logo-image

बिहार में जागरूकता और मौसम के कारण एईएस पर लगा लगाम!

उत्तर बिहार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) या चमकी बुखार की बीमारी गर्मियों में मासूमों की मौत का कहर बनकर आती है. हालांकि इस वर्ष कोरोना काल में इस बीमारी में कमी देखी जा रही है. इसका कारण मौसम और जागरूकता को बताया जा रहा है.

Updated on: 29 May 2021, 12:52 PM

मुजफ्फरपुर:

बिहार में, खास कर उत्तर बिहार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) या चमकी बुखार की बीमारी गर्मियों में मासूमों की मौत का कहर बनकर आती है. हालांकि इस वर्ष कोरोना काल में इस बीमारी में कमी देखी जा रही है. इसका कारण मौसम और जागरूकता को बताया जा रहा है. सरकारी आंकड़ों की बात करें तो पिछले साल मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एसकेएमसीएच) में इस बीमारी से छह बच्चों की मौ हुई थी तथा करीब 75 एईएस से पीड़ित बच्चों को भर्ती कराया गया था. इस साल अब तक चार बच्चों की मौत हुई है.

एसकेएमसीएच द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल 27 मई तक 22 एईएएस के मरीजों को भर्ती किया गया है जिसमें से 4 लोगों की मौत हुई है. इसके अलावे 13 मरीज स्वस्थ होकर वापस अपने घर चले गए हैं. इस साल बिहार में एईएस का पहला शिकार बेतिया के रहने वाले श्रवण शर्मा की पुत्री प्रीति कुमारी थी, जिसकी मौत अप्रेल के महीने में हुई थी. उल्लेखनीय है कि साल 2019 में एईएस से 167 बच्चों की मौत हुई थी, जिसमें अकेले मुजफ्फरपुर के 111 बच्चे शामिल थे.

यह भी पढ़ेंः यास तूफान से बिहार में 7 की मौत, सीएम नीतीश कुमार ने किया मुआवजे का ऐलान

इस बीमारी के कारण डेढ़ दशक में 1000 से ज्यादा मासूमों की जान गई है. चिकित्सकों का कहना है कि इस साल मौसम और जागरूकता के कारण इस बीमारी पर अंकुश लगा है. एसकेएमसीएच के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. जी एस सहनी ने बताया कि इस साल तापमान में बहुत ज्यादा वृद्धि दर्ज नहीं की गई है. इस बीमारी पर शोध करने वाले सहनी कहते हैं कि इसके मुख्य कारण गर्मी, नमी व कुपोषण सामने आए हैं. जब गर्मी 36 से 40 डिग्री व नमी 70 से 80 फीसद के बीच हो तो इसका कहर शुरू होता है. उत्तर बिहार में 15 अप्रैल से 30 जून तक इसका प्रकोप ज्यादा रहता है.

स्वास्थ्य विभाग एईएस पर नियंत्रण को लेकर लोगों को जागरूक कर बीमारी के फैलाव पर काबू करने तथा पीड़ितों के समय रहते प्रभावी इलाज पर जोर दिया, जिसके परिणाम दो साल से देखने को मिल रहे हैं. एईएस के अधिकांश मरीज गरीब तबके के मिले. इसके बाद मुजफ्फरपुर के मुसहरी, मीनापुर, कांटी, औराई तथा बोचहा प्रखंडों में सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण कराया गया. मुजफ्फरपुर के पूर्व जिलाधिकारी चंद्रशेखर सिंह ने कहा, "एईएस से विशेष रुप से प्रभावित पांच प्रखंडों में सोशियो इकोनॉमिक सर्वे कराया गया जिसके आधार पर कई योजनाएं क्रियान्वित की गईं, जिसका लाभ इस बीमारी से बचाव में मिल रहा है."

यह भी पढ़ेंः यास चक्रवात के असर से बिहार में रिकॉर्डतोड़ बारिश, 12-15 जून के बीच पहुंचेगा मानसून

उन्होंने कहा, "गरीबों के 75 प्रतिशत घर बना लिए गए हैं और बाकी बचे घरों का निर्माण तेजी से पूरा किया जा रहा है. सभी लोगों के राशन कार्ड बनाए जा रहे हैं तथा नए आंगनबाड़ी केंद्र खोले गए हैं. बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्रों पर 200 ग्राम दूध का पैकेट उपलब्ध कराया जाता है. सभी लोगों को एईएस के संबंध में जागरुक किया किया जा रहा है." इधर, दो दिन पूर्व एक समीक्षा बैठक के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि एईएस से प्रभावित जिलों में प्रोटोकॉल के अनुसार इलाज हेतु सु²ढ़ व्यवस्था बनाए रखने के निर्देश देते हुए जागरूकता पर विशेष ध्यान देने पर जोर दिया. उन्होंने पिछले वर्ष एईएस से प्रभावित मुजफ्फरपुर के 5 प्रखण्डों में सोशियो इकोनॉमिक सर्वे के आधार पर जो कार्य किये गये थे, उसे एईएस प्रभावित सभी जिलों में क्रियान्वित करने के भी निर्देष दिए हैं.