बिहार की सियासत में इस वक्त महागठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर जबरदस्त खींचतान चल रही है. इसी बीच कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार का एक बयान कांग्रेस के लिए सियासी मुश्किलें खड़ी कर सकता है. दरअसल, कन्हैया ने साफ तौर पर कहा है कि बिहार में महागठबंधन की ओर से अगर सरकार बनती है, तो मुख्यमंत्री पद का चेहरा तेजस्वी यादव ही होंगे. उनके इस बयान को राजनीतिक गलियारों में आरजेडी को "बड़ा भाई" मानने की सार्वजनिक मुहर के तौर पर देखा जा रहा है.
सीट बंटवारे से पहले तेजस्वी को CM फेस बताना कितना भारी?
बात सिर्फ एक बयान की नहीं है. दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर महागठबंधन के घटक दलों के बीच सीटों की दावेदारी पहले से ही तनाव बढ़ा रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कांग्रेस ने इस बार 90 सीटों पर चुनाव लड़ने का प्लान बना रही है, साल 2020 में सिर्फ 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था और महज 19 सीटें जीत पाई थी.
वहीं, आरजेडी 150 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है. भाकपा माले और सीपीआई भी बड़ी संख्या में सीटें मांग रही हैं. ऐसे माहौल में जब कांग्रेस अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिश में थी, कन्हैया कुमार का बयान सीधे तौर पर आरजेडी की ताकत बढ़ाने वाला माना जा रहा है.
तेजस्वी से पुराना टकराव, अब समर्थन क्यों?
दिलचस्प बात ये है कि कन्हैया और तेजस्वी के बीच रिश्ते हमेशा मधुर नहीं रहे हैं. जब कन्हैया 2019 में बेगूसराय से वामदलों के उम्मीदवार बने थे, तब तेजस्वी ने उन्हें समर्थन नहीं दिया था. यहां तक कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी तेजस्वी की नाराजगी को लेकर कहा जाता है कि कांग्रेस ने कन्हैया को बिहार से टिकट नहीं दिया. लेकिन अब वही कन्हैया तेजस्वी को सीएम फेस बताकर सियासी संदेश दे रहे हैं. शायद पार्टी के भीतर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए या फिर आरजेडी के साथ समीकरण साधने के मकसद से.
कांग्रेस की रणनीति पर क्या असर?
कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता जैसे बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु और प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम अब तक तेजस्वी को सीएम उम्मीदवार घोषित करने से बचते रहे हैं. लेकिन कन्हैया के बयान और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह के समर्थन के बाद कांग्रेस बैकफुट पर दिख रही है. इससे न केवल पार्टी की मोलभाव की स्थिति कमजोर हुई है, बल्कि यह भी साफ हो गया है कि महागठबंधन में आरजेडी की भूमिका केंद्रीय है.
कन्हैया कुमार का तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा बताना एक साधारण बयान नहीं, बल्कि कांग्रेस की अंदरूनी रणनीति और सीटों की सौदेबाज़ी पर गहरा असर डालने वाला कदम है. अब देखना ये है कि कांग्रेस नेतृत्व इस बयान से कैसे निपटता है और क्या वह बिहार में खुद को सिर्फ जूनियर पार्टनर के तौर पर स्वीकार करने को तैयार है या नहीं.
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