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Kaal Bhairav Jayanti 2022: काल भैरव पूजा से दूर होती हैं बीमारियां, 16 नवंबर को मनाई जायेगी जयंती

हिंदू कैलेंडर के अनुसार अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव पूजा करने का विधान है. इसे काल भैरवाष्टमी के रूप में मनाते हैं.

Updated on: 14 Nov 2022, 05:44 PM

Patna:

हिंदू कैलेंडर के अनुसार अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव पूजा करने का विधान है. इसे काल भैरवाष्टमी के रूप में मनाते हैं. काल भैरव को भगवान शिव का तीसरा रूद्र अवतार माना जाता है. पुराणों के मुताबिक मार्गशीष महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन ही भगवान काल भैरव प्रकट हुए थे. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि इस बार काल भैरव अष्टमी 16 नवंबर को है. इस कृष्णाष्टमी को मध्याह्न काल यानी दोपहर में भगवान शंकर से भैरव रूप की उत्पत्ति हुई थी. भगवान भैरव से काल भी डरता है. इसलिए उन्हें कालभैरव भी कहते हैं. ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक कालभैरव श्रीकृष्ण के दाहिनी आंख से प्रकट हुए थे, जो आठ भैरवों में से एक थे. काल भैरव रोग, डर, संकट और दुख दूर करने वाले देवता हैं. इनकी पूजा से हर तरह की मानसिक और शारीरिक परेशानियां दूर हो जाती हैं. सभी पौराणिक देवी मंदिरों के साथ ही काल भैरव के मंदिर भी हैं. इस दिन काल भैरव का सिंदूर और चमेली के तेल से श्रृंगार करना चाहिए. हार-फूल चढ़ाएं, धूप-दीप जलाएं. भैरव महाराज को इमरती का भोग लगाएं.

शिवपुराण के अनुसार इस दिन भगवान शंकर के अंश से काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी. अपने अंहाकर में चूर अंधकासुर दैत्य ने भगवान शिव के ऊपर हमला कर दिया था. उसके संहार के लिए भगवान शिव के खून से भैरव की उत्पत्ति हुई. काल भैरव शिव का ही स्वरूप हैं. इनकी आराधना करने से समस्त दुखों व परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है.

पुराणों में बताए हैं 8 भैरव
स्कंद पुराण के अवंति खंड में लिखा है कि भगवान भैरव के 8 रूप हैं. इनमें से काल भैरव तीसरा है. शिव पुराण के अनुसार माना जाता है कि जब दिन और रात का मिलन होता है. यानी शाम को प्रदोष काल में शिव के रौद्र रूप से भैरव प्रकट हुए थे. भैरव से ही बाकी 7 और प्रकट हुए जिन्हें अपने रूप और काम के हिसाब से नाम दिए हैं. उनके नाम, रुरु भैरव, संहार भैरव, काल भैरव, असित भैरव, क्रोध भैरव, भीषण भैरव, महा भैरव और खटवांग भैरव.

भैरव के तीन स्वरूप 
बटुक भैरव - बटुक भैरव को भैरव महाराज का सात्विक और बाल स्वरूप माना जाता है. इनकी पूजा से भक्त को सभी तरह के सुख, लंबी आयु, अच्छी सेहत, मान-सम्मान और ऊंचा पद मिल सकता है.
काल भैरव - ये स्वरूप भैरव का तामस गुण को समर्पित है. ये स्वरूप भक्तों के लिए कल्याणकारी है, इनकी कृपा से भक्त का अनजाना भय दूर होता है. काल भैरव को काल का नियंत्रक माना गया है. इनकी पूजा से भक्त के सभी दुख दूर होते हैं, शत्रुओं का प्रभाव खत्म होता है.
आनंद भैरव - ये भैरव का राजस स्वरूप है. देवी मां की दस महाविद्याएं हैं और हर एक महाविद्या के साथ भैरव की भी पूजा होती है. इनकी पूजा से धन, धर्म की सिद्धियां मिलती हैं.

दूर होती हैं तकलीफ
भैरव का अर्थ है भय को हरने या जीतने वाला. इसलिए काल भैरव रूप की पूजा से मृत्यु और हर तरह के संकट का डर दूर हो जाता है. नारद पुराण में बताया है कि काल भैरव की पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं. बीमारियां और तकलीफ भी दूर होती हैं. काल भैरव की पूजा पूरे देश में अलग-अलग नाम से और अलग तरह से की जाती है. कालभैरव भगवान शिव की प्रमुख गणों में एक हैं.

भैरव अवतार में हैं तीनों गुण
शास्त्रों में कुल तीन तरह के गुण बताए गए हैं- सत्व, रज और तम। इन तीन गुणों से मिलकर ही सृष्टि की रचना हुई है. शिव पुराण में लिखा है कि शिव जी कण-कण में विराजित हैं, इस कारण शिव जी इन तीनों गुणों के नियंत्रक हैं. शिव जी को आनंद स्वरूप में शंभू, विकराल स्वरूप में उग्र और सत्व स्वरूप में सात्विक कहा जाता है. शिव जी के ये तीनों गुण भैरव के अलग-अलग स्वरूपों में बताए गए हैं.

दूर होंगे सभी ग्रह-दोष
जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु तथा केतु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीड़ित हों, उन्हें भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, को बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (108 बार) प्रारम्भ कर प्रतिदि न रूद्राक्ष की माला से 40 जाप करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी.

अकाल मृत्यु से रक्षा
काल भैरव जयंती के दिन भैरव जी के मंदिर जाकर विधि-विधान से पूजा अवश्य करनी चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और आपको उत्तम फल की प्राप्ति होती है। इस दिन भैरवनाथ जी के सामने दीप भी जलाना चाहिए. ऐसा करने से भगवान महाकाल अपने भक्तों की अकाल मृत्यु से सुरक्षा करते हैं.

दांपत्य जीवन में मिलेगी सुख-शांति
जो लोग दांपत्य जीवन में हैं उनको सुख-समृद्धि के लिए काल भैरव की पूजा अवश्य करनी चाहिए. इसके लिए भैरव जी की जन्मतिथि के दिन शाम के समय, शमी वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक जरूर जलाएं. ऐसा करने से रिशतों में प्रेम और बढ़ता है.

कष्ट एवं डर होता है दूर
ग्रंथों में बताया गया है कि भगवान काल भैरव की पूजा करने वाले का हर डर दूर हो जाता है. उसके हर तरह के कष्ट भी भगवान भैरव हर लेते हैं. काल भैरव भगवान शिव का एक प्रचंड रूप है. शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति काल भैरव जंयती के दिन भगवान काल भैरव की पूजा कर ले तो उसे मनचाही सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं. भगवान काल भैरव को तंत्र का देवता भी माना जाता है.

काल भैरव को प्रसन्न करने के उपाय
भगवान भैरव जिन्हें काशी के कोतवाल के नाम से भी जाना जाता है, उनका आशीर्वाद पाने के लिए पूजा के वक्त उन्हें पुष्प, फल, नारियल, पान, सिंदूर आदि चढ़ाना चाहिए. भगवान भैरव की कृपा पाने के लिए उनके मंत्र ॐ काल भैरवाय नमः और ॐ ह्रीं बं बटुकाय मम आपत्ति उद्धारणाय, कुरु कुरु बटुकाय बं ह्रीं ॐ फट स्वाहा का जाप करें. मान्यता है कि भगवान भैरव की पूजा में उनके यंत्र का भी बहुत महत्व है. ऐसे में विधि-विधान से श्री भैरव यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा करवाएं. काल भैरव देवों के देव महादेव के ही रूप हैं, इसलिए इस दिन शिवलिंग की पूजा करना भी शुभ माना गाया है. इस दिन भोलेनाथ की पूजा के वक्त 21 बेल पत्रों पर चंदन से ‘ॐ नमः शिवाय’ लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं. श्री बटुक भैरव आपदुद्धारक मंत्र (ॐ ह्रीं बं बटुकाय मम आपत्ति उद्धारणाय. कुरु कुरु बटुकाय बं ह्रीं ॐ फट स्वाहा) के जाप से शनि की साढ़े साती, ढैय्या, अष्टम शनि और अन्य ग्रहों के अरिष्ट का नाश होता है और शनिदेव अनुकूल होते हैं.

पूजन विधि
अष्टमी तिथि को प्रातः स्नानादि करने के पश्चात व्रत का संकल्प लें. भगवान शिव के समक्ष दीपक जलाएं और पूजन करें. कालभैरव भगवान का पूजन रात्रि में करने का विधान है. शाम को किसी मंदिर में जाएं और भगवान भैरव की प्रतिमा के सामने चौमुखा दीपक जलाएं. अब फूल, इमरती, जलेबी, उड़द, पान नारियल आदि चीजें अर्पित करें. इसके बाद वहीं आसन पर बैठकर कालभैरव भगवान का चालीसा पढ़ना चाहिए. पूजन पूर्ण होने के बाद आरती करें और जानें-अनजाने हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे. प्रदोष काल या मध्यरात्रि में जरूरतमंद को दोरंगा कंबल दान करें. इस दिन ऊं कालभैरवाय नम: मंत्र का 108 बार जाप करें. पूजा के बाद भगवान भैरव को जलेबी या इमरती का भोग लगाएं. इस दिन अलग से इमरती बनाकर कुत्तों को खिलाएं.

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