जातिगत जनगणना: पटना हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी, अंतिम फैसला जल्द
पटना हाईकोर्ट में जातिगत जनगणना को लेकर सुनवाई पूरी हो चुकी है. चीफ जस्टिस की बेंच ने लगातार 5 दिनों तक मामले की सुनवाई की और दोनों पक्षों की पूरी बात सुनी.
highlights
- जातिगत जनगणना पर सुनवाई पूरी
- पटना हाईकोर्ट में सुनवाई हुई पूरी
- चीफ जस्टिस की बेंच ने लगातार 5 दिनों तक की सुनवाई
- दोनों पक्षों की बहस हुई पूरी, हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
Patna:
पटना हाईकोर्ट में जातिगत जनगणना को लेकर सुनवाई पूरी हो चुकी है. चीफ जस्टिस की बेंच ने लगातार 5 दिनों तक मामले की सुनवाई की और दोनों पक्षों की पूरी बात सुनी. दोनों पक्षों द्वारा अब कोई कथन कहना शेष नहीं रह गया है. हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. माना जा रहा है सोमवार को पटना हाईकोर्ट जातीय जनगणना पर अपना अंतिम फैसला दे सकता है. इससे पहले आज यानि (07 जुलाई 2023) को बिहार सरकार की तरफ से महाधिवक्ता पी के शाही के द्वारा सरकार का पक्ष हाईकोर्ट में रखा गया.
सरकार ने क्या पक्ष रखा?
01. ये सर्वे है, सर्वे का उद्देश्य आम जन के सम्बन्ध आंकड़ा इकट्ठा करना है.
02. आंकड़ों का उपयोग आमजन के कल्याण और हितों के लिए किया जाएगा.
03. जाति सम्बन्धी सूचना शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश या नौकरियों लेने के समय भी दी जाती है.
04. जातियाँ समाज का हिस्सा है. हर धर्म में अलग अलग जातियाँ होती है.
05. सर्वेक्षण के दौरान किसी भी तरह की कोई अनिवार्य रूप से जानकारी देने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जाता.
06. जातीय सर्वेक्षण का कार्य लगभग 80 फीसदी पूरा हो चुका है.
07. इस तरह का सर्वेक्षण राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है.
08. सर्वेक्षण से किसी के निजता का उल्लंघन नहीं हो रहा है.
09. बहुत सी सूचनाएं पहले से ही सार्वजनिक होती हैं.
हाईकोर्ट ने लगा रखी है अंतरिम रोक
बता दें कि पटना हाईकोर्ट ने ही जातीय जनगणना पर अंतरिम रोक पहले ही लगा रखी है. कोर्ट ने ये जानना चाहा था कि जातियों के आधार पर गणना व आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या किसी भी प्रकार से कानूनी बाध्यता है. साथ ही हाईकोर्ट ने ये भी बिहार सरकार से पूछा था कि क्या अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है? हाईकोर्ट ने ये भी सवाल पूछा था कि क्या जातिगत जनगणना से निजता का उल्लंघन होगा?
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क्या कहा है याचिकाकर्ताओं ने ?
याचिकाकार्ताओँ द्वारा दाखिल की गई याचिका में कथन किया गया है कि इस तरह का सर्वेक्षण कराने का अधिकार राज्य सरकार के अधिकार में नहीं आता और ये असंवैधानिक है और समानता के अधिकार का उल्लंघन भी है. याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता दीनू कुमार द्वारा हाईकोर्चट के समक्ष ये भी कथन किया गया है कि राज्य सरकार जातियों की गणना व आर्थिक सर्वेक्षण करा रही हैं, जो कि ये संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है.
याचिका में कथन किया गया था कि इस तरह का सर्वेक्षण सिर्फ केंद्र सरकार ही करा सकती है. ये केवल केंद्र के अधिकार के अन्तर्गत आता है. बिहार सरकार द्वारा पांच सौ करोड़ रुपए इसपर खर्च किया जा रहा है. बताते चलें कि इसी मामलें पर सुप्रीम कोर्ट में 14 जुलाई,2023 को भी सुनवाई होनी है.
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