...तब मुंह छुपाकर Yashasvi Jaiswal को भागना पड़ा, स्ट्रगल के दिनों की है बात

Yashasvi Jaiswal भारत के लिए डेब्यू करने को तैयार हैं. तो आइए इससे पहले आपको उनके स्ट्रगल के दिनों के एक किस्से के बारे में बताते हैं, जिसके बारे में शायद ही जानते होंगे आप...

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Sonam Gupta
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why Yashasvi Jaiswal runs from golgappe shop( Photo Credit : Social Media)

यशस्वी जायसवाल (Yashasvi Jaiswal) उन लाखों युवाओं के लिए उदाहरण बन चुके हैं, जो अपनी जिंदगी में कुछ पाने की ख्वाहिश रखते हैं, लेकिन गरीबी या विपरीत परिस्थितियों के कारण उनके हौसले डगमगा जाते हैं. मगर, जायसवाल ने अपनी मेहनत से वो मुकाम हासिल किया है, जिसका उन्होंने हमेशा से ही सपना देखा था. उन्होंने गरीबी में कई मुश्किलें देखीं, मगर मजाल है की वो मुश्किलें जायसवाल के हौसलों को हिला पाई हों. 12 जुलाई को वो इंटरनेशनल डेब्यू करने वाले हैं, तो आइए उससे पहले उनकी जिंदगी के एक ऐसे किस्से के बारे में बताते हैं, जिसे यादकर यकीनन अब यशस्वी को हंसी ही आती होगी...

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Yashasvi Jaiswal को मुंह छुपाकर पड़ा था भागना

आज यशस्वी के पास वो सब कुछ है जिसकी उन्होंने कभी कल्पना की होगी. मगर, एक वक्त ऐसा भी था, जब वो अपने चाचा के साथ गोलगप्पे बेचा करते थे. ये किस्सा उनके उन्हीं दिनों का है. असल में, यशस्वी अपने सपनों को पूरा करने के लिए 12 साल की उम्र में मुंबई आ गए थे. वो क्रिकेट तो खेला करते थे, लेकिन साथ ही गोलगप्पे भी बेचते थे. मगर, उनके दोस्तों को इस सच्चाई के बारे में पता नहीं था और वो इसे छिपाए ही रखना चाहते थे. एक बार हुआ क्या, यशस्वी ठेले पर गोलगप्पे बेच रहे थे तभी उनके वो दोस्त अचानक ही सड़क किनारे उनके ठेले पर गोलगप्पे खाने आ गए. यशस्वी उनको देखते ही वहां से छुपते-छुपाते वहां से भाग निकले.

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खुद जायसवाल ने सुनाई थी स्ट्रगल की कहानी

IPL 2023 में 625 रन बनाकर 'इमर्जिंग प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट' अवॉर्ड जीतने वाले Yashasvi Jaiswal भारतीय टीम में डेब्यू के लिए तैयार हैं. खुद कप्तान रोहित शर्मा ने ऐलान कर दिया है की 12 जुलाई से वेस्टइंडीज के साथ खेले जाने वाले पहले टेस्ट मैच में जायसवाल ओपनिंग करेंगे.

आईपीएल में मुंबई के खिलाफ शतक लगाने के बाद यशस्वी ने अपने स्ट्रगल के बारे में बताते हुए कहा था कि, "वहां जिंदगी बहुत मुश्किल थी. बंजारों की तरह टेंट में रातें गुजारना बहुत ही भयानक एक्सपीरियंस था. लाइट नहीं होती थी और हमारे पास इतने पैसे नहीं होते थे की हम किसी अच्छी जगह पर जाकर रह सकें. यही नहीं, मैदान पर बने टेंट में आसरे के लिए भी हमें मेहनत करनी पड़ी. जब टेंट में सोने को जगह मिली तो वहां रहने वाले माली बुरा बर्ताव करते थे. कई बार तो पीट देते थे."

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Source : Sports Desk

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