Purnia: आजादी के 77 साल बाद भी देश में ऐसे गांव मौजूद हैं, जहां नाम तो बदल दिए गए हैं, लेकिन जमीनी हालात अब भी नहीं बदले. बिहार के पूर्णिया जिले में एक ऐसा ही गांव है, जिसे कभी ‘पाकिस्तान टोला’ के नाम से जाना जाता था. साल 2020 में इस गांव का नाम बदलकर ‘भगवान बिरसा मुंडा टोला’ रख दिया गया, लेकिन गांव की किस्मत आज भी जस की तस बनी हुई है.
क्या है इस गांव की कहनी
पूर्णिया के श्रीनगर प्रखंड के सिंघिया पंचायत में स्थित इस गांव की कहानी आजादी से भी जुड़ी है. 1947 में विभाजन के बाद जब मुस्लिम परिवार यहां से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) चले गए, तबसे यह इलाका ‘पाकिस्तान टोला’ कहलाने लगा. समय बीतने के साथ यहां संथाल जनजाति के लोग आकर बस गए, लेकिन ‘पाकिस्तान’ नाम का ठप्पा गांव की तरक्की के रास्ते में बड़ी रुकावट बन गया.
नहीं मिल रहीं बुनियादी सुविधाएं
गांव वालों का कहना है कि उन्हें बुनियादी सुविधाओं से अब तक वंचित रखा गया है. यहां न तो सड़क है, न स्कूल, न अस्पताल और न ही शौचालय जैसी सुविधाएं. बिजली और पानी की स्थिति भी बेहद खराब है. ग्रामीणों का आरोप है कि सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में उन्हें कई बार नाम की वजह से परेशानी उठानी पड़ी. राशन कार्ड, आधार और जाति प्रमाण पत्र जैसे ज़रूरी दस्तावेजों में आज भी ‘पाकिस्तान टोला’ लिखा मिलता है.
विकास के नाम पर मिलते हैं बस वादे
हालांकि, सरकार ने गांव का नाम बदलकर ‘भगवान बिरसा मुंडा टोला’ कर दिया है, लेकिन गांव की तस्वीर नहीं बदली. चुनावों के वक्त नेता वादों की झड़ी लगाते हैं, लेकिन चुनाव बीतते ही सब कुछ ठंडे बस्ते में चला जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि हर बार उनसे विकास के नाम पर वादे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं होता.
ग्रामीणों की मांग है कि उन्हें भी बाकी देशवासियों की तरह बराबरी का अधिकार मिले. सिर्फ नाम बदलने से गांव की पहचान नहीं बदलती, जरूरत है यहां के लोगों की जिंदगी बदलने की, ताकि वो भी सम्मान और सुविधा भरी जिंदगी जी सकें.
एक नाम बदला गया, लेकिन हालात वही हैं. ‘भगवान बिरसा मुंडा टोला’ आज भी विकास की बाट जोह रहा है. सरकार को चाहिए कि सिर्फ फाइलों में नहीं, जमीनी हकीकत में भी इस गांव का कायाकल्प करे.
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