एक आइडिया ने बदल दी बिहार के सरकारी स्कूलों की तस्वीर, अब लोग दे रहे मिसाल

जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार से मिलते हैं और उनके आइडिया-इनोवेशन से परिचित होते है तो आपको कहना पड़ता है कि वाकई ये एक अच्छा विचार दीर्घकालिक सकारात्मक बदलाव ला सकता है.

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Ritu Sharma
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Education Department in Bihar

बिहार के सरकारी स्कूलों की तस्वीर( Photo Credit : Newsstate Bihar Jharkhand)

बिहार की सरकारी शिक्षा व्यवस्था को लेकर आपकी जो भी धारणा हो, लेकिन जैसे ही आप पूर्वी चंपारण के जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार से मिलते हैं और उनके आइडिया-इनोवेशन से परिचित होते है तो आपको कहना पड़ता है कि वाकई ये एक अच्छा विचार दीर्घकालिक सकारात्मक बदलाव ला सकता है, जैसेकि आजकल बिहार और खासकर पूर्वी चंपारण के सरकारी स्कूलों में बदलाव महसूस किया जा सकता है. बता दें कि ढाई साल पहले तक सरकारी स्कूलों में सुबह की असेंबली नाममात्र की होती थी और सिर्फ प्रार्थना करके रस्में पूरी कर ली जाती थीं, लेकिन आज वही असेंबली चेतना सत्र के नाम से चल रही है. आधे घंटे से 1 घंटे तक चलने वाले इस चेतना सत्र में सामान्य ज्ञान, तार्किक शक्ति, शब्दावली, विभिन्न प्रार्थनाएँ, नैतिक शिक्षा, प्रेरक प्रसंग आदि पर चर्चा की जाती है. इस चेतना सत्र और इसके लिए सामग्री तैयार करने के लिए जिला शिक्षा अधिकारी ने उपखंड स्तर पर एक शैक्षिक प्रकोष्ठ का गठन किया है, जिसमें कुछ शिक्षकों का चयन किया और दैनिक आधार पर चेतना सत्र के लिए सामग्री तैयार करना शुरू कर दिया है. 

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आपको बता दें कि इस चेतना सत्र की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अक्टूबर 2022 में जब तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने पूर्वी चंपारण का दौरा किया था. वे इस विचार से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी से इसे पूरे राज्य में लागू करने की योजना मांगी थी. हालांकि, अब तक ऐसा नहीं हुआ है और खुद जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार इस बात की पुष्टि करते हैं कि पूरे बिहार में इस तरह का नवाचार फिलहाल पूर्वी चंपारण जिले में ही चल रहा है. इस नवाचार को दूसरी पहचान तब मिली जब 23 मार्च 2023 को जिला शिक्षा अधिकारी संजय कुमार को इस अनूठी पहल के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय, दिल्ली द्वारा सम्मानित करने के लिए नामित किया गया.

वहीं इन पंक्तियों के लेखक से बात करते हुए जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार ने कहा कि, ढाई साल पहले जब उन्होंने इस जिले में कार्यभार संभाला था, तब उच्च विद्यालय मंगल सेमिनरी हाई स्कूल में शिक्षक नियोजन कार्यक्रम चल रहा था, इसलिए सबसे पहले उन्होंने इस कार्य को पूरा किया और उसके बाद उनकी नजर पड़ी, जिसके बाद देखा कि उक्त स्कूल की लाइब्रेरी फंक्शनल नहीं हैं  तो 40 दिनों के भीतर उस लाइब्रेरी को फंक्शनल करवाया. उसके बाद स्वच्छ कार्यालय, स्वच्छ विद्यालय नामक अभियान शुरू किया गया, जिसके तहत सप्ताह में एक बार शिक्षा विभाग के कार्यालयों और सभी सरकारी स्कूलों की सफाई सरकारी कर्मचारियों और स्कूली बच्चों द्वारा स्वयं की जाती थी. यह अलग बात है कि आज की तारीख में इन सरकारी स्कूलों में साफ-सफाई के लिए हाउसकीपिंग की व्यवस्था की गयी है. चेतना सत्र शुरू होने के असर के बारे में संजय कुमार ने कहा कि, ''पहले 20 से 30 फीसदी बच्चे ड्रेस में आते थे और अब लगभग 90 फीसदी से भी अधिक बच्चे ड्रेस में आते हैं. स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति भी पहले की तुलना में बढ़ी, वहीं सुबह की असेंबली नियमित होने लगी और शिक्षक भी समाया पर आने लगे.'' प्राथमिक विद्यालय, उच्च विद्यालय, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय आदि के साथ-साथ चेतना सत्र के लिए प्रतिदिन अलग-अलग सामग्री तैयार कर भेजी जाती है.

आपको बता दें कि इन सामग्रियों का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि पूर्वी चंपारण के संग्रामपुर के प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत दो शिक्षक, जो अब बीपीएससी द्वारा आयोजित परीक्षा में सफल हुए हैं. उन्होंने इन पंक्तियों के लेखक को बताया कि चेतना सत्र में जिला शिक्षा अधिकारी प्रतिदिन हमें जो सामान्य ज्ञान के प्रश्न भेजते थे, उससे हमें प्रतियोगी परीक्षा में बहुत मदद मिलती थी. यानी चेतना सत्र न सिर्फ सरकारी स्कूलों के बच्चों बल्कि शिक्षकों के बौद्धिक और तार्किक स्तर को बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है.

इसके साथ ही इसको लेकर संजय कुमार ने बताया कि, पहले वह एक शिक्षक भी थे, उन्होंने लगभग 5 वर्षों तक शिक्षक के रूप में काम किया, उसके बाद उन्होंने बिहार शिक्षा सेवा में सफलता हासिल की और फिर जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर आये. इस सवाल पर कि उन्हें चेतना सत्र और इसके लिए सामग्री तैयार करने की प्रेरणा कहां से मिली, संजय कुमार कहते हैं कि वह खुद एक शिक्षक रहे हैं और उन्होंने स्कूलों में बच्चों की जरूरतों को समझा है. बहरहाल, यह कहा जा सकता है कि संजय कुमार भले ही अभी पदाधिकारी हैं लेकिन उनका शिक्षक मन अब भी सक्रिय है, जो चेतना सत्र के विशेष विषय जैसे नवीन विचारों के रूप में दिखता है. बस जरूरत है कि पूर्वी चंपारण के जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार द्वारा विकसित इस अनूठे-अभिनव शिक्षा मॉडल को पूरे बिहार में लागू किया जाये.

वहीं आपको बता दें कि आज बिहार की सरकारी शिक्षा व्यवस्था को लेकर उठने वाले सवालों का जवाब देने के लिए सरकार की ओर से हर संभव कोशिश की जा रही है. चाहे वह बिहार लोक सेवा आयोग के माध्यम से योग्य और प्रतिभाशाली शिक्षकों के चयन का मामला हो या शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक द्वारा ढांचागत विकास सहित अनुशासन स्थापित करने जैसे प्रयास हो, लेकिन, अगर इन प्रयासों के साथ-साथ एक जिला शिक्षा पदाधिकारी के इनोवेटिव एजुकेशन मॉडल को भी पूरे बिहार में दोहराया जाए, तो शायद परिणाम और भी सुखद हो सकते हैं.

HIGHLIGHTS

  • एक आईडिया ने बदल दी बिहार के सरकारी स्कूलों की तस्वीरें
  • अब लोग बाहर जाकर दे रहे बिहार के स्कूलों कि मिशाल 
  • DEO के प्रयास से बदलने लगी है तस्वीर

Source : News State Bihar Jharkhand

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