मुख्यमंत्री ने कहा है कि प्रस्तावित संशोधन केंद्र सरकार को नवीकरणीय और पनबिजली खरीद दायित्व को संरक्षित करने के लिए भी शक्ति प्रदान करता है. देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग संसाधन हैं. मुख्यमंत्री बघेल ने कहा है कि इसे देखते हुए पूरे देश के लिए इसको लागू किया जाना उचित नहीं होगा.