Hamar Bihar Conclave: नागरिकता आधारित एसआईआर (सिस्टमेटिक वोटर रजिस्ट्रेशन) पर भट्टाचार्य ने कहा कि यह गरीबों और वंचितों को वोटर लिस्ट से बाहर करने की साजिश है.
Patna: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में सीट बंटवारे और रणनीति पर चर्चाएं तेज हो गई हैं. CPI(ML) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने एक विशेष बातचीत में साफ किया कि इस बार उनकी पार्टी ज्यादा जिलों में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है और लगभग 40 सीटों पर दावेदारी मजबूत है.
दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि पिछले चुनाव में CPI(ML) ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा और 12 सीटें जीतीं. यानी स्ट्राइक रेट 50% से ज्यादा रहा. इस बार पार्टी का फोकस सीटों की संख्या पर नहीं बल्कि उन इलाकों पर है जहां उनकी पकड़ मजबूत है. उन्होंने कहा, 'हम सिर्फ 12 जिलों तक सीमित नहीं रहेंगे, कम से कम 20–25 जिलों में उतरेंगे. हमारी तैयारी 40 सीटों पर है और हमें भरोसा है कि गठबंधन में हमारी भूमिका और अहम होगी.'
कांग्रेस की सीटों पर सवाल
कांग्रेस के खराब प्रदर्शन पर भट्टाचार्य ने कहा कि पार्टी को 2015 और 2020 दोनों अनुभवों से सीख लेनी चाहिए. उन्होंने कहा, '2015 में कांग्रेस ने 40 में से 27 सीटें जीती थीं, जबकि 2020 में 70 में से सिर्फ 19 सीटें. इसलिए इस बार उन्हें क्वांटिटी से ज्यादा क्वालिटी पर ध्यान देना होगा.'
कौन हैं दीपांकर भट्टाचार्य
दीपांकर भट्टाचार्य भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के राष्ट्रीय महासचिव हैं. वे 1998 से इस पद पर कार्यरत हैं और पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे विनोद मिश्रा के निधन के बाद सर्वसम्मति से महासचिव चुने गए. उनका जन्म दिसंबर 1960 में गुवाहाटी (असम) में हुआ. उन्होंने अपनी पढ़ाई कोलकाता के पास नरेंद्रपुर स्थित रामकृष्ण मिशन विद्यालय से की. 1979 में पश्चिम बंगाल उच्चतर माध्यमिक बोर्ड परीक्षा में वे टॉपर रहे.
इसके बाद दीपांकर भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता में दाखिला लिया. वहां से 1982 में बी.स्टैट और 1984 में एम.स्टैट की डिग्री हासिल की. पढ़ाई के दौरान ही वे छात्र राजनीति और सामाजिक आंदोलनों से जुड़े. 1982 से 1994 तक उन्होंने इंडियन पीपुल्स फ्रंट के महासचिव के रूप में काम किया. इसके बाद वे ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस के महासचिव बने. दिसंबर 1987 में उन्हें सीपीआई (एमएल) लिबरेशन की केंद्रीय समिति में चुना गया.
दीपांकर का मानना है कि भारत में आर्थिक विकास से केवल सीमित वर्ग को लाभ मिलता है, जबकि बड़ी आबादी हाशिये पर रहती है. उनके अनुसार सशक्तिकरण का अर्थ रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और स्वच्छता जैसी बुनियादी जरूरतों से है. वे स्वास्थ्य और शिक्षा के निजीकरण को आम जनता के हितों के खिलाफ मानते हैं और सामाजिक समानता पर जोर देते हैं.
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