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फाइल फोटो( Photo Credit : फाइल फोटो)
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बिहार की राजनीति में सवर्ण अभी हॉट केक बने हुए हैं. सभी राजनीतिक दल सवर्ण वोटरों को रिझाने में लगें हैं.
फाइल फोटो( Photo Credit : फाइल फोटो)
बिहार की राजनीति में सवर्ण अभी हॉट केक बने हुए हैं. सभी राजनीतिक दल सवर्ण वोटरों को रिझाने में लगें हैं. यही कारण है कि कोई राजनीतिक दल अपना प्रदेश अध्यक्ष बना रहा है तो कोई राष्ट्रीय अध्यक्ष. बिहार की राजनीति में 15 वर्षों तक शासन करने वाली राजद का मुख्य वोट बैंक माई (मुस्लिम-यादव) था. अभी भी पार्टी की राजनीति इसी समीकरण के इर्द-गिर्द घूमती दिख रही थी, लेकिन अब यह पार्टी अपने आप को A TO Z की पार्टी बता रही है. खुद तेजस्वी यादव कई बार सार्वजनिक मंच से राजद को ए टू जेड की पार्टी बता चुके हैं. अब प्रदेश राजद की कमान जगदानंद सिंह के हाथों है. इसका कारण स्वर्ण वोटरों को साधने के रूप में देखा जा रहा है. पार्टी के इस निर्णय के बारे में पार्टी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी का कहना है कि अब बिहार में जाति के नाम पर नहीं विकास के नाम पर राजनीति होती है. उनकी पार्टी सभी जाति धर्म को समान रूप से देखती है और उसी की राजनीति करती है
जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ललन सिंह की ताजपोशी होगी. पिछड़ों एवं अति पिछड़ों की राजनीति करने वाले जदयू की भी नजर सवर्ण वोटरों पर है. यही कारण है कि ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर भूमिहार वोटरों को अपनी तरफ आकर्षित करने में जदयू जुटी है, लेकिन जदयू के प्रवक्ता राजीव रंजन का कहना है कि ललन सिंह जीपी आंदोलन की उपज है और पार्टी में उन्होंने शुरुआती दिनों से काम किया है. यही कारण है कि ऐसे समर्पित कार्यकर्ता को राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान दी गई है. वैसे जदयू प्रवक्ता का यह भी कहना है सवर्ण समाज की राजनीति में विशेष स्थान है इसे नकारा नहीं जा सकता.
महागठबंधन के तीनों प्रमुख घटक दल राजद एवं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष एवं जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में सवर्ण नेता के हाथ मे कमान देने पर बीजेपी ने चुटकी ली. विधानसभा में विरोधी दल के नेता विजय सिन्हा ने कहा कि ललन सिंह और अखिलेश सिंह परशुराम के वंशज हैं. भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई तेज करें. उन्होंने अखिलेश सिंह पर तंज कसते हुए कहा कि लालू प्रसाद यादव की कृपा से उनके प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. सवर्ण समाज से आते हैं. अब देखना है कि ये लोग भ्रष्टाचार को खत्म की लड़ाई कैसे आगे ले जाते हैं.
90 के दशक से अब तक बिहार की राजनीति में पिछड़े, दलित एवं मुस्लिम को साधने की राजनीति होती रही है. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि बिहार के बोचहा उपचुनाव के बाद बिहार में सवर्ण वोटरों को साधने की कोशिश शुरू हुई. क्योंकि भूमिहार बहुल बोचहा में जिस तरह से भूमिहार वोटरों ने अपने वोट का एहसास करवाया इसके बाद से ही सभी राजनीतिक दलों में सवर्ण वोटरों को अपने पाले में लाने की कोशिश शुरू की गई. यही कारण है कि जदयू ,राजद, कॉन्ग्रेस और भाजपा सभी दलों में समर नेताओं को प्रमुख पदों पर बैठाने की होड़ लगी है.
बोचहा, मोकामा और कुढ़नी विधानसभा का उपचुनाव में सवर्णों के रुख के बाद सभी राजनीतिक दल उसे साधने में जुट गई है. बिहार की सियासत में एक बार फिर सवर्ण को अपनी और आकर्षित करने का खेल चल रहा है. लगभग सभी प्रमुख दल प्राथमिकता के साथ इसे स्वीकारने लगे हैं. अब देखना होगा इन सवर्ण नेताओं के भरोसे वे मतदाताओं के दिल को जीतने में कितने सफल हो पाते हैं.
रिपोर्ट : आदित्य झा
Source : News State Bihar Jharkhand