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संगरूर में सिमरनजीत सिंह मान की जीत से क्या बदलेगी पंजाब की राजनीति 

100 दिन बाद, "झाडू बनाम तलवार" की बहस फिर से शुरू हो गई है क्योंकि कट्टरपंथी शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के नेता सिमरनजीत सिंह मान की संगरूर उपचुनाव में नाटकीय जीत हुई है.

Updated on: 28 Jun 2022, 01:17 PM

highlights

  • शिअद नेता सुखबीर बादल ने संयुक्त उम्मीदवार का प्रस्ताव रखा था
  • सिमरनजीत सिंह मान ने अंतिम समय में प्रस्ताव को ठुकरा दिया था
  • सिमरनजीत सिंह मान पूर्व में चरमपंथी राजनीति के समर्थक रहे हैं

नई दिल्ली:

पंजाब विधानसभा चुनाव-2022 के पहले से ही राज्य की राजनीति में कई बदलाव देखे गए. कांग्रेस ने अपने राजसी पृष्ठभूमि के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया. कैप्टन अमरिंदर ने कांग्रेस से नाता तोड़कर दूसरी पार्टी का गठन किया. अकाली दल ने चुनाव में बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया तो दिल्ली में लंबे समय तक धरना-प्रदर्शन करने वाले किसानों ने विधानसभा चुनाव के पहले एक राजनीतिक पार्टी का गठन किया. इसके साथ ही आम आदमी पार्टी ने संगरूर से सांसद और कॉमेडियन भगवंत मान को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया. विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की शानदार जीत हुई. मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भगवंत मान की ताजपोशी हुई. लेकिन विधानसभा चुनाव के चंद महीनों बाद ही पंजाब की फिजा बदली हुई लग रही है.

सीएम भंगवंत मान के इस्तीफे से रिक्त हुई संगरूर लोकसभा उपचुनाव के परिणाम ने सिर्फ पंजाब ही नहीं बल्कि पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा है. अब लोगों के जेहन में सवाल कौंध रहा है कि क्या पंजाब में एक बार फिर चरमपंथी ताकतें अपना सिर उठा सकती हैं? क्योंकि संगरूर से लोकसभा उपचुनाव जीतने वाले सिमरनजीत सिंह मान पूर्व में चरमपंथी राजनीति के समर्थक रहे हैं.

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इस साल के पंजाब विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान आम आदमी पार्टी (आप) के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भगवंत मान ने मालवा में एक सभा में एक सवाल उठाया था. "क्या आप झाडू (झाड़ू, आप का प्रतीक) या तलवार (तलवार) पकड़ेंगे?" उन्होंने दक्षिणपंथी पंथिक नेताओं के एक वर्ग से सिख संवेदनाओं का अनादर करने का आरोप लगाते हुए कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूछा था. लेकिन उस समय पंजाब बड़े पैमाने पर 'झाड़ू' को उठाकर और आप को भारी बहुमत से विधानसभा में भेजकर सर्वसम्मति से इसका जवाब दिया था.

100 दिन बाद, "झाडू बनाम तलवार" की बहस फिर से शुरू हो गई है क्योंकि कट्टरपंथी शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के नेता सिमरनजीत सिंह मान संगरूर उपचुनाव में नाटकीय जीत के बाद लोकसभा में अपनी सीट लेने की तैयारी कर रहे हैं. 77- वर्षीय पूर्व आईपीएस अधिकारी ने अतीत में बार-बार अलगाववादी प्रचार का समर्थन किया है और एक अलग खालिस्तान राज्य की आवश्यकता की वकालत की थी.

विडंबना यह है कि मान की किस्मत को धक्का लगा है, लोकप्रिय पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या और  अभिनेता से कार्यकर्ता बने दीप सिद्धू की सड़क दुर्घटना में मौत, जो पिछले साल दिल्ली में गणतंत्र दिवस की हिंसा के आरोपी थे. किसानों के विरोध-प्रदर्शन के दिन उसने लाल किले पर निशान साहब (सिख झंडा) फहरा दिया, जिससे सिख किसान बदनाम हों, जबकि मूसेवाला अपनी मृत्यु से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए थे, जिन विवादास्पद विषयों पर उन्होंने अपने गीतों को आधार बनाया था, उनका इस्तेमाल दक्षिणपंथी पंथिक नेताओं द्वारा उपचुनावों में सरकार विरोधी भावनाओं को भड़काने के लिए किया गया था.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मूसेवाला की हत्या, जिन्होंने मुख्य रूप से युवाओं के गुस्से को संबोधित करने वाले विषयों को चुना था, उन कारणों में से एक थे, जिसके परिणामस्वरूप सिमरनजीत सिंह मान की जीत हुई, जो पांच विधानसभा चुनाव और एक लोकसभा चुनाव हार गए थे.

केवल मान ही नहीं, बल्कि शिरोमणि अकाली दल, जो कई चुनावी हार के बाद खुद को राजनीतिक रूप से खत्म होने के कगार पर पाता है, ने जनता की भावनाओं को उभारा. दरअसल, उपचुनाव में आप से भिड़ने के लिए शिअद नेता सुखबीर बादल ने संयुक्त उम्मीदवार का प्रस्ताव रखा था. अकाली दल ने मान से बलवंत सिंह राजोआना की बहन कमलदीप कौर राजोआना की उम्मीदवारी का समर्थन करने का आग्रह किया था, जिन्हें बेअंत सिंह हत्याकांड में दोषी ठहराया गया था, और अकाली दल उनके जैसे कैदियों की रिहाई के लिए दबाव बना रहा है, जिन्होंने 25 साल से अधिक जेलों में बिताये  हैं. सिमरनजीत सिंह मान ने अंतिम समय में प्रस्ताव को ठुकरा दिया था, लेकिन दक्षिणपंथी सिख पंथिक नेताओं द्वारा उभारे गए मुद्दों ने हवा का रुख मोड़ दिया.