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सांकेतिक तस्वीर Photograph: (Wikimedia)
Bihar Elections 2025: अगर हम आपसे कहें कि बिहार में एक ऐसा गांव है जहां सिर्फ महिलाएं रहती हैं तो शायद आपको भरोसा नहीं होगा. लेकिन ये सच और हम बात कर रहे हैं जहानाबाद जिले का नसरत गांव की, जहां ज्यादातर महिलाएं ही दिखाई देती हैं. यह गांव पटना से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां की खासियत यह है कि शादी के बाद पुरुष काम की तलाश में शहरों या दूसरे राज्यों की ओर चले जाते हैं. वे साल में सिर्फ छठ पर्व या किसी विशेष मौके पर ही अपने परिवार से मिलने लौटते हैं. इस कारण गांव की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर होती है.
पतियों के भेजे पैसों से चलाना पड़ता है खर्चा
नसरत गांव की महिलाएं अपने पतियों के भेजे पैसों से किसी तरह घर का खर्च चलाती हैं, लेकिन वह रकम अक्सर पर्याप्त नहीं होती. गांव की एकमात्र किराना दुकान पर लगभग हर महिला का उधार खाता चलता है. कई बार जरूरत पूरी करने के लिए महिलाएं दुकानदार से उधार लेती हैं, जिसे वे धीरे-धीरे चुकाने की कोशिश करती हैं.
खेती पर निर्भर अर्थव्यवस्था
गांव की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से खेती पर निर्भर है. यहां की महिलाएं सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक खेतों में मेहनत करती हैं, मगर इतने लंबे समय के काम के बदले उन्हें केवल सौ रुपये की मजदूरी मिलती है. इसके बावजूद वे घर, बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल भी संभालती हैं. काम का बोझ अधिक होने के साथ-साथ इन महिलाओं के मन में यह डर भी बना रहता है कि कहीं उनके पति कभी लौटे ही नहीं तो उनका भविष्य क्या होगा.
कई महिलाएं कर्ज के बोझ तले दबीं
गांव की कई महिलाएं कर्ज के बोझ तले भी दब चुकी हैं. बेटी की शादी, पशु खरीदने या खेती-बाड़ी के लिए उन्होंने माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से कर्ज लिया है. कुछ महिलाएं बीमारियों या आपात स्थितियों में भी उधार लेने को मजबूर हुई हैं. अधिकतर घरों पर अब भी बकाया ऋण का बोझ है, जिसे चुकाने की जिम्मेदारी अकेली महिलाओं की है.
फिर भी इन महिलाओं की उम्मीदें जीवित हैं. उन्हें विश्वास है कि अगर राज्य सरकार गांवों में उद्योग और फैक्ट्रियां स्थापित करे, तो उनके पतियों को रोजगार के लिए घर छोड़ना नहीं पड़ेगा. बिहार सरकार ने ग्रामीण इलाकों के विकास के लिए कई आर्थिक पैकेजों की घोषणा की है, लेकिन अब भी गांवों में स्थायी रोजगार के अवसरों की कमी है.
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