सरकार से उम्मीद छोड़ ग्रामीणों ने श्रमदान कर बनाया पुल, आजादी के 75 साल बाद भी सरकार नहीं बना पाई स्थाई पुल
दम तोड़ती सिस्टम और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की अनदेखी ने एकबार फिर श्रमदान और आपसी सहयोग का मिशाल पेश करते हुए लाखों रुपये खर्च कर चचरी पुल बनाने को मजबूर कर दिया और लोगों ने सिस्टम को सबक सिखाने के लिए इस चचरी पुल का नाम अंबानी सेतू पुल रखा है.
highlights
- श्रमदान और आपसी सहयोग से ग्रामीणों ने बनाया पुल
- ग्रामीणों ने चचरी पुल का नाम पुल रखा है अंबानी सेतू
- हर साल बाढ़ आते ही तेज धारा में बह जाता है पुल
Darbhanga:
केंद्र से लेकर राज्य तक कई सरकारें आई और गईं पर नहीं बदला तो सिर्फ गौराबौराम विधानसभा के किरतपुर प्रखंड की तस्वीरें. सरकार भले ही विकास के लाख दावें कर लें लेकिन उनका यह दावा इस इलाके में पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती है. इस दम तोड़ती सिस्टम और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की अनदेखी ने एकबार फिर श्रमदान और आपसी सहयोग का मिशाल पेश करते हुए लाखों रुपये खर्च कर चचरी पुल बनाने को मजबूर कर दिया और लोगों ने सिस्टम को सबक सिखाने के लिए इस चचरी पुल का नाम अंबानी सेतू पुल रखा है.
चचरी पुल सरकार के झूठे वादों की है निशानी
कोशी नदी के बीच जुगाड़ से बना यह चचरी पुल केंद्र व बिहार सरकार के विकास की निशानी नहीं बल्कि, उनके झूठे वादों और खोखले इरादों की पोल ये पुल खोल रही है. आजादी के 75 साल बाद भी इस इलाके लोगों का सहारा चचरी पुल व नाव ही है. किसी भी सरकार की नजर इन पर गई ही नहीं.
हर साल बाढ़ आते ही बह जाता है पुल
ग्रामीणों का कहना है कि बिहार के प्रसिद्ध कोसी नदी का प्रवाह है. नदी के किरतपुर घाट पर स्थाई पुल नहीं होने के कारण यहां बाढ़ आने पर तेज धारा में पुल बह जाता है तब लोगों के पास नाव ही एक रास्ता होता है लोग इसी से आवागमन करते हैं. ग्रामीणों की माने तो कई बार स्थाई पुल निर्माण के लिए सरकार से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई गई. लेकिन किसी प्रकार की कोई सुनवाई नहीं हुई. इस चचरी पुल से होते हुए दरभंगा के अलावा सहरसा, मधुबनी जिला के दर्जनों गांव के करीब 50 हजार की आबादी आवागमन करते हैं.
प्रत्येक साल 250 मीटर लंबा बनाया जाता है पुल
चचरी पुल पर तैनात कर्मी सुशील कुमार यादव ने कहा कि किरतपुर पंचायत के ही घाट के घटवार वीर यादव और गंगाराम यादव ने निजी तौर पर चचरी पुल का निर्माण करवाया है. इस चचरी पुल के निर्माण पर करीब चार लाख की लागत आई है. दशकों की अनदेखी के बाद प्रत्येक साल कोशी नदी पर 250 मीटर लंबा मजबूत पुल बनाया जाता है. इस चचरी पुल से गुजरने वाले मोटरसाइकिल सवार से 20 रुपया और साइकिल सवार से 10 रुपया लिए जाते हैं. वहीं, पैदल सवार के लिए यह बिल्कुल फ्री है.
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लोगों ने सरकार को छोड़ उद्योगपति अंबानी पर जताया भरोसा
2008 में परिसीमन के बाद गौराबौराम विधानसभा अस्तित्व में आई थी. 2010 में यहां पहली बार चुनाव हुए थे तो जदयू ही चुनाव जीती थी. तब डॉ इजहार अहमद ने राजद के डॉ महावीर प्रसाद को मात दी थी. 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू के मदन सहनी ने लोक जनशक्ति पार्टी के विनोद सहनी को करीब 14 हजार वोट से हराया था और सरकार में खाद्य आपूर्ति मंत्री भी बने थे. वहीं, 2020 में गौड़ाबौराम विधानसभा में वीआईपी से स्वर्णा सिंह ने राष्ट्रीय जनता दल के अफज़ल अली खान को 7280 वोटों के मार्जिन से हराया था. लेकिन किसी ने यहां के लोगों की समस्याओं पर ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा. जिसका नतीजा है कि सरकारी सिस्टम से तंग आकर देश के मशहूर उद्योगपति अंबानी पर आस्था जताया गया है.
रिपोर्ट - अमित कुमार
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