बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले नीतीश कुमार ने चल दिया 'दलित कार्ड'

नीतीश कुमार ने शुक्रवार को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम के तहत लंबित मामलों को 20 सितंबर तक निपटाने के आदेश दिए.

नीतीश कुमार ने शुक्रवार को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम के तहत लंबित मामलों को 20 सितंबर तक निपटाने के आदेश दिए.

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Dalchand Kumar
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Nitish Kumar

बिहार में चुनाव की घोषणा से पहले नीतीश कुमार ने खेला 'दलित कार्ड'( Photo Credit : फाइल फोटो)

बिहार में कुछ महीनों बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीति के तहत तैयारियां शुरू कर दी हैं. भले ही राज्य में अभी चुनाव की घोषणा नहीं हुई है मगर सभी दल अपनी अपनी रणनीति पर काम करने में लगे हैं. इस बीच अनुसूचित जाति (एससी) के मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने सूबे के मुखिया और जनता दल यूनाइटेड के प्रमुख नीतीश कुमार ने दलित कार्ड खेला है. नीतीश कुमार ने शुक्रवार को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम के तहत लंबित मामलों को 20 सितंबर तक निपटाने के आदेश दिए.

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इसके अलावा मुख्यमंत्री नीतीश ने अधिकारियों को असमय मृत्यु से संबंधित मामलों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (एससी एवं एसटी) के आश्रितों को अनुकंपा आधार पर नौकरी देने के लिए नियम बनाने के भी निर्देश दिए हैं. एक आधिकारिक विज्ञप्ति के मुताबिक, कुमार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग के सचिव प्रेम कुमार मीणा को मामलों के त्वरित निपटान के लिए संबंधित विभागों के अधिकारियों के साथ संपर्क में रहने का भी निर्देश दिया.

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मुख्यमंत्री ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम 1995 के अंतर्गत गठित राज्य स्तरीय सतर्कता एवं निगरानी समिति की बैठक को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए ये बातें कहीं. इस दौरान, वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग के मंत्री रमेश ऋषिदेव, सांसदों विजय मांझी, पशुपति कुमार पारस, प्रिंस राज और आलोक कुमार सुमन के अलावा विधायकों और अन्य जन प्रतिनिधियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए.

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बिहार में दलित समीकरण

उत्तर बिहार में दलित समीकरण को देखा जाए तो राज्य की कुल आबादी का लगभग 16 प्रतिशत एससी है. 2005 में नीतीश सरकार ने 22 में से 21 दलित जातियों को महादलित घोषित किया था. जबकि 2018 में पासवान भी महादलित वर्ग में शामिल कर दिए गए. नतीजन बिहार में अब दलित के बदले महादलित जातियां ही रह गई हैं. वर्तमान में बिहार में पासवान (लगभग 5.5 प्रतिशत) और रविदास (लगभग 4 प्रतिशत) समुदाय इसके प्रमुख घटक हैं. ये चुनाव में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाते रहे हैं. इसके अलावा 5.5 फीसदी से अधिक मुसहर जाति के लोग हैं. इनके अलावा यहां धोबी, पासी, गोड़ आदि जातियों की भागीदारी भी अच्छी खासी है.

Source : News Nation Bureau

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