logo-image

पटना के हनुमान मंदिर के 'नैवेद्यम' की है खास पहचान, जानिए क्यों है देशभर में फेमस

लड्डू हर किसी को पसंद है और खास कर पटना के सुप्रसिद्ध महावीर मंदिर में मिलने वाले नैवेद्यम के लड्डू की ख्याति तो देश भर में है.

Updated on: 29 Mar 2023, 04:12 PM

highlights

  • पटना के हनुमान मंदिर के नैवेद्यम की खासियत
  • देशभर में स्वाद के लिए है अलग पहचान
  • प्रतिदिन श्रद्धालुओं की लगती है लंबी लाइन

Patna:

लड्डू हर किसी को पसंद है और खास कर पटना के सुप्रसिद्ध महावीर मंदिर में मिलने वाले नैवेद्यम के लड्डू की ख्याति तो देश भर में है. खास बात यह है कि अमूमन महीने में लाख से सवा लाख किलो इस लड्डू की बिक्री है और रामनवमी जैसे त्यौहार में इसकी बिक्री एक दिन में पच्चीस हजार किलो तक होती है. मगर यहां इतनी बड़ी संख्या में यह लड्डू कैसे और कहां तैयार होते हैं तो आइए आपको बताते हैं, आज नैवेद्यम के लड्डू की मेगा किचन की स्टोरी. पटना के महावीर मंदिर, देश में ये एकलौता मंदिर है, जहां भगवान महावीर के दो विग्रह हैं. एक मनोकामना और दूसरे संकटमोचन. 

यह भी पढ़ें- 27 साल बाद रामनवमी पर बिहारवासियों को मिली खुशी, आजाद हुए भगवान; लोगों ने कहा- 'ऐतिहासिक है आज का दिन'

आखिर क्यों देशभर में फेमस है नैवेद्यम?

यहीं कारण है कि इस मंदिर में देशभर के लोग पहुंचते हैं, हर मंगलवार को यहां फिर हजारों श्रद्धालू और हर दिन सैकड़ों श्रद्धालुओं की कतारें ऐसे भी लगी होती है. इस मंदिर में सबसे खास है यहां मिलने वाला नैवेद्यम का प्रसाद. नैवेद्यम का किचन कई हिस्सों में बंटा है. अनाज को पिसवाने के लिए हम सभी को चक्की मिल जाते हैं, यहां तो इसकी किचन के एक हिस्से में चक्की ही बैठा दी गई है, जहां हर दिन सैकड़ों बोरों में बंद चने की दाल की पिसती रहती है.

शुद्ध घी है नैवेद्यम की पहचान

जब चने की दाल को पीस लिया जाता है तो फिर इन्हें अलग-अलग कंटेनर में भर कर रख दिया जाता है. इन तमाम कंटेनर को फिर वहां लाया जाता है, जहां पर बड़े-बड़े विशाल चूल्हे रखे गए हैं और हर चूल्हे पर इतनी बड़ी कढ़ाई, जिसमें डेढ़ सौ किलो शुद्ध घी एक बार में डालकर बुंदिया छाना जा सके. यहां से इन बुंदियों को तैयार कर बड़े-बड़े टोकरी में भरकर उस एरिया में ले जाया जाता है, जहां पर मशीनें लगी होती हैं और इन मशीनों में एक साथ कई काम हो रहे होते हैं.

ऐसे तैयार किया जाता है नैवेद्यम

एक विशाल मशीन जिसमें चीनी की चाशनी बनाई जाती है. वहीं, दूसरी ओर साढ़े सात सौ किलो की क्षमता वाले कई मिक्सर लगे हैं. इन मिक्सर में बंदियों को डाला जाता है और उसके बाद जब दूसरे मशीन में चीनी की चाशनी तैयार हो जाती है, तो फिर इन्हें मिक्सर के माध्यम से इन बुंदियों में मिलाया जाता है. साथ में काजू किसमिस जैसे मेवे भी इसमें डाल कर एक पूरा मिश्रण तैयार किया जाता है.

बिना तौले पेक किया जाता है डब्बा

करीब 35 से 40 मिनट में यह मिश्रण पूरी तरह मिलकर तैयार होता है, उसके बाद उन्हें थोड़ा ठंडा करने को अलग रख दिया जाता है. फिर इन मिश्रण को उस हॉल में ले जाया जाता है, जहां एक साथ 20 लोग हाथों से लड्डू तैयार करने में जुटे हैं. जी हां, इनका अंदाज इतना सटीक होता है कि हाथों से ही 50 ग्राम और 100 ग्राम के लड्डू बिना तौले तैयार कर देते हैं. 100 ग्राम से 1 किलो तक के डब्बे तैयार किए जाते हैं और यहां से फिर तैयार लड्डू मंदिर पहुंचता है, जहां से श्रद्धालु भगवान को अर्पित कर प्रसाद के रूप में इसे अपने घर ले जाते हैं.