Advertisment

JDU में हक की लड़ाई पिछड़ा वर्ग पर आई, जानिए नेताओं को क्यों आई इनकी याद

बिहार की महाठबंधन सरकार क्या बनी ऐसा लगा मानों विवादों के बवंडर ने जन्म ले लिया हो.

author-image
Jatin Madan
एडिट
New Update
nitish upendra lalu

फाइल फोटो( Photo Credit : फाइल फोटो)

Advertisment

बिहार की महाठबंधन सरकार क्या बनी ऐसा लगा मानों विवादों के बवंडर ने जन्म ले लिया हो. कभी मंत्रियों से जुड़ा विवाद तो कभी विपक्ष की गोलबंदी. अब इस सब के बीच महागठबंधन में आंतर्कलह. पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह के बगावती तेवर से निजात भी नहीं मिला और JDU के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने अपने तल्ख तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं. पहले तो कुशवाहा सिर्फ सीएम नीतीश को आड़े हाथ लेते रहे, लेकिन अब तो RJD सुप्रीमो लालू यादव पर भी जुबानी तीर दागने लगे हैं. दरअसल लालू यादव और सीएम नीतीश पर कुशवाहा ने पिछड़ों की हकमारी करने का आरोप लगा दिया है.

लड़ाई अब पिछड़ों के विकास पर

महागठंबधन की आंतरिक लड़ाई अब पिछड़ों के विकास पर आ गई है. कुशवाहा के बयान ने बिहार की राजनीति में एक बार फिर पिछड़ों पर बहस छेड़ दी है और इसी के साथ तमाम राजनीतिक दल एक दूसरे को पिछड़ा वर्ग हितैषी बताने की जद्दोजहद में जुट गए हैं. बिहार में बीजेपी को बैठे बिठाए मुद्दा मिल रहा है. क्योंकि महागठबंधन के नेता ही अपने बयानों से विपक्ष को वो तमाम मौके दे रहे हैं, जिससे प्रदेश सरकार का घेराव हो सके. बीजेपी भी इन मुद्दों को भुनाने में पीछे नहीं हट रही. अब कुशवाहा के बयान का समर्थन कर बीजेपी ने साबित कर दिया है कि पिछड़ा वर्ग को लेकर शुरू विवाद अभी लंबा चलने वाला है.

एक तरफ जहां बीजेपी कुशवाहा के बयान का समर्थन कर रही है तो वहीं दूसरी ओर JDU अब कुशवाहा पर हमलावर हो गई है. जेडीयू विधान पार्षद नीरज कुमार ने कुशवाहा के आरोपों पर पलटवार करते हुए कहा कि नीतीश कुमार के शासनकाल में जितना पिछड़ा और अति पिछड़ा का ख्याल रखा गया उतना शायद कभी नहीं हुआ.

नेताओं को पिछड़ा वर्ग की याद क्यों आई?

इन बयानबाजियों के बीच जो सबसे बड़ा सवाल है वो ये कि आखिर सियासतदानों पिछड़ों की याद कैसे आ रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह है 2024. लोकसभा चुनाव की सरगर्मी पूरे देश में बढ़ने लगी है और बात अगर बिहार की करें तो बिहार की राजनीति अपने आप में बेहद खास है. क्योंकि बिहार की राजनीति में जाति सबसे ज्यादा मायने रखती है. विकास के मुद्दों से ज्यादा यहां जातिगत समीकरण की अहमियत है. जातियों में भी सबसे ज्यादा वर्चस्व अति पिछड़ों का है. बिहार में करीब 114 अति पिछड़ी जातियां है. जनसंख्या में इनकी आबादी 46 फीसदी के करीब है जो एक बड़ा वोट बैंक है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 17 सालों से पिछड़ों की बदौलत की सत्ता में है. JDU हो या RJD दोनों ही दल अति पिछड़ा वोट बैंक पर निर्भर है. पिछले चुनाव में बीजेपी ने भी अति पिछड़ा वोट बैंक को साधने की कोशिश की, लेकिन फेल हुई. इस बार के चुनाव में कुशवाहा के बयान का समर्थन कर बीजेपी भी खुद को अति पिछड़ा हितैषी साबित करने की कोशिश कर रही है.

यानी बयानबाजियों का ये दौर सिर्फ सियासत की रोटियां सेंकने के लिए है. अति पिछड़ों की याद हर सियासी दल को तभी आती है जब चुनाव होने हों. चुनाव खत्म होते ही. सियासतदान अपने दावों और वादों का पलीता खुद लगा देते हैं.

रिपोर्ट : आदित्य झा

यह भी पढ़ें : मुख्यमंत्री के समाधान यात्रा पर आरसीपी सिंह ने उठाया सवाल, कहा - नीतीश बन चुके हैं बिहार के लिए बोझ

HIGHLIGHTS

  • हक की लड़ाई... पिछड़ा वर्ग पर आई!
  • अब कुशवाहा के निशाने पर लालू यादव..
  • पिछड़ा वर्ग पर शुरू सियासी घमासान
  • नेताओं को पिछड़ा वर्ग की याद क्यों आई?

Source : News State Bihar Jharkhand

Upendra Kushwaha JDU Latest News of Bihar Politics CM Nitish Kumar Bihar politicsal News Mahagathbandhan Bihar News
Advertisment
Advertisment
Advertisment