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जानिए क्या था सेनारी नरसंहार, जिसमें 34 लोगों की काट दी गई थी गर्दन

बिहार के सबसे कुख्यात में से एक सेनारी नरसंहार मामले में पटना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को 13 आरोपियों को बरी कर दिया है.

Updated on: 21 May 2021, 10:37 PM

highlights

  • 18 मार्च 1999 को सेनारी को नरसंहार हुआ था
  • सेनारी गांव में 34 लोगों को काट दिया गया था
  • हाईकोर्ट ने सेनारी नरसंहार के दोषियों को बरी कर दिया

पटना :

बिहार के सबसे कुख्यात में से एक सेनारी नरसंहार मामले में पटना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को 13 आरोपियों को बरी कर दिया है. न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह और न्यायमूर्ति अरविंद श्रीवास्तव की उच्च न्यायालय की पीठ ने सबूतों के अभाव में 13 आरोपियों को बरी कर दिया. जहानाबाद जिले की एक निचली अदालत द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद सभी 13 आरोपी उम्रकैद की सजा काट रहे थे. इस मामले में बचाव पक्ष के वकील अंशुल राज ने कहा, इस मामले में कोई चश्मदीद गवाह नहीं है, जो सेनारी गांव में हुए नरसंहार के मामले में मेरे मुवक्किलों के शामिल होने की पुष्टि कर सके. अभियोजन पक्ष के वकील ने उन्हें दोषी ठहराने के लिए कोई गवाह या वैध सबूत पेश नहीं किया इसलिए उच्च न्यायालय ने उन्हें तत्काल प्रभाव से बरी कर दिया.

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सेनारी की घटना 90 के दशक के अंत में बिहार में जातीय संघर्ष से प्रेरित था

बता दें कि सेनारी की घटना 90 के दशक के अंत में बिहार में जातीय संघर्ष से प्रेरित था. इसे साल 1997 में हुए लक्ष्मणपुर-बाथे नरसंहार का बदला माना जाता है, जिसमें रणवीर सेना के सदस्यों द्वारा 57 दलितों की हत्या कर दी गई थी. साल 1999 की इस घटना में एक पूर्व माओवादी संगठन द्वारा बिहार के जहानाबाद जिले में स्थित सेनारी गांव में 34 लोगों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी. एक को रणवीर सेना नाम के संगठन का साथ मिला तो दूसरे को माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर का। 18 मार्च 1999 की रात को सेनारी गांव में 500-600 लोग घुसे. पूरे गांव को चारों ओर से घेर लिया. घरों से खींच-खींच के मर्दों को बाहर निकाला गया. चालीस लोगों को खींचकर बिल्कुल जानवरों की तरह गांव से बाहर ले जाया गया.

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सेनारी गांव में 34 लोगों को काट दिया गया था

18 मार्च, 1999 को माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) के कार्यकर्ताओं ने एक विशेष उच्च जाति के 34 लोगों की हत्या कर दी थी. कार्यकर्ताओं ने पीड़ितों को उनके घरों से बाहर निकालकर उन्हें एक मंदिर के पास खड़ा कराया और फिर धारदार हथियारों और गोलियों से उनकी बेदर्दी से हत्या कर दी. सेनारी में वो काली रात थी. भेड़-बकरियों की तरह नौजवानों की गर्दनें काटी जा रही थी.

इस मामले में पहली चार्जशीट साल 2002 में 74 लोगों के खिलाफ दायर की गई थी. हालांकि, इनमें से 18 लोगों के फरार होने के साथ बाकी 56 व्यक्तियों के खिलाफ ही मुकदमा चलाया गया था.