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Bihar Elections: बिहार में किसकी सरकार बनेगी इसका फैसला 14 नवंबर को हो जाएगा. लेकिन इससे पहले कई ऐसे दिग्गज प्रत्याशी हैं जिनकी साख दांव पर लगी है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रदेश की एक विधानसभा सीट ऐसी भी है जहां हर बार विधायक ही बदल जाता है. जी हां यहां की जनता किसी एक विधायक पर भरोसा नहीं जताती, बल्कि अपने मत की ताकत के जरिए हर चुनाव में एमएलए साहब ही बदल लेती है. आइए जानते हैं कि वह कौनसी सीट है और बीते चुनाव में इस सीट पर किस दल के नेता को जीत का स्वाद चखने मिला था.
किस सीट पर हर बार बदल जाता है विधायक
कैमूर जिले की राजनीति में मोहनिया विधानसभा सीट हमेशा सुर्खियों में रही है. यह सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है और यहां हर चुनाव में नए राजनीतिक समीकरण बनते और बिगड़ते हैं. आजादी के बाद से कांग्रेस, जनता दल, बसपा, राजद और भाजपा सभी दलों ने इस क्षेत्र में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की है. 2020 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की संगीता पासवान ने इस सीट पर जीत हासिल की थी, लेकिन 2025 का चुनाव पूरी तरह नए परिदृश्य में लड़ा गया है.
त्रिकोणीय मुकाबले ने बनाया दिलचस्प माहौल
इस बार मोहनिया में मुकाबला भाजपा, जन सुराज पार्टी और एक निर्दलीय प्रत्याशी के बीच त्रिकोणीय हो गया है. भाजपा ने संगीता कुमारी को मैदान में उतारा है. स्थानीय नाराजगी के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर हुआ वोटों का ध्रुवीकरण उनके पक्ष में जाता दिखा. महिला मतदाता और भाजपा का कोर वोट बैंक मजबूती से उनके साथ खड़ा रहा है. संगीता देवी ने 61 हजार 235 वोटों से जीत दर्ज की.
वहीं, जन सुराज पार्टी की प्रत्याशी गीता देवी ने चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है. उन्हें विभिन्न जातियों और वर्गों से थोड़ा-थोड़ा समर्थन मिला है. समाजसेवा और जनता से व्यक्तिगत जुड़ाव के कारण वे साइलेंट फैक्टर के रूप में उभरी हैं.
राजद समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी की चुनौती
पूर्व सांसद छेदी पासवान के पुत्र रविशंकर पासवान ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा, लेकिन राजद समर्थित होने के कारण उन्हें पार्टी के पारंपरिक वोट बैंक का लाभ मिला. पासवान समाज के मतदाताओं में उनकी अच्छी पकड़ है और पिता की सियासी छवि ने उनके अभियान को और मजबूत किया.
दलित वोटों का बिखराव और अंतिम समीकरण
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के प्रत्याशी ओमप्रकाश नारायण ने अपने पारंपरिक दलित वोटरों को काफी हद तक बनाए रखा है. हालांकि, कुछ वोटों का बिखराव अन्य उम्मीदवारों की ओर गया, जिससे मुकाबला और पेचीदा हो गया है.
14 नवंबर को होगा फैसला
मोहनिया की लड़ाई जातीय संतुलन, दलगत रणनीति और व्यक्तिगत प्रभाव के बीच अटकी हुई है. भाजपा की संगीता कुमारी मोदी फैक्टर के सहारे आगे दिख रही हैं, रविशंकर पासवान जातीय एकजुटता पर भरोसा कर रहे हैं, जबकि गीता देवी सबके वोट बैंक में सेंध लगाकर निर्णायक खिलाड़ी बन गई हैं. अब 14 नवंबर को मतगणना के दिन यह तय होगा कि जनता का विश्वास किसे मिलेगा और मोहनिया की सियासत किस दिशा में मुड़ेगी.
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