बिहार में भारी मतदान के क्या हैं मायने? नीतीश की होगी वापसी या बदलेगी सरकार, जानें क्या कहते हैं आंकड़े

Bihar Election 2025: बिहार में पहले चरण के दौरान हुए भारी मतदान हुआ. अब हर कोई यह जानना चाहता कि पहले चरण के मतदान में किस पार्टी को फायदा हो रहा है. क्या एनडीए फिर से सत्ता में वापसी कर रही है, या बिहार के लोगों ने बदलाव के लिए अधिक मतदान किया है.

Bihar Election 2025: बिहार में पहले चरण के दौरान हुए भारी मतदान हुआ. अब हर कोई यह जानना चाहता कि पहले चरण के मतदान में किस पार्टी को फायदा हो रहा है. क्या एनडीए फिर से सत्ता में वापसी कर रही है, या बिहार के लोगों ने बदलाव के लिए अधिक मतदान किया है.

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Suhel Khan
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Bihar Election 2025

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Bihar Election 2025: बिहार में पहले चरण का मतदान हो चुका है. 121 सीटों पर हुए मतदान में इस बार बंपर वोटिंग हुई है. पहले चरण में 64.46 प्रतिशत मतदान ने सभी दलों की चिंता भी बढ़ा दी है. ऐसे में सभी दल बढ़े हुए मतदान प्रतिशत को अपने पक्ष में मान रहे हैं, लेकिन इससे कुछ दलों में चिंता भी है. क्योंकि पहले चरण में जिन 18 जिलों की जिन सीटों पर मतदान हुआ है, उन सीटों पर 2005 में 46 प्रतिशत वोट पड़े थे.

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जबकि 2010 में 52.60 और 2015 में 56.80 फीसदी मतदान हुआ था. वहीं कोराना काल में 2020 में हुए चुनाव में इन सीटों पर 57 फीसदी मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया था. ऐसे में देखा जाए तो पहले चरण में ही बिहार के मतदाताओं ने 20 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया है. ऐसे में माना जा रहा है कि दूसरे चरण में भी भारी मतदान हो सकता है जो पहले चरण से कहीं अधिक होने का अनुमान है. 
 
बिहार चुनाव में मतदान प्रतिशत का बढ़ना किस बात का संकेत है? क्या ये बढ़ा हुआ मतदान प्रतिशत वर्तमान एनडीए सरकार के पक्ष में है, या लोगों ने सरकार बदलने के लिए भारी मतदान किया है. हालांकि किसी भी चुनाव में मत प्रतिशत का बढ़ना सरकार बदलने का संकेत माना जाता है, लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता. कई बार बढ़ा हुआ मतदान प्रतिशत मौजूदा सरकार के पक्ष में भी गए हैं.

जेडीयू 23 सीटें जीतकर तीसरे स्थान पर थी

बता दें कि पहचे चरण में कुल 1314 उम्मीदवारों का राजनीतिक भविष्य ईवीएम में कैद हो चुका है. इस चुनाव में मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच है.  बिहार के पिछले विधानसभा चुनावों के पहले चरण के मतदान के आंकड़ों के मुताबिक, ये कुछ हद तक बदलाव की ओर संकेत देते हैं. क्योंकि 2020 में पहले चरण की 121 सीटों में से आरजेडी 42 सीटों पर जीतद दर्ज की थी. जबकि बीजेपी 32 सीटें जीती थी, वहीं जेडीयू 23 सीटें जीतकर तीसरे स्थान पर थी.

2020 के चुनाव में 2015 से ज्यादा हुई थी वोटिंग

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में आरजेडी 121 सीटों में से 42 सीटें जीती थी. जबकि बीजेपी 32 और जेडीयू 23 सीटों पर विजयी हुई थी. वहीं वामपंथी दलों को 11, कांग्रेस को 8 और अन्य दलों को 5 सीटें मिली थी. 2015 की तुलना में ये मतदान दो फीसदी अधिक था. वहीं 2015 के चुनाव में पहले चरण में आरजेडी 46, जेडीयू 41 और बीजेपी ने 20 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि कांग्रेस ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं 2010 के विधानसभा चुनाव के पहले चरण में जेडीयू ने 59 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं बीजेपी 46, आरजेडी 15 सीटें पर जीती थी, जबकि कांग्रेस को किसी भी सीट पर जीत नहीं मिली थी.

2020 के चुनाव में मिले भारी जनसमर्थन से एनडीए की सरकार बनी और नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन अगस्त 2022 में नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़कर आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के साथ सरकार बना ली. हालांकि ये सरकार अधिक दिनों तक नहीं चली और जनवरी 2024 में नीतीश कुमार ने आरजेडी से रिश्ता तोड़कर एक बार फिर से बीजेपी के साथ मिलकर बिहार में सरकार बना ली.

2020 में किसे कितनी मिली थीं सीट

बता दें कि 2020 के विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 243 सीटों में से आरजेडी को 23.10 प्रतिशत वोट के साथ 75 सीटों पर जीत मिली थी. जबकि जेडीयू 15.30 फीसदी वोट हासिल कर 43 सीटें जीती थीं. वहीं बीजेपी 19.40 प्रतिशत वोट के साथ 74 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. वहीं कांग्रेस को 9.4 प्रतिशत वोट मिले थे और पार्टी ने 19 सीटें जीती थीं. इनके अलावा अन्य उम्मीदवारों 32.5 प्रतिशत वोट हासिल कर 32 सीटें जीतने में कामयाब रहे थे. अगर गठबंधन का आंकड़ा देखें तो 2020 में एनडीए को 122 और महागठबंधन को 114 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं 2015 के विधानसभा चुनाव में एनडीए 129 और महागठबंधन 110 सीटें जीता था.

किस ओर इशारा कर रहा मतदान का बढ़ना?

ऐसा माना जाता है कि जब किसी चुनाव में मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी होती है तो ये सत्ताधारी दल के खिलाफ होती है. अधिक वोटिंग को एंटी इन्कम्बेंसी माना जाता है यानी मौजूद सस्ता से जनता की नाराजगी. जिसके चलते लोगों ने सरकार बदलने के लिए भारी मतदान किया. क्योंकि एक-दो प्रतिशत वोटों का अंतर भी चुनावी नतीजे बदल सकता है. इन आंकड़ों के बीच बीते कुछ वर्षों में बढ़ता हुआ मतदान प्रतिशत एंटी इन्कम्बेंसी और प्रो-इन्कम्बेंसी को भी दर्शाता है. ऐसे में ये सवाल पैदा होता है कि अधिक मतदान लोगों की सरकार से नाराजगी है या सरकार के प्रति लोगों का समर्थन.

बीते कुछ चुनावों में अधिक मतदान प्रतिशत का आंकड़े अलग रहे हैं. हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में वोट प्रतिशत बढ़ा और सरकार बदल गई. वहीं झारखंड में 2019 के चुनाव में 2014 की तुलना में जिन 17 सीटों पर वोटिंग पर मतदान प्रतिशत बढ़ा उनमें 12 सीटों पर तत्कालीन विजयी दलों को हार का सामना करना पड़ा.

मतदान प्रतिशत के बढ़ने पर क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

विशेषज्ञों का मानना है कि कम या अधिक मतदान का सत्ता का विरोध या समर्थन करने से कोई संबंध नहीं है. हालांकि ये अंतर 6-7 प्रतिशत हो तो इसे मतदाताओं की प्रतिक्रिया से जोड़कर जरूर देखा जाता है. ऐसे तब होता है जब सत्ता विरोधी लहर हो या फिर किसी के पक्ष में जनता की सहानुभूति हो. इसके  अलावा बिहार में बढ़ा हुआ मतदान प्रतिशत मतदाताओं की संख्या में आई कमी की वजह से भी है. क्योंकि बिहार में कराए गए एसआईआर में 65 लाख फर्जी वोटर के नाम सूची से हटा दिए गए.

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