Miyanpur Massacre Of Bihar: हमलावरों ने पहले यादव जाति के लोगों की पहचान की, फिर उन्हें घरों से निकालकर एक जगह जमा किया और गोलियों की बौछार कर दी. महिलाएं, बच्चे कोई नहीं बचा.
Miyanpur Massacre Of Bihar: बिहार के औरंगाबाद जिले का मियापुर गांव 16 जून 2000 की उस भयावह रात को कभी नहीं भूल सकता, जब गांव में 34 बेगुनाह लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. जातीय नफरत की इस घटना ने पूरे राज्य को झकझोर दिया था. बताया जाता है कि सेनारी नरसंहार का बदला लेने के लिए रणवीर सेना ने इस वारदात को अंजाम दिया था.
उस दिन सुबह से ही गांव में सन्नाटा पसरा था. कुछ अजनबी लोग भैंस ढूंढने के बहाने गांव में पहुंचे तो लोगों को अनहोनी का डर सताने लगा. ग्रामीणों ने पुलिस को सूचना भी दी, लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया गया. शाम होते-होते गांव पर मौत बनकर करीब 200 से ज्यादा हथियारबंद लोग टूट पड़े. रात करीब 9 बजे मियापुर की गलियां गोलियों की तड़तड़ाहट और चीखों से गूंज उठीं.
जाति देखकर गोलियों से भूना
हमलावरों ने पहले यादव जाति के लोगों की पहचान की, फिर उन्हें घरों से निकालकर एक जगह जमा किया और गोलियों की बौछार कर दी. महिलाएं, बच्चे कोई नहीं बचा. 13 महिलाएं और 9 बच्चे भी मारे गए. कई लोगों के शरीर पर तलवार और गोली के निशान आज भी उस दर्दनाक रात की गवाही देते हैं.
घटना के बाद गांव में लाशों का अंबार लग गया. पुलिस रात दो बजे मौके पर पहुंची, लेकिन तब तक हमलावर फरार हो चुके थे. नरसंहार के बाद मुख्यमंत्री राबड़ी देवी खुद गांव पहुंचीं और पीड़ित परिवारों को ₹1 लाख मुआवजे का ऐलान किया.
पुलिस ने 2000 और 2002 में दो चरणों में चार्जशीट दाखिल की. 2007 में कोर्ट ने 10 आरोपियों को उम्रकैद की सजा दी, लेकिन 2013 में सबूतों के अभाव में 9 आरोपी बरी कर दिए गए. न्याय की इस लंबी लड़ाई में गवाह या तो बदल दिए गए या मर गए.
इतिहास के पन्ने में दर्ज
आज 25 साल बाद मियापुर फिर से बस गया है. कभी मौत और मातम का मंजर देखने वाला यह गांव अब शिक्षा की रोशनी से उजाला करने में जुटा है. गांव के बच्चे कहते हैं कि हिंसा का जवाब सिर्फ शिक्षा से ही दिया जा सकता है. मियापुर के लोग अब बीते जख्मों को भूलकर नई शुरुआत की राह पर हैं, लेकिन उस रात की चीखें अब भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं बिहार के नरसंहारों के सबसे काले अध्याय के रूप में.
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