Dev Uthani Ekadashi 2022: 4 नवंबर को देवउठनी एकादशी, 5 नवंबर को होगा तुलसी- सालिग्राम विवाह
देवउठनी एकादशी इस साल 4 नवंबर को मनाई जाएगी. इस दिन लोग घरों में भगवान सत्यनारायण की कथा और तुलसी-शालिग्राम के विवाह का आयोजन करते हैं.
highlights
.देव उठनी एकादशी पर नहीं है कोई भी विवाह मुहूर्त
.चातुर्मास मास होगा समाप्त
.चावल न खाएं इस दिन
.मांस-मदिरा से रहें दूर
Patna:
देवउठनी एकादशी इस साल 4 नवंबर को मनाई जाएगी. इस दिन लोग घरों में भगवान सत्यनारायण की कथा और तुलसी-शालिग्राम के विवाह का आयोजन करते हैं. देवउठनी एकादशी से मंगलकार्य शुरू हो जाते हैं. हालांकि इस बार शादियों की शुरुआत 23 नवम्बर के बाद होगी. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन से भगवान विष्णु निंद्रा से जागते हैं और इसके अगले दिन तुलसी विवाह किया जाता है. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि इस बार तुलसी विवाह भी 5 नवम्बर को है.
माना जाता है कि देवउठनी एकादशी को भगवान श्रीहरि चार माह की गहरी निद्रा से उठते हैं. भगवान के सोकर उठने की खुशी में देवोत्थान एकादशी मनाया जाता है. इसी दिन से सृष्टि को भगवान विष्णु संभालते हैं. इसी दिन तुलसी से उनका विवाह हुआ था. इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं. परम्परानुसार देव देवउठनी एकादशी में तुलसी जी विवाह किया जाता है, इस दिन उनका श्रंगार कर उन्हें चुनरी ओढ़ाई जाती है. उनकी परिक्रमा की जाती है. शाम के समय रौली से आंगन में चौक पूर कर भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करेंगी. रात्रि को विधिवत पूजन के बाद प्रात:काल भगवान को शंख, घंटा आदि बजाकर जगाया जाएगा और पूजा करके कथा सुनी जाएगी.
हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है. इस एकादशी को 'देवउठनी एकादशी' या 'प्रबोधिनी एकादशी' भी कहा जाता है. इस बार तुलसी विवाह शनिवार 5 नवंबर को पड़ रहा है. सनातन धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व माना गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी विवाह के दिन माता तुलसी और भगवान शालिग्राम की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उनके वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है. साथ ही पति-पत्नी के बीच उत्पन्न होने वाली समस्याएं भी दूर हो जाती हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विधि-विधान के साथ तुलसी विवाह कराने वालों पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा रहती है. मान्यता है कि तुलसी विवाह करने से कन्यादान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है. भगवान शालीग्राम और माता तुलसी का विवाह कराने से वैवाहिक जीवन सुखी रहता है. महिलाएं सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत-पूजन करती हैं.
यह भी पढ़ें: Devshayani Ekadashi 2022: नवंबर से शुरू हो रहा शादियों का सीजन, खूब बजेंगी शहनाइयां
देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि 3 नवंबर : शाम 7:30 मिनट से शुरू
एकादशी तिथि 4 नवंबर : शाम 6:08 मिनट पर समाप्त
तुलसी विवाह शुभ मुहूर्त
तुलसी विवाह : शनिवार 5 नवंबर 2022
कार्तिक द्वादशी तिथि आरंभ: 5 नवंबर सायं 6:08 बजे
द्वादशी तिथि समाप्त: 6 नवंबर सायं 5:06 बजे
देव उठनी एकादशी पर नहीं है कोई भी मुहूर्त
देव उठनी एकादशी 4 नवंबर को है, लेकिन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दौरान सूर्य की स्थिति विवाह के लिए उचित नहीं है. सूर्य इस दौरान तुला राशि में रहेगा साथ ही 23 नवंबर की रात्रि तक शुक्र का तारा भी अस्त रहेगा. अत: सभी मांगलिक कर्म बंद रहेंगे.
चातुर्मास मास होगा समाप्त
देवउठनी एकादशी के दिन चातुर्मास समाप्त होगा. मान्यताओं के अनुसार चतुर्मास में भगवान विष्णु आराम करते हैं. शास्त्रों के अनुसार इस दौरान कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं.
देवउठनी एकादशी का महत्व
देवउठनी एकादशी तिथि से चतुर्मास अवधि खत्म हो जाती है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु शयनी एकादशी को सो जाते हैं. वह इस दिन जागते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन जातक सुबह जल्द उठकर स्वस्छ वस्त्र पहनते हैं. भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं. शास्त्रों के अनुसार विष्णुजी के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने एकादशी को देवी वृंदा (तुलसी) से शादी की थी. इस साल तुलसी विवाह 5 नवंबर को मनाया जाएगा.
इन बातों का रखें विशेष ध्यान
पौराणिक मान्यताओँ के अनुसार भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा के बाद इसी दिन जागते हैं. इसी कारण इस दिन को देवउठनी एकादशी कहा जाता है. ऐसे में भगवान विष्णु का आर्शीवाद पाने के लिए भक्त कई उपाय भी करते हैं, लेकिन आर्शीवाद पाने के साथ कुछ ऐसे नियम भी हैं. जिन्हें देवउठनी एकादशी के दिन भूलकर भी नहीं तोड़ना चाहिए.
चावल न खाएं इस दिन
मान्यताओं के अनुसार किसी भी एकादशी पर चावल का सेवन नहीं करना चाहिए. दरअसल जानकारों के अनुसार केवल देवउठनी एकादशी ही नहीं बल्कि सभी एकादशी पर चावल खाना हर किसी के लिए वर्जित माना गया है. चाहे जातक ने व्रत रखा हो या न रखा हो. माना जाता है कि इस दिन चावल खाने से मनुष्य को अगला जन्म रेंगने वाले जीव में मिलता है.
मांस-मदिरा से रहें दूर
हिंदू धर्म में वैसे ही मांस-मंदिरा को तामसिक प्रवृत्ति बढ़ने वाला माना गया है. ऐसे में किसी पूजन में इन्हें खाने को लेकर मनाही है. ऐसे में एकादशी पर इन्हें खाना तो दूर घर मे लाना तक वर्जित माना गया है. माना जाता है कि ऐसा करने वाले जातक को जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
महिलाओं का अपमान न करें
एकादशी के दिन महिलाओं का भूलकर भी अपमान न करें चाहें वे आपसे छोटी हो या बड़ी. दरअसल माना जाता है कि किसी का भी अपमान करने से आपके शुभ फलो में कमी आती है. वहीं, इस दिन इनके अपमान से व्रत का फल नहीं मिलता है. साथ ही जीवन में कई तरहों की समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
क्रोध से बचें
एकादशी के दिन भक्त भगवान विष्णु की अराधना करते हैं. ऐसे में माना जाता है कि इस दिन सिर्फ भगवान का गुणगान करना चाहिए. साथ ही एकादशी के दिन भूलकर भी किसी पर क्रोध नहीं करना चाहिए और वाद-विवाद से भी दूरी बनाकर रखनी चाहिए.
ब्रह्मचर्य का पालन करें
एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. इस दिन भूलकर भी शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है.
एकादशी के दिन करें ये काम
एकादशी के दिन दान करना उत्तम माना जाता है. एकादशी के दिन संभव हो तो गंगा स्नान करना चाहिए. विवाह संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए एकादशी के दिन केसर, केला या हल्दी का दान करना चाहिए. एकादशी का उपवास रखने से धन, मान-सम्मान और संतान सुख के साथ मनोवांछित फल की प्राप्ति होने की मान्यता है. कहा जाता है कि एकादशी का व्रत रखने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
देवउठनी एकादशी पूजा विधि
देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, पुष्प, फल, अर्घ्य और चंदर आदि अर्पित करें. भगवान की पूजा करके नीचे दिए मंत्रों का जाप करें.
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदिम्।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे। हिरण्याक्षप्राघातिन् त्रैलोक्यो मंगल कुरु।।
इसके बाद भगवान की आरती करें। वह पुष्प अर्पित कर इन मंत्रों से प्रार्थना करें।
इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं संपूर्णतां यातु त्वत्वप्रसादाज्जनार्दन।।
इसके बाद सभी भगवान को स्मरण करके प्रसाद का वितरण करें.
Don't Miss
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
-
Rashmi Desai Fat-Shamed: फैट-शेमिंग करने वाले ट्रोलर्स को रश्मि देसाई ने दिया करारा जवाब, कही ये बातें
-
Sonam Kapoor Postpartum Weight Gain: प्रेगनेंसी के बाद सोनम कपूर का बढ़ गया 32 किलो वजन, फिट होने के लिए की इतनी मेहनत
-
Randeep Hooda: रणदीप हुडा को मिला लता दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार, सोशल मीडिया पर जताया आभार
धर्म-कर्म
-
Vikat Sanakashti Chaturthi 2024: विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत कब? बस इस मूहूर्त में करें गणेश जी की पूजा, जानें डेट
-
Shukra Gochar 2024: शुक्र ने किया मेष राशि में गोचर, यहां जानें किस राशि वालों पर पड़ेगा क्या प्रभाव
-
Buddha Purnima 2024: कब है बुद्ध पूर्णिमा, वैशाख मास में कैसे मनाया जाएगा ये उत्सव
-
Shani Shash Rajyog 2024: 30 साल बाद आज शनि बना रहे हैं शश राजयोग, इन 3 राशियों की खुलेगी लॉटरी