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Chhath Puja 2023: बेलाउर सूर्य मंदिर में पूरी होती है सभी भक्तों की मनोकामना, छठ पूजा पर मिलता है विशेष फल

बिहार-झारखंड में महापर्व छठ पूजा को राज्य का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है. मध्य बिहार के प्रसिद्ध सूर्य तीर्थ स्थलों में से एक बेलाउर सूर्य मंदिर में हर साल 50 हजार से अधिक बिहारी और प्रवासी छठव्रती श्रद्धालु सूर्य को अर्घ्य देने आते हैं.

Updated on: 16 Nov 2023, 06:46 PM

highlights

  • बेलाउर सूर्य मंदिर में सबकी मनोकामना होती है पूरी
  • छठ पर विदेश से भी आते हैं हजारों श्रद्धालु
  • छठ पर विदेश से भी आते हैं हजारों श्रद्धालु

Arrah:

बिहार-झारखंड में महापर्व छठ पूजा को राज्य का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है. मध्य बिहार के प्रसिद्ध सूर्य तीर्थ स्थलों में से एक बेलाउर सूर्य मंदिर में हर साल 50 हजार से अधिक बिहारी और प्रवासी छठव्रती श्रद्धालु सूर्य को अर्घ्य देने आते हैं. ऐसा माना जाता है कि, यहां आने वाले सभी व्रतधारियों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है. बता दें कि, बेलाउर सूर्य मंदिर का निर्माण 1449 ई. में बावन सूबा के जमींदार द्वारा किया गया था, जो उस समय बावन सूबा के राजा के रूप में जाने जाते थे. बता दें कि, प्रसिद्ध बेलाउर सूर्य मंदिर तक पहुंचने का सबसे आसान रास्ता सड़क मार्ग है, जो आरा जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर है. यह आरा-अरवल मुख्य मार्ग पर स्थित है. वहीं निकटतम रेलवे स्टेशन आरा और उदवंतनगर हैं.

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मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु करते हैं छठ 

आपको बता दें कि मंदिर प्रबंधन समिति के सदस्यों ने बताया कि यहां स्थानीय लोगों के साथ-साथ बिहार के विभिन्न हिस्सों और दूसरे राज्यों से भी श्रद्धालु छठ करने आते हैं. मन्नत पूरी होने पर विदेश में रहने वाले लोग भी छठ करने आते हैं. वहीं तालाब के मध्य मकराना संगमरमर के पत्थर से बनी भगवान भास्कर की प्रतिमा अत्यंत सुंदर है. मंदिर में सात घोड़ों वाले रथ पर सवार भगवान भास्कर की प्रतिमा ऐसी प्रतीत होती है मानो वे साक्षात धरती पर उतर रहे हों. साथ ही यह प्रतिमा पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है, जो आकर्षण और आस्था का केंद्र है.

राजा बावन सूबा ने कराया था 208 पोखरों का निर्माण

इसके साथ ही बेलाउर निवासी विनय बेलाउर, मंटू चौधरी, संटू चौधरी, मधेसर शर्मा आदि ने बताया कि 'राजा' बावन सूबा ने सिंचाई व्यवस्था के लिए 52 गंडा यानी 208 छोटे-बड़े तालाबों का निर्माण कराया था. वहीं यहां अभी भी एक दर्जन से अधिक तालाब अस्तित्व में हैं, उनमें से एक है भैरवानंद पोखरा, जिसमें राजा ने 1449 ई. में एक भव्य सूर्य मंदिर बनवाया था. हालांकि इसका कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं है.

आपको बता दें कि इस संबंध में वहां के गांव के लोगों का कहना है कि, ''यह मंदिर समय के साथ नष्ट हो गया था, वहीं ठीक पांच सौ साल बाद 1950 ई. में उसी स्थान पर करवासीन गांव निवासी संत मौनी बाबा के अथक प्रयास से मकराना के संगमरमर के पत्थरों से सूर्य मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया. साथ ही मंदिर में भगवान सूर्य के अलावा गणेशजी, दुर्गाजी, शंकरजी, विष्णुजी आदि की मूर्तियाँ स्थापित हैं.

ये मंदिर मनोकामना धाम से है प्रसिद्ध

इसके साथ ही आपको बता दें कि यहां स्थापित जटा बाबा का मंदिर सूर्य मंदिर से भी ऊंचा है, जिसमें उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित है, इसलिए यह मनोकामना धाम के नाम से भी प्रसिद्ध है. यहां आने पर एक मनोकामना सिक्का मिलता है, जिसे मनोकामना पूर्ण होने के बाद लौटाना होता है. अब तक हजारों लोग ये मनोकामना सिक्का वापस कर चुके हैं. इस मंदिर को लेकर एक प्रचलित कहानियों के मुताबिक, ''पोखरा के निर्माण के दौरान जब गहरी खुदाई के बाद भी पानी नहीं निकला तो बावन के राजा सुबवा के आदेश पर बलि के लिए एक बच्चे को लाया गया था, जिसके बाद बच्चे ने बलि नहीं देने का आग्रह किया और खुद फावड़ा उठाकर ज्योंहि चलाया तभी तालाब से पानी निकलने लगा.''

बिहार सरकार ने मंदिर को दिया है पर्यटक स्थल का दर्जा

आपको बता दें कि बिहार सरकार ने इसे साइट का दर्जा दिया है. मंदिर के विकास के लिए दो साल में करीब 9 करोड़ रुपये की राशि आवंटित करने की बात कही गयी है, लेकिन आज तक कोई राशि नहीं मिली है. वहीं, सूर्य मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा 24 कमरों का धर्मशाला बनाया गया है, जो छठ की भीड़ के सामने काफी छोटा पड़ जाता है और यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है.