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Year Ender 2022: रूस-यूक्रेन युद्ध, इमरान सत्ता से बाहर और जिनपिंग को मिली अकूत ताकत... बड़ी वैश्विक घटनाएं

साल की शुरुआत के दूसरे महीने ही रूसी सेना यूक्रेन पर हमला कर देती है. इधर श्रीलंका ऐतिहासिक आर्थिक संकट की चपेट में आ जाता है. इमरान खान को सत्ता से बेदखल होना पड़ता है, तो ब्रिटेन और ईरान में भी जबर्दस्त उथल-पुथल मचती है... कोरोना कहर तो खैर है ही.

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Nihar Saxena
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रूस-यूक्रेन युद्ध साल की सबसे बड़ी घटना,जिससे समग्र विश्व हुआ प्रभावित( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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जाता हुआ 2022 साल उथल-पुथल भरा रहा है. यह कई देशों में विद्रोह का साक्षी बना. कुछ देशों में नए चेहरे इसने देखे. तानाशाह सत्ता से हाथ धो बैठे. और तो और, पश्चिम से पूर्व तक यह साल आर्थिक झटकों को झेलने वाला भी रहा. कह सकते हैं कि 2022 नए संघर्षों और नए गठबंधनों का साल रहा है. इस वर्ष यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोदिमिर जेलेंस्की (Volodymyr Zelenski), फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) का कद बढ़ा. एक तरह से 2022 वैश्विक स्तर पर कई प्रमुख घटनाओं का साक्षी बना. रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War), श्रीलंका के आर्थिक संकट (Srilanka Crisis) और चीन में अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शनों के लिए तो यह साल खासतौर से याद रखा जाएगा. 2022 की ऐसी ही बड़ी वैश्विक घटनाओं पर एक नजर...

रूस-यूक्रेन युद्ध
इस साल फरवरी में रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया. यह इयर एंडर लिखे जाने तक रूस-यूक्रेन संघर्ष अपने 309वें दिन में प्रवेश कर चुका है और दोनों ही पक्षों के लिए एक कठिन चुनौती साबित हो रहा है. कीव पर भयानक हमला बोल यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से पर कब्जा करने के बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को अब युद्ध जारी रखने के रूप में बड़ी चुनौती झेलनी पड़ रही है. इस बीच उनके खराब स्वास्थ्य और आंतरिक संघर्ष की खबरें भी सिर उठा रही हैं. अब तक रूसी और यूक्रेनी सेना के एक लाख के लगभग जवान हताहत रहे हैं. यूक्रेन के लोगों के लिए यह सर्दी का मौसम कठिन बीतने वाला है, क्योंकि रूसी मिसाइलों ने उनके ऊर्जा संयंत्रों को बर्बाद करके रख दिया है. हालांकि इस युद्ध में यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोदिमिर जेलेंस्की नायक बनकर उभरे हैं, जिन्होंने न केवल रूसी आक्रमण के खिलाफ दृढ़ता से खड़े होने का साहस दिखाया, बल्कि पश्चिमी देशों से एका करने में भी सफल रहे. 

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श्रीलंका में ऐतिहासिक आर्थिक संकट और जनांदोलन
श्रीलंका में मार्च के अंत से ही गहराते आर्थिक संकट के बादल और काले होने लगे थे. अप्रैल के आते-आते ये बादल हिंसक जनांदोलन के रूप में सत्ता-प्रतिष्ठान पर बरसने लगे. गोटबाया राजपक्षे को राष्ट्रपति तो दो बार के राष्ट्रपति और तत्कालीन प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को पद छोड़ना पड़ा. कोलंबो से एक धरना-प्रदर्शन से शुरू हुए आंदोलन ने देखते ही देखते पूरे देश को चपेट में ले लिया. आर्थिक संकट से आजिज जनता सरकार में बदलाव चाहती थी. ऐसे में रानिल विक्रमसिंघे को नया राष्ट्रपति चुना गया, जिसे जुलाई में राजपक्षे खेमे का भी समर्थन मिल गया. सरकार ने आर्थिक संकट के लिए कोरोना महामारी को दोषी ठहराया, जिसकी वजह से श्रीलंका का पर्यटन व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ. इसकी वजह से बाद में ईंधन और विदेशी मुद्रा भंडार की कमी हो गई. हालांकि कई विशेषज्ञ ऐतिहासिक आर्थिक संकट के लिए राष्ट्रपति राजपक्षे के खराब आर्थिक कुप्रबंधन को दोषी ठहराते हैं. देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए श्रीलंका को आईएमएफ से ऋण चाहिए. यानी श्रीलंका का आर्थिक दुश्वारियां फिलहाल कम नहीं हुई हैं, जो कभी भी राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा दे सकती हैं.

इमरान खान का निष्कासन
2018 में सत्ता में आए वजीर-ए-आजम इमरान खान अप्रैल के महीने में संसद में अविश्वास मत प्रस्ताव के कारण सत्ता से बाहर हो गए. साथ ही वह इतिहास में भी दर्ज हो गए, क्योंकि अविश्वास प्रस्तव से सत्ताच्युत होने वाले वह पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री रहे. अप्रैल में अविश्वास मत प्रस्ताव हारने के बाद उन्होंने अमेरिका नीत विदेशी साजिश का हाथ इसके पीछे बताया. उनका दावा था कि रूस, चीन और अफगानिस्तान पर उनकी स्वतंत्र विदेश नीति की वजह से उन्हें निशाना बना सत्ता से बाहर किया गया. इसके बाद उन्होंने व्यापक पैमाने पर आजादी का मार्च निकाला, जिसमें जबर्दस्त भीड़ उमड़ी. इमरान खान ऐसा लगता है कि भीड़ को समझाने में सफल रहे कि वह अपने उत्तराधिकारी और वर्तमान प्रधान मंत्री शाहबाज शरीफ को मोहरा बना अमेरिकी साजिश का शिकार बने. विगत दिनों लांग मार्च के दौरान उनपर कथित तौर पर जानलेवा हमला भी हुआ. फिलहाल वह जल्द चुनाव कराने को लेकर हुंकार भर रहे हैं और नए सिरे से आंदोलन की रणनीति तैयार कर रहे हैं. 

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ईरान में हिजाब कानून का ऐतिहासिक विरोध
ईरान में महिलाओं के लिए जरूरी हिजाब कानून के विरोध में 16 सितंबर से हजारों आम नागरिक सड़कों पर उतर आए हैं. इसकी  वजह बनी 22 साल की कुर्द युवती महसा अमिनी की पुलिस हिरासत में मौत. उसे सलीके से हिजाब नहीं पहनने पर तेहरान में नैतिकता पुलिस ने हिरासत में लिया था, जहां उसकी मौत हो गई. इसके बाद हिजाब विरोधी आंदोलन आग की तरह पूरे ईरान में फैल गया. कह सकते हैं कि यह आंदोलन 1979 की इस्लामी क्रांति द्वारा स्थापित ईरान के लोकतंत्र के लिए सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक बन गया. अब तक ईरान पुलिस ने विरोध प्रदर्शनों का समर्थन करने के लिए प्रसिद्ध अभिनेत्रियों, खिलाड़ियों, अभिनेताओं को गिरफ्तार किया है. मानवाधिकार समूहों का दावा है कि ईरानी बलों के दमन में सैकड़ों आंदोलनकारियों को अपनी जान गंवानी पड़ी है. हालांकि ईरान सरकार पर आंदोलन का दबाव रंग भी लाया और नैतिकता पुलिस विभाग को समाप्त कर दिया गया. साथ ही कहा गया है सरकार हिजाब कानून में नरमी लाने की दिशा में विचार-विमर्श कर रही है. 

चीन में ऐतिहासिक विरोध-प्रदर्शन
चीन ने इस साल दो बड़े घटनाक्रम देखे. सबसे पहले तो शी जिनपिंग के लिए चीनी कांग्रेस में तीसरी बार राष्ट्रपति पद का रास्ता साफ किया गया. दूसरे सख्त जीरो कोविड पॉलिसी के खिलाफ त्रस्त लोग सड़कों पर उतर आए. नवंबर में बीजिंग और शंघाई सहित चीन के कई प्रमुख शहरों में हजारों लोग सड़कों पर जीरो कोविड पॉलिसी के खिलाफ उतरे. शी जिनपिंग के खिलाफ दीवारों पर नारे लिखे गए, तो कहीं-कहीं पर कोरे सफेद कागज दिखा विरोध का इजहार किया गया. गौरतलब है कि इन विरोध-प्रदर्शन की शुरुआत चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस के साथ हुई. 1989 में लोकतंत्र समर्थक रैलियों को कुचलने के बाद से विरोध की ऐसी लहर चीन में नहीं देखी गई थी. तालाबंदी, सेंसरशिप और जांच पड़ताल के बावजूद राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए भी आंदोलन तेज हुआ. इसका बेहद नकारात्मक प्रभाव शी जिनपिंग की छवि पर पड़ा है. हालांकि इसके दबाव में कड़े कोरोना प्रतिबंधों में जबर्दस्त ढील देने से समग्र चीन में कोरोना की एक नई लहर सामने आई है. 

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अमेरिकी में मध्यावधि चुनाव
सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ जनादेश के रूप में देखे जाने वाले अमेरिका के मध्यावधि चुनाव का रिपब्लिकन फायदा उठाने में असफल रहे. बेहद नजदीकी अंतर से डेमोक्रेट्स ने सीनेट पर नियंत्रण बरकरार रखा है. हालांकि हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में रिपब्लिकन मामूली बढ़त पर हैं. यह मध्यावधि चुनाव इसलिए रोचक कहे जाएंगे कि इन्होंने डोनाल्ड ट्रंप की महत्वाकांक्षाओं पर पानी फेर दिया. ट्रंप इसके जरिये अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर दूसरे कार्यकाल के लिए आगे बढ़ रहे थे. उनका 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' आंदोलन और व्यापक रिपब्लिकन एजेंडा भी इन परिणामों के साथ धाराशायी हो गया. रिपब्लिकन के लिए मध्यावधि चुनाव में फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डीसांटिस की जीत उम्मीद की किरण बनकर उभरी है. डीसांटिस को ट्रंप के लिए न सिर्फ संभावित चुनौती माना जा रहा है, बल्कि सबसे पुरानी पार्टी के तारणहार के रूप में भी देखा जा रहा है.

यूके का राजनीतिक संकट
बढ़ती महंगाई, जारी हड़तालें, आर्थिक संकट और यूरोप में युद्ध... ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के सामने ये बड़ी चुनौतियां हैं. सुनक सत्ता में आए जब उनकी पूर्ववर्ती ट्रस को सिर्फ 44 दिनों के बाद पद से इस्तीफा देना पड़ा. देखा जाए 12 साल सत्ता में रहने के बाद कंजर्वेटिव पार्टी आज पहले से कहीं अधिक विभाजित नजर आती है. इस साल जुलाई में तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने लगभग 60 मंत्रियों का विश्वास खोने के बाद पद से इस्तीफा दे दिया था. गौरतलब है कि ब्रिटेन में राजनीतिक अस्थिरता तेजी से बढ़ी है. 2016 से डेविड कैमरन, थेरेसा मे, जॉनसन और ट्रस के बाद ऋषि सुनक पांचवें प्रधान मंत्री बने हैं. सुनक के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं, क्योंकि उनके समक्ष देश को आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता से बाहर निकालने की पहाड़ जैसी जिम्मेदारी है.

चीन में शी का प्रभुत्व और वर्चस्व बढ़ा
शी जिनपिंग का चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रभुत्व और भी बढ़ गया है. इसके स्थायी प्रमुख बन जिनपिंग माओत्से तुंग के बाद सबसे शक्तिशाली नेता के रूप में स्थापित हो गए हैं. हालांकि प्रॉपर्टी बाजार, कंज्यूमर टेक और कोविड प्रतिबंधों ने चीन की आर्थिक स्थिति का भट्ठा बैठा दिया है. आज जैसे-जैसे कोरोना वायरस फैल रहा है उससे यह स्पष्ट हो चला है कि उनकी सरकार ने सख्त लॉकडाउन लगाकर सिर्फ समय ही बर्बाद किया है. इस समय का उपयोग कर सरकार बुजुर्गों के टीकाकरण, दवाओं का भंडारण और कोरोना संक्रमण से पीड़ित होने वालों के लिए गहन देखभाल का तंत्र और मजबूत बना सकती थी.

HIGHLIGHTS

  • फरवरी से शुरू हुआ रूस-यूक्रेन संघर्ष 309वें दिन भी है जारी
  • जिनपिंग के सख्त कोरोना प्रतिबंधों के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन
  • साल के अंत में कोरोना संक्रमण में उछाल ने सभी को चिंता में डाला
शी जिनपिंग उप-चुनाव-2022 रूस यूक्रेन युद्ध वलोदिमिर जेलेंस्की श्रीलंका संकट Year Ender 2022 russia ukraine war Volodymyr Zelenskiy Sri Lanka Crisis Xi Jinping
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