Bihar Election: सासाराम में मुस्लिम वोट बैंक किसकी तरफ, देखिए ग्राउंड रिपोर्ट

Sasaram: मुस्लिम मतदाता खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. उनका कहना है कि 'हर पार्टी हमें सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती है, लेकिन चुनाव के बाद भूल जाती है.'

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Yashodhan.Sharma
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Sasaram: मुस्लिम मतदाता खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. उनका कहना है कि 'हर पार्टी हमें सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती है, लेकिन चुनाव के बाद भूल जाती है.'

Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी सासाराम में तेजी से बढ़ रही है. ऐतिहासिक नगरी सासाराम, जहां शेरशाह सूरी का मकबरा स्थित है, इस बार फिर सियासी जंग का केंद्र बनी हुई है. यहां बीजेपी, आरजेडी, जेडीयू, एमआईएम और प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी के बीच त्रिकोणीय से लेकर बहुकोणीय मुकाबले के आसार हैं.

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रोहतास की सासाराम सबसे अहम सीट

सासाराम विधानसभा सीट रोहतास जिले की सबसे अहम सीटों में गिनी जाती है. यहां करीब साढ़े तीन लाख मतदाता हैं, जिनमें 17 से 19 प्रतिशत मुस्लिम और लगभग 18 प्रतिशत अनुसूचित जाति के मतदाता हैं. यह समीकरण हर बार जीत-हार का फैसला करते हैं. 2020 में यहां से आरजेडी के राजेश कुमार गुप्ता ने जीत दर्ज की थी, जबकि इससे पहले भी यह सीट आरजेडी के कब्जे में रही. हालांकि 2000 से पहले तक बीजेपी और कांग्रेस का वर्चस्व यहां देखने को मिला था.

यहां टटोला जनता का मूड

धर्मशाला बाजार से लेकर जखी शहीद और बाग भाई खान इलाकों तक न्यूज नेशन की टीम ने जनता का मूड टटोलने की कोशिश की. लोगों के बीच विकास और जातीय राजनीति को लेकर बंटा-बंटा सा माहौल दिखा. कुछ लोगों का कहना है कि 'नीतीश कुमार ने 20 साल में बिहार को बदला है, विकास किया है', वहीं कई लोग तेजस्वी यादव को मौका देने की बात कर रहे हैं.

मुस्लिम मतदाता खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. उनका कहना है कि 'हर पार्टी हमें सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती है, लेकिन चुनाव के बाद भूल जाती है.' कुछ मतदाताओं ने एमआईएम को विकल्प के रूप में देखने की बात कही, जबकि कईयों का मानना है कि 'प्रशांत किशोर नई सोच के साथ आए हैं, लेकिन असली असर देखना बाकी है.'

इन मुद्दों पर दिखी नाराजगी

युवाओं में बेरोजगारी, सफाई व्यवस्था और नगर निगम के टैक्स को लेकर नाराजगी झलक रही है. वहीं वरिष्ठ नागरिक मानते हैं कि 'बदलाव जरूरी है, मगर विकास ही असली मुद्दा होना चाहिए.' कुल मिलाकर सासाराम का माहौल इस बार पूरी तरह खुला हुआ है. जातीय और धार्मिक समीकरणों के बीच विकास की चाह और बदलाव की उम्मीद एक साथ चल रही है. अब देखना यह होगा कि ऐतिहासिक सासाराम की जनता इस बार किस दिशा में तीर या लालटेन जलाती है.

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