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बिहार : आरक्षण के मुद्दे पर सरकार को घेरने में जुटी कांग्रेस

सर्वोच्च न्यायालय के आरक्षण को लेकर टिप्पणी के बाद 'आरक्षण' का मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में आ गया है. बिहार में विपक्ष सरकार पर निशाना साध रही है.

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Dalchand Kumar
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बिहार : आरक्षण के मुद्दे पर सरकार को घेरने में जुटी कांग्रेस( Photo Credit : फाइल फोटो)

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सर्वोच्च न्यायालय के आरक्षण को लेकर टिप्पणी के बाद 'आरक्षण' का मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में आ गया है. बिहार (Bihar) में विपक्ष सरकार पर निशाना साध रही है. कांग्रेस अब इस मामले को लेकर केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान से इस्तीफा मांग रही है. बिहार युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ललन कुमार ने शनिवार को कहा कि भाजपा (BJP) आरक्षण विरोधी है, उसे समाप्त करने की साजिश रच रही है.

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कांग्रेस नेता ने कहा कि एक अप्रैल 2018 के आंकड़ों के मुताबिक, देश के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दलितों की संख्या कुल 39 है जबकि कम से कम 169 होनी चाहिए. पिछड़े वर्ग से एक भी प्रोफेसर नहीं है जबकि कम से कम 304 प्रोफेसर होने चाहिए. उन्होंने कहा, 'रेलवे में ग्रुप ए और बी में कुल अफसर 16381 हैं जिसमें पिछड़े वर्गो की संख्या महज 1319 है जबकि सवर्णो की संख्या 11273 है. इसी तरह केंद्र सरकार के कुल 71 विभागों में ए और बी ग्रुप के पिछड़े अफसरों की संख्या है 51384 जबकि सवर्णो की संख्या 216408 है.'

ललन कुमार ने कहा कि अगर अभी भी पिछड़े एकजुट नहीं हुए, तो आने वाले समय में उनकी स्थिति और भी बदतर हो सकती है. उन्होंने कहा कि जब तक भाजपा की सरकार है, तब तक पिछड़ों, दलितों, अल्पसंख्यकों और आदिवासियों को न्याय नहीं मिल सकता, हमें एकजुट होकर भाजपा को सत्ता से बाहर करना चाहिए जिसकी शुरुआत बिहार विधानसभा चुनाव से करनी है.

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कांग्रेस नेता ने कहा कि भाजपा संविधान को बदलकर मनुवाद को लागू करना चाहती है, जितनी जल्दी ये बात जनता के समझ में आए उतना ही बेहतर है. उन्होंने कहा कि अगर आरक्षण के मुद्दे पर रामविलास पासवान की नियत साफ है, तो उन्हें तुरंत मंत्री पद से इस्तीफा देकर राजग से नाता तोड़ लेना चाहिए.

इधर, शुक्रवार को कांग्रेस विधायक अशोक कुमार की अध्यक्षता में बैठक हुई, जिसमें आरक्षण बचाओ संघर्ष मोर्चा के सदस्यों ने हिस्सा लिया. इधर, राजद के अनुसूचित जाति, जनजाति विधायकों ने आरक्षण बचाने को संघर्ष के लिए अलग समिति का गठन किया है. उल्लेखनीय है कि गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है.

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