Year Ender 2022: इन देशों के चुनाव परिणामों ने दिया राजनीतिक पंडितों को भी झटका, जानें इनके बारे में
राजीतिक उलट-फेर के लिहाज से साल 2022 भी याद रखा जाएगा जब इजरायल, इटली, फिलीपींस और ब्राजील के चुनाव परिणामों ने दुनिया भर के जनमत सर्वेक्षण करने वालों को भी चौंका दिया.
highlights
- इजरायल में नेतन्याहू के नेतृत्व में कट्टर दक्षिणपंथी गठबंधन सत्तारूढ़
- इटली को मिली पहली महिला प्रधानमंत्री जिऑर्गिया मेलोनी सरकार
- फिलीपींस में देश से भागने वाले तानाशाह का बेटा ही बना राष्ट्रपति
नई दिल्ली:
राजनीति की राह बहुत उतार-चढ़ाव भरी है. खासकर चुनाव परिणाम तो कई बार अप्रत्याशित रहते हैं. इन्हें देख-समझ राजनीतिक पंडित भी तमाम बार अपने कयासों के फेर में उलझ जाते हैं. इस कड़ी में साल 2022 भी याद रखा जाएगा जब इजरायल, इटली, फिलीपींस और ब्राजील के चुनाव परिणामों ने दुनिया भर के जनमत सर्वेक्षण करने वालों को भी चौंका दिया. इजरायल को लिकुड पार्टी के सर्वेसर्वा बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) के रूप में अति कट्टरपंथी दक्षिणपंथी गठबंधन वाली सरकार मिली, तो इटली में जिऑर्गिया मेलोनी (Giorgia Meloni) पहली महिला प्रधानमंत्री बतौर चुनकर आईं. गौरतलब है कि बेंजामिन नेतन्याहू इजरायल के दूसरी बार प्रधामंत्री बने हैं. फिलीपींस के मार्कोस जूनियर (Marcos Jr) राष्ट्रपति पद जीतने में कामयाब रहे, जो कि तानाशाह के बेटे हैं. ब्राजील में वामपंथी लूला डा सिल्वा (Lula da Silva) राजनीतिक रूप से प्रेरित भ्रष्टाचार के आरोपों का दोषी पाए जाने के बावजूद जेयर बोलसोनारो को हराकर सत्तारूढ़ हुए.
इजरायल के बेंजामिन नेतन्याहू
इजरायल एक तरह से राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है. यही वजह है कि बीते तीन सालों में पांचवी बार चुनाव हुए और मजबूत दक्षिणपंथी बहुमत वाली गठबंधन सरकार सत्तारूढ़ हुई. इस बार दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थन में मतदाता पहले से कहीं अधिक एकजुट थे. नतीजा यह रहा कि चुनाव जीतने के बाद बेंजामिन नेतन्याहू के गठबंधन का संसद में कम से कम 64 सीटों पर नियंत्रण हो गया है. हालांकि गठबंधन ने बेंजामिन को प्रधानमंत्री चुनने में देर की, लेकिन अंततः अन्य नेताओं को झुकना पड़ा. इस तरह प्रधानमंत्री चुने जाने के लगभग महीने भर से अधिक समय के बाद राष्ट्रपति के समक्ष बेंजामिन ने सरकार बनाने का दावा पेश किया. दक्षिणपंथी लिकुड पार्टी, अति-रूढ़िवादी पार्टियों और धार्मिक यहूदी वाद गठबंधन के सामने आने से अरब देशों में एक बार फिर से चिंता की लहर दौड़ गई है. बेंजामिन अब तक कई बार अरब देशों से युद्ध लड़ चुके हैं.
इटली की पहली महिला प्रधानमंत्री जिऑर्गिया मेलोनी
जिऑर्गिया मेलोनी ने अक्टूबर में इटली के नए प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ली थी. चुनाव परिणामों के बाद उनकी पार्टी 26 फीसदी वोट के साथ संसद में सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी. गौरतलब है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इटली पर धुर-दक्षिणपंथी सरकार का शासन आया है. जिऑर्गिया मेलोनी गर्भपात के अधिकारों का विरोध करने, अप्रवासी विरोधी पूर्वाग्रह को उकसाने और एलजीबीटी अधिकारों के खिलाफ खड़े होने के लिए विवादास्पद रही हैं. 1946 से इटली में अब तक 67 सरकारें बन चुकी हैं. जिऑर्गिया अपने चुनाव प्रचार अभियान में राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने का वादा करती आई हैं. इसके साथ ही उन्होंने यूरोपीय संघ के रूस पर लगाए गए ऊर्जा प्रतिबंधों का विरोध करने वाले हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बन का भी समर्थन किया है. साल की शुरुआत में भूतपूर्व प्रधानमंत्री मारियो द्रागी की सरकार गिरने के बाद सितंबर में आकस्मिक चुनाव हुए थे.
फिलीपींस के तानाशाह के बेटे मार्कोस जूनियर बने राष्ट्रपति
मार्कोस जूनियर के पिता फर्डिनेंड मार्कोस सीनियर ने दो दशकों तक फिलीपींस पर शासन किया. उन्होंने देश पर मार्शल लॉ थोपा. हालांकि 1986 में उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा और भारी विरोध के चलते बेटे मार्कोस जूनियर के साथ देश छोड़ना पड़ा. एक दशक बाद जूनियर ने देश वापसी की. अब 2022 में तानाशाह पिता के इसी बेटे ने मई के राष्ट्रपति चुनाव में 31.63 मिलियन वोट हासिल किए, जो कुल मतदान का 58.8 फीसदी थे. यही नहीं, 1986 के बाद से चुने गए छह राष्ट्रपतियों में यह सबसे बड़े अंतर से जीत थी. देखें तो जिस जनता ने पिता को भगाया, उसी ने इस बार बेटे को सिर-आंखों पर बैठा लिया. मार्कोस सीनियर का कार्यकाल भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के जबर्दस्त उल्लंघन के लिए याद किया जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक उस वक्त पुलिस हिरासत में 3257 हत्याएं हुईं. 35000 से ज्यादा लोगों को टॉर्चर किया गया और 70 हजार लोग कैद किए गए थे.
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ब्राजील में वामपंथी लूला डा सिल्वा की वापसी
2003 से 2010 तक राष्ट्रपति रहे 77 वर्षीय लूला डा सिल्वा दुनिया के चौथे सबसे बड़े लोकतंत्र में जेयर बोल्सोनारो को हराकर फिर से शीर्ष पर हैं. कथित भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में बंद और सार्वजनिक पद संभालने के लिए अयोग्या करार दिए गए लूला डा सिल्वा की जीत एक आश्चर्यजनक वापसी रही. गौरतलब है कि लूला ने अपने चुनाव अभियान में 2000 के दशक की पिंक वेव का गौरव के साथ जिक्र किया था. यह वह दौर था जब दक्षिण अमेरिकी इलाके में धुर वामपंथी नेता अपने-अपने देश की अर्थव्यवस्था को सफलता के साथ चला रहे थे. लूला का निम्न आय वर्ग समेत कुछ खास इलाकों में जबर्दस्त समर्थन प्राप्त है. हालांकि उनका नाम कार वॉश घोटाले से जुड़ा हुआ है, जिसकी वजह से सरकार को 800 मिलियन डॉलर की चपत लगी थी. हालांकि 2021 में ब्राजील की सुप्रीम कोर्ट ने लूला को इन आरोपों से बरी कर दिया. अब वह फिर से ब्राजील के राष्ट्रपति हैं.
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