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Bihar Election Hot Seat: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान अब नजदीक है. लिहाजा हर किसी की नजरें अपनी जीत सुनिश्चित करने पर टिकी है. इसके लिए रैलियों, सभाओं के साथ-साथ डोर टू डोर कैंपेन भी किया जा रहा है. जाहिर चुनाव है तो दिग्गज भी चुनावी मैदान में होंगे. भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो उनके लिए भी ये चुनाव काफी अहम माना जा रहा है. जेडीयू के साथ बीजेपी भी इस चुनाव में 101 सीट पर लड़ रही है. बीजेपी के कद्दावरों की बात करें तो उनके लिए सबसे दिलचस्प मुकाबला इस बार तीन सीटों पर देखने को मिल रहा है 1. तारापुर, 2. लखीसराय और 3. कटिहार. आइए जानते हैं इन सीटों पर कौन तीन दिग्गज चुनावी मैदान में हैं.
बीजेपी के दो डिप्टी सीएम की प्रतिष्ठा दांव पर
बिहार चुनाव में इस बार बीजेपी के दो डिप्टी सीएम की साख दांव पर है. जिससे इनका चुनाव न सिर्फ स्थानीय बल्कि राज्यव्यापी सियासी प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है. तारापुर से उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और लखीसराय से उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ताल ठोक रहे हैं. ऐसे में ये दोनों सीट बीजेपी के लिए अहम मानी जा रही है. जबकि इसके अलावा तीसरी सीट कटिहार है यहां से पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद मैदान में हैं. लिहाजा तीनों सीटों पर जातीय समीकरण, स्थानीय नाराजगी और पारिवारिक सियासत ने मुकाबले को बेहद रोचक बना दिया है.
तारापुर: सम्राट चौधरी की प्रतिष्ठा का युद्ध
मुंगेर जिले की तारापुर सीट इस बार पूरे बिहार की नजर में है. यहां उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. उनके सामने राजद के अरुण कुमार हैं, जो वैश्य समाज से आते हैं. यह सीट जातीय रूप से बेहद संवेदनशील है- कुशवाहा (कोइरी) समुदाय का वर्चस्व है, जबकि वैश्य, यादव और अतिपिछड़ा मतदाता भी निर्णायक भूमिका में हैं.
वीआईपी नेता सकलदेव बिंद की ओर से निर्दलीय नामांकन वापस लेकर एनडीए को समर्थन देने से 25,000 से अधिक बिंद वोट बीजेपी की झोली में आते दिख रहे हैं. वहीं करीब 3.10 लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर कुशवाहा समाज सबसे प्रभावशाली है. छह बार विधायक रह चुके शकुनी चौधरी अपने बेटे सम्राट की जीत सुनिश्चित करने में पूरी ताकत झोंके हुए हैं, जिससे मुकाबला और भी प्रतिष्ठित बन गया है.
लखीसराय: विजय सिन्हा बनाम कांग्रेस का कड़ा मुकाबला
लखीसराय सीट पर एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधी टक्कर है. उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा लगातार चौथी बार जीत दर्ज करने की कोशिश में हैं. उनके सामने कांग्रेस उम्मीदवार अमरेश कुमार अनीश हैं, जिन्होंने 2020 में उन्हें महज 10,483 वोटों से हराया था.
इस बार समीकरण बदले हैं- पूर्व विधायक फुलैना सिंह और निर्दलीय सुजीत कुमार अब कांग्रेस के समर्थन में हैं. दोनों के वोट बैंक के जुड़ने से अनीश का पलड़ा मजबूत हुआ है. वहीं, शहर और व्यापारी वर्ग में विजय सिन्हा की पकड़ कायम है. स्थानीय विकास, बिजली-पानी और सड़क के मुद्दों पर नाराजगी भी चर्चा में है. जातीय संतुलन में वैश्य, कुशवाहा, यादव और अल्पसंख्यक मतदाता निर्णायक रहेंगे.
कटिहार: सौरभ अग्रवाल की एंट्री से उलटफेर के आसार
कटिहार विधानसभा क्षेत्र में मुकाबला पूरी तरह दिलचस्प हो गया है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद यहां लगातार पांचवीं बार मैदान में हैं, लेकिन इस बार स्थिति उतनी सहज नहीं है. महागठबंधन के घटक वीआईपी पार्टी से बीजेपी एमएलसी अशोक अग्रवाल के पुत्र सौरभ अग्रवाल ने चुनावी अखाड़े में उतरकर वैश्य वोट बैंक में सेंध लगा दी है. सौरभ को स्थानीय व्यापारी वर्ग का समर्थन मिल रहा है, जबकि उन्हें राजद और कांग्रेस दोनों का बैकअप मिला है.
राजद के पूर्व मंत्री रामप्रकाश महतो निर्दलीय मैदान में हैं और यादव वोटों में सेंध लगा सकते हैं. वहीं, जनसुराज के मोहम्मद गाजी शरीफ मुस्लिम मतों पर प्रभाव डाल रहे हैं. कटिहार के 25 फीसदी मुस्लिम और बड़ी संख्या में वैश्य मतदाता इस बार समीकरण का केंद्र बने हुए हैं. शहर में बीजेपी मजबूत है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में एनडीए की पकड़ कमजोर होती दिख रही है.
तारापुर, लखीसराय और कटिहार ये तीन सीटें अब सिर्फ क्षेत्रीय नहीं रहीं, बल्कि बिहार की सियासी दिशा तय करने वाली सीटें बन गई हैं. जहां सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा चुके हैं, वहीं तारकिशोर प्रसाद के सामने चुनौती अपने ही वोट बैंक को बचाने की है. इन तीनों मुकाबलों के नतीजे ही तय करेंगे कि बिहार की सत्ता में एनडीए की पकड़ कितनी मजबूत बनी रहती है.
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