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Bihar Elections: बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का प्रचार थमने के साथ ही अब यह आकलन शुरू हो गया है कि किस दल की मेहनत वोट में तब्दील होगी. शुरुआती दौर में कहा जा रहा था कि इस बार प्रचार का वक्त कम है और छठ पर्व के कारण गर्मी नहीं पकड़ पा रहा, लेकिन आंकड़े इस धारणा को गलत साबित करते हैं. सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी और नेताओं की रैलियों का आंकड़ा एक हजार से भी अधिक पहुंच गया.
NDA ने दिखाई संगठित शक्ति
- एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 जनसभाएं कीं,
- गृह मंत्री अमित शाह ने 24
- रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 13
- भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 11 रैलियों को संबोधित किया
- यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने 30 रैलियां और एक रोड शो किया
दिल्ली, मध्यप्रदेश और असम के मुख्यमंत्रियों ने भी प्रचार में हिस्सा लिया.
नीतीश कुमार ने की 84 मीटिंग्स
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बार अपने पुराने तेवर में नजर आए. उन्होंने 84 मीटिंग्स कीं, जिनमें से 11 सड़क मार्ग से थीं. खराब मौसम के चलते कई बार हेलिकॉप्टर उड़ानें रद्द करनी पड़ीं, लेकिन नीतीश ने सड़क मार्ग से करीब 1000 किलोमीटर की यात्रा पूरी की.
चिराग पासवान ने सबको पीछे छोड़ा
एनडीए के सहयोगी दलों में चिराग पासवान सबसे सक्रिय रहे. उन्होंने 186 जनसभाएं कीं, जबकि जीतन राम मांझी ने 32 और उपेंद्र कुशवाहा ने 46 सभाएं कीं, बावजूद इसके कि दोनों की पार्टियां मात्र छह-छह सीटों पर चुनाव लड़ रही थीं.
महागठबंधन ने भी दिखाई जोरदार मौजूदगी
महागठबंधन की रैलियों की बात करें तो
- तेजस्वी यादव सबसे आगे रहे, जिन्होंने 183 सभाएं कीं और हेलिकॉप्टर से 55 घंटे की यात्रा की
- राहुल गांधी ने 16,
- प्रियंका गांधी ने 13 और
- कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने 3 रैलियों को संबोधित किया.
- मुकेश सहनी ने 161, जबकि वाम दलों के नेताओं ने भी बड़ी संख्या में सभाएं कीं
- माले के 149,
- सीपीआई के 113
- सीपीएम के 78। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 25 रैलियां कीं.
नए चेहरे और चुनावी मुद्दे
कांग्रेस के इमरान प्रतापगढ़ी अपनी शेरो-शायरी से भीड़ खींचते नजर आए और उन्होंने 55 सभाएं कीं. वहीं जनसुराज के प्रशांत किशोर तीन महीने से लगातार प्रदेश का दौरा कर रहे हैं और अब तक 160 रैलियों का रिकॉर्ड बना चुके हैं.
मुद्दों की बौछार और बयानों की तल्खी
चुनाव की शुरुआत रोजगार और शिक्षा के मुद्दों से हुई थी, लेकिन अंत तक आते-आते माहौल व्यक्तिगत हमलों और विवादित बयानों से गर्म हो गया. 'जंगलराज' और 'जुमलेबाज' जैसे शब्द बार-बार सुनाई दिए, तो वहीं मंचों पर कट्टा, सिक्सर और छठी मैया जैसे शब्द भी चर्चा में रहे. बिहार का यह चुनाव न सिर्फ रैलियों की संख्या बल्कि बयानबाजी की तीव्रता के लिए भी याद किया जाएगा. जहां छठ पर्व की आस्था और चुनावी सियासत एक साथ गूंजी.
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