बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में एक रेप आरोपी को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की कि 14 साल की नाबालिग लड़की को अपने कार्यों की समझ थी. कोर्ट के इस फैसले ने पूरे देश में बहस छेड़ दी है. महिला संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है और इसे भारतीय कानूनों की भावना के खिलाफ बताया है.
क्या है पूरा मामला?
यह मामला महाराष्ट्र के एक इलाके का है, जहां एक 14 वर्षीय नाबालिग लड़की ने रेप का आरोप लगाया था. लड़की ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया था. मामले की सुनवाई के दौरान आरोपी ने जमानत की याचिका दायर की थी.
आरोपी की ओर से कोर्ट में यह दलील दी गई कि पीड़िता ने सहमति से संबंध बनाए थे और वह अपने फैसले खुद लेने में सक्षम थी. इस पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने आरोपी को जमानत दे दी और यह कहा कि 14 वर्षीय लड़की को अपने कार्यों की पूरी समझ थी, इसलिए इसे जबरदस्ती का मामला नहीं माना जा सकता.
क्यों विवादों में है कोर्ट का फैसला?
इस फैसले पर कई कानूनी विशेषज्ञ और महिला अधिकार कार्यकर्ता सवाल उठा रहे हैं. भारतीय कानून के अनुसार, 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ किसी भी तरह के यौन संबंध को सहमति मानने का सवाल ही नहीं उठता.
POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) एक्ट के तहत 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ सहमति से बनाया गया संबंध भी रेप की श्रेणी में आता है. ऐसे में कोर्ट का यह कहना कि पीड़िता अपने फैसले खुद लेने में सक्षम थी, एक गंभीर सवाल खड़ा करता है.
सामाजिक और कानूनी प्रतिक्रिया
इस फैसले के बाद महिला संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं में आक्रोश देखने को मिल रहा है. राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि यह फैसला नाबालिग लड़कियों की सुरक्षा को कमजोर कर सकता है. वकीलों का कहना है कि यह फैसला एक खतरनाक उदाहरण पेश करता है और इससे भविष्य में नाबालिगों के मामलों में न्याय पाने की प्रक्रिया और जटिल हो सकती है.
सोशल मीडिया पर लोगों ने भी इस फैसले की निंदा की और न्यायपालिका से इस पर पुनर्विचार करने की मांग की.
प्रशासन की प्रतिक्रिया
मामले की गंभीरता को देखते हुए कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांग है कि इस फैसले को चुनौती दी जाए. इस संबंध में उच्चतम न्यायालय में अपील की संभावना भी जताई जा रही है.
क्या होगा आगे?
बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले ने कानूनी और सामाजिक स्तर पर नई बहस छेड़ दी है. अगर इस फैसले को चुनौती दी जाती है, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या निर्णय लेता है.
यह मामला भारतीय न्याय प्रणाली और समाज के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया है.सवाल यह उठता है कि क्या 14 साल की नाबालिग लड़की को अपने फैसले खुद लेने में सक्षम माना जा सकता है? क्या इस फैसले से रेप पीड़िताओं को न्याय मिलने में बाधा आएगी? इन सवालों के जवाब आने वाले समय में मिलेंगे, लेकिन फिलहाल यह मामला चर्चा का केंद्र बना हुआ है.
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