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उपेंद्र कुशवाहा Photograph: (NN)
बिहार के राजनीति में उपेंद्र कुशवाहा का नाम लंबे समय से चर्चित रहा है. 6 फरवरी 1960 को वैशाली जिले में जन्मे कुशवाहा का असली नाम उप्रेंद कुमार सिंह था, लेकिन बाद में उन्होंने जातीय पहचान को मजबूत करने के लिए ‘कुशवाहा’ अपनाया. उनके माता-पिता मुनेश्वर सिंह और मुनेश्वरी देवी थे. शिक्षा के क्षेत्र में कुशवाहा ने पटना साइंस कॉलेज से अध्ययन किया और बाद में बी. आर. अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर से राजनीति शास्त्र में एम.ए. की डिग्री हासिल की. शुरुआती दौर में वह समता कॉलेज में राजनीति विभाग में लेक्चरर भी रहे.
कब से शुरू हुई राजनीतिक जीवन?
राजनीतिक जीवन की शुरुआत उन्होंने 1985 में युवा लोक दल से की, जहां वह राज्य महासचिव बने. इसके बाद 1988 से 1993 तक वह युवा जनता दल के राष्ट्रीय महासचिव रहे. 1990 और 2000 के दशक में उन्होंने समता पार्टी में संगठनात्मक भूमिकाएं निभाईं. उनका राजनीतिक नजरिया समाजवादी विचारधारा और कर्पूरी ठाकुर एवं जयप्रकाश नारायण के आदर्शों से प्रभावित रहा.
संसदीय राजनीति में कब मारी एंट्री?
संसदीय राजनीति में कदम रखने के बाद कुशवाहा ने 2000 में बिहार विधानसभा चुनाव में जंदाहा सीट से जीत हासिल की. इस सीट से उन्होंने 2005 तक विधानसभा सदस्य के रूप में कार्य किया. मार्च 2004 में जब जदयू का प्रभाव बढ़ा, तब वह बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता बने.
2010 में वह बिहार से राज्यसभा में पहुंचे. 2014 के लोकसभा चुनाव में काराकाट सीट से एनडीए के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की और 26 मई 2014 से 10 दिसंबर 2018 तक भारत सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री रहे. 2019 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी उन्होंने राज्य राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई और अगस्त 2024 में बिहार से राज्यसभा के लिए निर्विरोध चुने गए.
राष्ट्रीय समता पार्टी की नींव रखी
कुशवाहा की राजनीतिक यात्रा हमेशा गठबंधन और पार्टी निर्माण के दौर से भरी रही है. 2007 में जदयू से निष्कासित होने के बाद उन्होंने फरवरी 2009 में राष्ट्रीय समता पार्टी (RSP) की स्थापना की. नवंबर 2009 में इसे फिर जदयू में मिला लिया गया. जनवरी 2013 में उन्होंने जदयू से इस्तीफा दे दिया और मार्च 2013 में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) का गठन किया.
पार्टी की विलय कर ली
RLSP ने 2014 में एनडीए में शामिल होकर राष्ट्रीय राजनीति में पहचान बनाई, और कुशवाहा मंत्री बने. दिसंबर 2018 में उन्होंने एनडीए से इस्तीफा दे दिया और 2019 में पार्टी को यूपीए/महागठबंधन से जोड़ा. 2021 में RLSP फिर से जदयू में मिल गई, लेकिन फरवरी 2023 में कुशवाहा ने फिर से जदयू से इस्तीफा दे कर राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLJD/RLM) की स्थापना की.
केंद्र में भी रहे चुके हैं मंत्री
कुशवाहा का राजनीतिक नजरिया मुख्य रूप से ओबीसी, विशेष रूप से कुशवाहा/कोइरी समुदाय के अधिकार और प्रतिनिधित्व पर केंद्रित रहा है. मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार, केंद्रीय विद्यालयों की संख्या बढ़ाने और उच्च शिक्षा सुधारों की दिशा में कदम उठाए. वह निजी क्षेत्र में ओबीसी आरक्षण और अत्यंत पिछड़े जातियों को राजनीतिक प्रक्रिया में अधिक स्थान देने के पक्षधर रहे हैं.
कई बार अवसरवादी होने का लगा आरोप
हालांकि उनके लगातार पार्टी बदलने और गठबंधन बदलने की प्रवृत्ति ने आलोचना को जन्म दिया कि वे अवसरवादी हैं. 2019 और 2020 के चुनावों में RLSP और बाद में RLJD/RLM को बड़ी सफलता नहीं मिली, जिससे उनकी राजनीतिक पकड़ कमजोर हुई. विश्लेषकों का मानना है कि उनकी लोकप्रियता मुख्यत कुशवाहा/कोइरी समुदाय तक सीमित है और व्यापक राजनीतिक आधार का विस्तार करना उनके लिए चुनौती रहा.
उपेंद्र कुशवाहा की राजनीतिक यात्रा बिहार के जातीय राजनीति और गठबंधन राजनीति का आईना है. एक ओर वह जातीय समुदायों के अधिकारों और प्रतिनिधित्व के लिए संघर्ष करते रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी लगातार पार्टी शिफ्टिंग ने उन्हें कभी अवसरवादी, कभी प्रभावशाली नेता के रूप में दिखाया. वर्तमान में राष्ट्रीय लोक मोर्चा के माध्यम से वह बिहार में अपनी राजनीतिक पहचान को फिर से मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं.
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