VKSU आरा: भोजपुरी विभागाध्यक्ष की गांधीगिरी, खुद लगाई झाड़ू; शौचालय किया साफ
वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के भोजपुरी विभाग से जुड़े समस्याओं की विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा अनदेखी किये जाने के बाद अंततः गांधीवादी विरोध का रुख अपनाते हुए भोजपुरी विभाग के हेड प्रो डॉ दिवाकर पांडेय ने...
highlights
- प्रोफेसर ने दिखाई गांधीगिरी
- खुद ही झाड़ू लगाकर दर्ज कराया विरोध
- प्रशासन की अनदेखी का लगाया आरोप
आरा:
वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के भोजपुरी विभाग से जुड़े समस्याओं की विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा अनदेखी किये जाने के बाद अंततः गांधीवादी विरोध का रुख अपनाते हुए भोजपुरी विभाग के हेड प्रो डॉ दिवाकर पांडेय ने भोजपुरी भवन के भूतल स्थित कमरों तथा शौचालय की साफ सफाई खुद से की. भोजपुरी भवन की साफ-सफाई के लिए बार-बार सफाई कर्मचारी की मांग की जा रही थी. मांग को अनसुना करने पर सोमवार को भोजुपरी विभाग के हेड प्रो डॉ दिवाकर पांडेय खुद ही गांधीवादी विरोध का रुख अपनाते हुए भूतल स्थित कमरों तथा शौचालय की साफ सफाई करने लगे.
विश्वविद्यालय प्रशासन ने की अनदेखी
प्रो डॉ दिवाकर पांडेय ने कहा कि भोजपुरी भवन के भूतल की सफाई और रखरखाव के लिए सफाई कर्मचारी कार्यरत था. मगर उसे कुछ सप्ताह पहले छात्र कल्याण संकायाध्यक्ष के कार्यालय में बिना किसी कार्यालयी आदेश के निर्गत किये ही मौखिक रूप से बुला लिया गया. इधर कई दिनों से भोजपुरी विभाग और पूरे भूतल पर कई इंच मोटी धूल की परत जम गई थी. सबसे खराब स्थिति शौचालय तथा वाश बेसिन की थी जो दुर्गंध से व्याप्त था. विभागाध्यक्ष प्रो पांडेय ने कुलसचिव से मिलकर एक सफाई कर्मचारी की मांग की थी, जिस पर कुलसचिव ने उसे तत्काल मुहैय्या कराने का आश्वासन किया था.
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सांस लेना हो रहा था मुश्किल
दिवाकर पांडेय ने बताया कि कोई कर्मचारी प्रशासन ने नहीं भेजा और दुर्गंध तथा धूल के बीच विभाग में बैठना असह्य योग्य हो गया था जिससे बीमारी की आशंका थी. अंततः मुझे झाड़ू उठाकर खुद सफाई करनी पड़ी. उन्होंने बताया कि ग्रीष्मावकाश के बाद एक जुलाई से कक्षाएं भी शुरू होने वाली है. मगर विश्वविद्यालय प्रशासन ने किसी भवन या कमरे की सैनिटाइजेशन तो दूर साधारण ढंग से भी सफाई नहीं की है. जब तक विवि प्रशासन किसी सफाई कर्मचारी को नहीं भेजता, वे प्रतिदिन स्वयं पहले साफ सफाई करेंगे, उसके बाद छात्रों का पठन पाठन होगा. दूसरी तरफ इस प्रकरण के बाद भोजपुरी आंदोलन से जुड़े संस्कृतिकर्मियों ने गहरा रोष व्यक्त किया हैं. उनका कहना है कि विश्वविद्याल प्रशासन भोजपुरी के प्रति उपेक्षा का व्यवहार कर रहा है.
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