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Year Ender 2022: हिजाब विवाद, नुपुर शर्मा का बयान, अग्निवीर आंदोलन... इन विवादों ने मचाई हलचल

जनवरी में दक्षिण के राज्य से शुरू हुआ हिजाब विवाद (Hijab Controversy) देश के कई अन्य हिस्सों तक पहुंचा, तो नुपुर शर्मा (Nupur Sharma) के बयान ने कई देशों को भारत के आंतरिक मामलों में कूदने का मौका दे दिया.

Updated on: 30 Dec 2022, 07:53 PM

highlights

  • कर्नाटक से शुरू हुआ हिजाब आंदोलन अन्य दूसरे राज्यों तक फैला
  • पैगंबर साहब पर नूपुर शर्मा के बयान की गूंज मुस्लिम देशों तक फैली
  • ज्ञानव्यापी मस्जिद, शिवसेना में दो फाड़ ने भी राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं

नई दिल्ली:

साल 2022 कई घटनाओं का साक्षी बना. अच्छी-बुरी हर तरह की. इस साल कई विवाद भी सामने आए, जिनमें से कुछ ने देश की सीमाएं पार कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सुर्खियों को जन्म दिया. घरेलू मोर्चे पर तो कई विवाद अच्छे-खासे आंदोलन में तब्दील हो गए. हालांकि इनमें से अधिसंख्य के पीछे राजनीति अधिक रही. यही वजह है कि इनमें से कुछ विवादों ने राजनीतिक समीकरण बदलने का काम तक किया. फिर भी जनवरी में दक्षिण के राज्य से शुरू हुआ हिजाब विवाद (Hijab Controversy) देश के कई अन्य हिस्सों तक पहुंचा, तो नुपुर शर्मा (Nupur Sharma) के बयान ने कई देशों को भारत के आंतरिक मामलों में कूदने का मौका दे दिया. इसी तरह 'अग्निपथ' योजना के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन निहित राजनीति से प्रेरित मसले के तौर पर सामने आया, तो ज्ञानव्यापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid Controversy) विवाद ने एक बार फिर सामाजिक सौहार्द्र के प्रति आशंकित कर दिया. विदा लेते 2022 के ऐसे ही चंद विवादों पर एक नजर डालते हैं, जिनकी गूंज काफी समय तक सुनाई दी.

हिजाब विवाद
साल की शुरुआत में भारतीय जनता पार्टी शासित कर्नाटक राज्य के उडुपी में छह मुस्लिम छात्राओं को कॉलेज में प्रवेश करने से रोक दिया गया, क्योंकि उन्होंने हिजाब पहन रखा था. शिक्षकों के मुताबिक हिजाब कॉलेज के निर्धारित ड्रेस कोड में नहीं आता था. छात्राओं ने शिक्षकों का विरोध किया और कॉलेज प्रबंधन के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया. इसके बाद दूसरे कॉलेज के छात्रों के एक समूह ने भगवा शॉल पहनकर कॉलेज आना शुरू कर दिया. इससे छात्रों के दो गुटों में मारपीट तक हो गई. मामला कर्नाटक हाई कोर्ट तक पहुंचा, जिसने एक आदेश जारी कर कहा कि हिजाब पहनना इस्लाम की आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है. साथ ही इसका इस्तेमाल नहीं करने से देश में संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं होता है. कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश ने अन्य दूसरे राज्यों में विवाद की ज्वाला भड़का दी. हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों के छात्रों ने एक-दूसरे के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया. इस बीच कुछ लड़कों ने नीले रंग का स्कार्फ पहन मुस्लिम छात्राओं  के समर्थन में 'जय भीम' के नारे भी लगाए. पूरे राज्य में विपरीत विचारों वाले कई समूह उभर कर आए, जिस कारण कर्नाटक सरकार को कुछ दिनों के लिए कॉलेजों में छुट्टियों की घोषणा करनी पड़ी. मुस्लिम छात्रओं ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करने के लिए याचिका दायर कर परीक्षाओं का बहिष्कार कर दिया. विरोध-प्रदर्शन के दौरान मुस्लिम लड़कियों ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने की अनुमति नहीं दिए जाने पर अपनी निराशा व्यक्त की. उनका कहना था कि इस तरह उन्हें उनके समानता के मौलिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है. मौलिक अधिकारों के हनन को आधार बना सर्वोच्च न्यायालय में इस विवाद को लेकर तमाम याचिकाएं दाखिल की गईं. मध्य प्रदेश और पुडुचेरी में भी इसी तरह का विवाद उठा, जहां स्कूल-कॉलेजों में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध हटाने की मांग सड़कों पर आ गई. इस दौरान कई स्थानों पर पथराव से कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हो गई. विधानसभा में भी इस मुद्दे पर राजनीतिक पार्टियों में नोकझोंक हुई. 9 फरवरी को विधानसभा सत्र के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कर्नाटक सरकार से हिजाब विवाद को हल करने का आग्रह किया. साथ ही विपक्षी दलों से इस मसले पर राजनीतिक लाभ उठाने से बाज आने का आह्वान भी किया. कर्नाटक हाई कोर्ट को अभी भी यह तय करना बाकी है कि हिजाब पहनना धर्म के लिहाज से जरूरी है या नहीं. हालांकि यह संविधान के अनुच्छेद 25 के आधार पर तय किया जाना है. 

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नूपुर शर्मा के बयान ने पैदा कर दी जबर्दस्त गर्मी
ज्ञानवापी मस्जिद मुद्दे पर एक टीवी बहस में भारतीय जनता पार्टी की तत्कालीन प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने कहा कि मुसलमान हिंदू आस्था का मजाक उड़ा रहे हैं और मस्जिद परिसर के अंदर मिले 'शिवलिंग' को महज एक फव्वारा कह रहे हैं. इसी बहस की गर्मागर्मी के बीच नूपुर ने पैगंबर मोहम्मद साहब के बारे में एक आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी. इसी बहस पर दिल्ली बीजेपी के तत्कालीन मीडिया प्रमुख नवीन कुमार जिंदल ने भी पैगंबर के बारे में अपमानजनक बयान ट्वीट कर दिया. मामला बढ़ा और टीवी बहस को लेकर नूपुर शर्मा के खिलाफ कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप में एक प्राथमिकी दर्ज की गई. इसके साथ ही उनके भाषण का एक वीडियो क्लिप ट्विटर पर वायरल हो गया. शहर-शहर इसके विरोध में व्यापक विरोध-प्रदर्शन हुए और हिंसा के मामले भी सामने आए. नूपुर शर्मा की टिप्पणी पर कई मुस्लिम देशों ने भी प्रतिक्रिया व्यक्त कर अपनी आपत्ति दर्ज कराई. कतर और अफगानिस्तान समेत 14 देशों मुस्लिम देशों नूपुर शर्मा की टिप्पणी पर भारत की आलोचना की. इस विवाद की वजह से खाड़ी देशों के बाजारों में भारतीय उत्पादों को तगड़ा झटका लगा. नूपुर की टिप्पणी के जवाब में भाजपा को एक बयान जारी करना पड़ा. इसमें कहा गया कि पार्टी सभी धर्मों का सम्मान करती है और किसी भी धार्मिक व्यक्तित्व के अपमान की कड़ी निंदा करती है. इसके बाद नूपुर शर्मा को पांच जून को बीजेपी से निलंबित कर दिया गया था. पार्टी ने जिंदल को भी निष्कासित कर दिया. फिर भी कुछ देशों ने भारतीय राजदूतों से इस मसले पर माफी मांगने को कहा. भारत में विपक्ष ने भी दुनिया भर में भारत की गलत छवि पेश किए जाने पर भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा. पाकिस्तान के कराची शहर में तो इस विवाद की प्रतिक्रियास्वरूप कथित तौर पर एक हिंदू मंदिर में देवी-देवताओं की मूर्तियों को नष्ट कर दिया गया. नूपुर ने विवाद बढ़ता देख माफी मांगी और कहा कि 'महादेव' के खिलाफ अपमान पर उन्हें इस तरह से जवाब देना पड़ा. उन्होंने इसके साथ ही कई स्क्रीनशॉट पोस्ट किए जिसमें उन्हें बलात्कार और सिर कलम करने की धमकियां दी गई थीं. इसके साथ ही नूपुर शर्मा ने ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर पर उनके खिलाफ नफरत फैलाने का आरोप लगाया. सुप्रीम कोर्ट ने भी पैगंबर पर टिप्पणी के लिए नूपुर की आलोचना की और कड़े शब्दों में कहा कि उनके बयान ने पूरे देश में आग लगा दी. पीठ ने संकेत दिया कि उनकी टिप्पणी या तो राजनीतिक उद्देश्य के आधार पर की गई थी या एक सस्ते प्रचार का हथकंडा था।

अग्निवीर के विरोध में हिंसक आंदोलन 
14 जून को केंद्र सरकार ने सशस्त्र बलों के लिए भारतीय युवाओं को लेकर एक अल्पकालिक भर्ती योजना 'अग्निपथ' शुरू की. इस योजना के तहत 17.5 से 21 वर्ष की आयु के युवा चार साल की अवधि के लिए 'अग्निवीर' के रूप में सेना की तीनों सेवाओं में से किसी में शामिल हो सकते हैं. कथित तौर पर 'अग्निपथ' के तहत भर्ती किए गए सैनिकों को चार साल बाद सेवा से मुक्त कर दिया जाना था. सरकार द्वारा इस योजना की घोषणा के तुरंत बाद बिहार और राजस्थान समेत कुछ अन्य स्थानों पर विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए. आंदोलनकारियों की चिंता नौकरी की सुरक्षा और बाद की पेंशन से जुड़ी थी. बिहार के एक रेलवे स्टेशन पर तो हिंसक विरोध में कई ट्रेनों को आग के हवाले कर दिया गया. इस मसले पर योजना के खिलाफ आंदोलन के बीच राजनीति भी शुरू हो गई. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्विटर पर सरकार से युवाओं के धैर्य की परीक्षा नहीं लेने को कहा, तो बिहार में तब नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने बीजेपी से अपील करते हुए कहा कि अग्निवीर बनाकर युवाओं के हौसले को मत तोड़िए. बिहार के अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश समेत देश के कई अन्य हिस्सों में हिंसक विरोध प्रदर्शन देखा गया. यह योजना देश के बढ़ते वेतन खर्च और पेंशन के भारी-भरकम बोझ को कम करने का एक प्रयास था, लेकिन इसका उद्देश्य युवा और चुस्त-दुरुस्त सैनिकों को सशस्त्र बलों में शामिल करना भी था. इतना ही नहीं इसके जरिये भर्तियों की औसत आयु को 32 से घटाकर 26 वर्ष भी करने का संकेत दिया गया था. यह योजना युवाओं के लिए चिंता का विषय थी, जो सोच रहे थे अधिकांश भर्तियां चार साल की सेवा तक सीमित होंगी, जिसके बाद उनमें से 75 फीसदी पेंशन के लिए अपात्र होंगे. सेवानिवृत्ति के बाद स्थायी नौकरी या स्वास्थ्य लाभ देने में विफल रहने के लिए भी इस योजना की आलोचना की हुई.

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ज्ञानवापी मस्जिद विवाद
मई की शुरुआत में वाराणसी की एक अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को ज्ञानवापी मस्जिद की ढांचे की जांच करने का निर्देश दिया. वाराणसी के एक वकील ने ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण से पहले वहीं स्थित मंदिर को गिराए जाने दावा करते हुए निचली अदालत में याचिका दायर कर मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग की थी. वास्तव में हालिया विवाद तब शुरू हुआ जब पांच हिंदू महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के भीतर श्रृंगार गौरी मंदिर पूजा-अर्चना करने की मांग करते हुए वाराणसी की अदालत में एक मुकदमा दायर किया. इसके बाद मस्जिद कमेटी सुप्रीम कोर्ट चली गई. गौरतलब है कि इससे पहले भी 1991 में वाराणसी की अदालत में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें याचिकाकर्ताओं, स्थानीय पुजारियों ने ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र में पूजा करने की अनुमति मांगी थी. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि 16वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल में उसी के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया था. मस्जिद कमेटी की आपत्तियों के बावजूद मस्जिद के उन हिस्सों में सर्वे कराया गया, जो याचिकाकर्ताओं के मुताबिक कभी मंदिर का हिस्सा हुआ करते थे. इसको लेकर नेताओं के बीच भी तीखी नोकझोंक हुई. ट्विटर पर तो यह विवाद राजनीतिक घमासान में बदल गया. कोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया, 'काशी की ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करने का आदेश 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का खुला उल्लंघन है.' ओवैसी की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने एआईएमआईएम प्रमुख को दोहरे मानकों वाला करार दिया. इस मसले पर मुसलमान और हिंदू दोनों ही अपने-अपने पक्ष पर अडिग थे और आज भी हैं. इस विवाद ने ऐसी अटकलों को जन्म भी दिया कि जहां कहीं भी मस्जिद है, वहां कभी मंदिर रहा होगा.

शिवसेना में दो फाड़
20 जून को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने विधान परिषद चुनावों के दौरान पार्टी के कुछ विधायकों द्वारा क्रॉस वोटिंग पर चर्चा करने के लिए शिवसेना विधायकों की एक बैठक बुलाई थी. हालांकि शिवसेना अपनी दोनों सीटें जीतने में कामयाब रही, लेकिन यह चिंताजनक था कि बागी एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में पार्टी के कम से कम 10 विधायकों ने भाजपा उम्मीदवार को वोट दिया. इस पर मची रार के बीच उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना से किनारा कर बागी नेता एकनाथ शिंदे अधिकांश पार्टी विधायकों के साथ भाजपा शासित गुजरात और फिर असम पहुंच गए. शिंदे गुट ने उद्धव ठाकरे की अपील और धमकियों को रत्ती भर कान नहीं दिया. शिंदे का कहना था कि 2019 का जनादेश चुनाव पूर्व सहयोगी भाजपा के साथ सरकार बनाने के लिए था. ऐसे में कांग्रेस और राकांपा के साथ सरकार का गठन करना जनता के साथ विश्वासघात था. उद्धव ने शिंदे को सुलह-सफाई के लिए मुंबई लौटने और बागी गुट को मनाने की तमाम कोशिशें कीं, लेकिन शिंदे गुट ने महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार बनाने के लिए शिवसेना और भाजपा के बीच समझौता करने पर जोर दिया. नतीजतन वार्ता में कोई प्रगति नहीं हो सकी. जबर्दस्त ड्रामे के बाद मामले में एक नाटकीय मोड़ आया जब उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के एक दिन बाद ही शिवसेना के विद्रोही नेता शिंदे ने महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने उनके डिप्टी के रूप में शपथ ली. गौरतलब है कि कांग्रेस, राकांपा के साथ महा विकास अघाड़ी के सीएम बतौर फ्लोर टेस्ट से पहले ही उद्धव ने सीएम पद छोड़ दिया था.

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कुछ अन्य विवाद
जदयू प्रमुख नीतीश कुमार ने अगस्त में दूसरी बार भाजपा से पल्ला झाड़ लिया. आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बनकर नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में अपनी अहम भूमिका को साफ तौर पर साबित किया है. अब वह फिर से भाजपा विरोधी ताकतों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं कि नरेंद्र मोदी पीएम न बन सकें. कांग्रेस नेता राहुल गांधी की टिप्पणी- सरकार सो रही है और चीन युद्ध की तैयारी कर हमारे जवानों को पीट रहा है ने अच्छा-खासा राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया. राहुल गांधी का यह बयान अरुणाचल प्रदेश के तवांग में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच फिर हुई झड़प के बाद आया था. राहुल गांधी की इस टिप्पणी को भारतीय सेना और मोदी सरकार को कथित तौर पर नीचा दिखाने वाली करार दिया गया. साथ ही इस मसले पर राहुल गांधी को केंद्र सरकार और जनता के एक वर्ग से तीखी आलोचना झेलनी पड़ी.