logo-image

क्या होता है टाइम कैप्सूल? जानिए इंदिरा से लेकर PM मोदी की उपलब्धियां क्यों हैं दफन

अयोध्या में राममंदिर निर्माण के साथ ही जमीन में करीब 2000 फीट नीचे टाइम कैप्सूल (Time Capsule) भी रखा जाएगा. इससे सदियों बाद भी मंदिर को लेकर किसी तरह की इतिहास का जानकारी जुटाने में परेशानी ना हो.

Updated on: 27 Jul 2020, 11:46 AM

नई दिल्ली:

अयोध्या (Ayodhya) विवाद के मामले में दशकों तक सुप्रीम कोर्ट में इस बात को लेकर बहस चली कि राममंदिर (Ram Mandir) का अस्तिस्व था या नहीं. कोर्ट में सदियों पुराने दस्तावेज और पुरातत्विक साक्ष्य पेश किए गए. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने राममंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया. भविष्य में इस तरह की किसी परेशानी का सामना न करना पड़े इसके लिए अयोध्या में राममंदिर निर्माण के साथ ही जमीन में करीब 2000 फीट नीचे टाइम कैप्सूल (Time Capsule) भी रखा जाएगा. इससे सदियों बाद भी मंदिर को लेकर किसी तरह की इतिहास का जानकारी जुटाने में परेशानी ना हो. आइये जानते हैं क्या होता है टाइम कैप्सूल और क्या है इसका इतिहास...  

यह भी पढ़ेंः राम जन्म भूमि से 2000 फीट नीचे रखा जाएगा 'टाइम कैप्सूल', जानें क्या है वजह

क्या होता है टाइम कैप्सूल
टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है जिसे विशिष्ट सामग्री से बनाया जाता है. टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम का सामना करने में सक्षम होता है, उसे जमीन के अंदर काफी गहराई में दफनाया जाता है. काफी गहराई में होने के बावजूद भी हजारों साल तक न तो उसको कोई नुकसान पहुंचता है और न ही वह सड़ता-गलता है. टाइम कैप्सूल को दफनाने का मकसद किसी समाज, काल या देश के इतिहास को सुरक्षित रखना होता है. यह एक तरह से भविष्य के लोगों के साथ संवाद है. इससे भविष्य की पीढ़ी को किसी खास युग, समाज और देश के बारे में जानने में मदद मिलती है.

जब इंदिरा गांधी ने रखवाया टाइम कैप्सूल
साल 1970 के शुरुआती दिनों में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi ) सफलता के चरम पर थीं. उनकी ताकतवर शख्सियत ने भारत की राजनीति को नया आकार देने में मदद की थी. उस समय उन्होंने लाल किले के परिसर में टाइम कैप्सूल दफन करवाया था. सरकार चाहती थी कि आजादी के 25 साल बाद की स्थिति को संजोकर रखा जाए. इसके लिए टाइम कैप्सूल बनाने का आइडिया दिया गया. आजादी के बाद 25 सालों में देश की उपलब्धि और संघर्ष के बारे में उसमें उल्लेख किया जाना था. इंदिरा गांधी की सरकार ने उस टाइम कैप्सूल का नाम कालपात्र रखा था. इस टाइम कैप्सूल को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त, 1973 को लाल किले के परिसर में दफन किया था. इस कालपात्र को लेकर उस समय काफी हंगामा मचा था. विपक्ष का कहना था कि इंदिरा गांधी ने टाइम कैप्सूल में अपना और अपने वंश का महिमामंडन किया है. 1977 में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी. जनता पार्टी ने चुनाव से पहले लोगों से वादा किया था कि पार्टी कालपात्र को खोदकर निकालेगी और देखेगी कि इसमें क्या है. सरकार गठन के कुछ दिनों बाद टाइम कैप्सूल को निकाला गया लेकिन जनता पार्टी की सरकार ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि उस टाइम कैप्सूल में क्या था. अभी तक उसके बारे में कुछ पता नहीं चल सका.

यह भी पढ़ेंः डरी कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट से वापस ले सकती है स्पीकर की याचिका, मामला फंस जाने का अंदेशा

मोदी पर भी लगा था टाइम कैप्सून दफनाने का आरोप
नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो साल 2011 में उन पर भी टाइम कैप्सूल दफनाने का विपक्ष ने आरोप लगाया था. विपक्ष का कहना था कि गांधीनगर में निर्मित महात्मा मंदिर के नीचे टाइम कैप्सूल दफनाया गया है जिसमें मोदी ने अपनी उपलब्धियों का बखान किया है. तीन फुट लंबे और ढाई फुट चौड़े इस स्टील सिलेंडर में कुछ लिखित सामग्री और डिजिटल कंटेट रखा गया था. सरकार के मुताबिक कैप्सूल में गुजरात के पचास साल का इतिहास संजोया गया था. कांग्रेस ने उस समय इसका काफी विरोध किया. पार्टी ने आरोप लगाया कि टाइम कैप्सूल के माध्यम से मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इतिहास में अपना महिमामंडन करना चाहते हैं. कांग्रेस ने धमकी भी दी कि वह सत्ता में आई तो कैप्सूल निकलवा देगी.

बसपा सुप्रीमो मायावत पर भी आरोप
बसपा की सुप्रीमो मायावती (Mayawati) के बारे में 2009 में यह चर्चा चली थी कि उन्होंने अपनी पार्टी और खुद की उपलब्धियों से जुड़ी हुई जानकारी के दस्तावेज एक टाइम कैप्सूल में रखवाकर कहीं दफन करवाए हैं. हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई लेकिन उस समय मीडिया में यह खबर सुर्खियों में थी.

यह भी पढ़ेंः भारत आ रहा है 'गेंमचेंजर' फाइटर जेट, फ्रांस से राफेल विमान रवाना

एपीयू में दफनाया गया टाइम कैप्सूल
पिछले साल जनवरी में जालंधर स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (LPU) में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में 10 फुट की गहराई में एक टाइम कैप्सूल को गाड़ा गया. इसे 100 साल बाद निकाला जाएगा और 22वीं सदी के लोग देख सकेंगे कि आज के जमाने में किस तरह के सामान, गैजेट और उपकरण इस्तेमाल किए जाते थे. इस कैप्सूल में 100 सामान रखे गए हैं. इनमें लैपटॉप, स्मार्टफोन, ड्रोन, वर्चुअल रियलिटी वाले चश्मे, अमेजन एलेक्सा, एयर फिल्टर, इंडक्शन कुक टॉप, एयर फ्रायर, सीएफएल, टेप रिकॉर्डर, ट्रांजिस्टर, सोलर पैनल, हार्ड डिस्क आदि हैं. सौ साल बाद इस कैप्सूल को खोलकर उस समय लोगों को यह अंदाजा लगेगा कि 20वीं सदी के अंत में और 21वीं सदी के आरंभ में लोग किस प्रकार के सामान इस्तेमाल करते थे.

अंतरिक्ष में टाइम कैप्सूल
टाइम कैप्सूल के मामले में अमेरिका सबसे आगे है. अमेरिका अब तब 50 से अधिक टाइम कैप्सूल को भविष्य के लिए संरक्षित रख चुका है. इनमें अंतरिक्ष में भेजे गए टाइम कैप्सूल भी शामिल हैं. अमेरिका ने अपने अपोलो-11 (Apollo-11) मिशन के दौरान चंद्रमा पर टाइम कैप्सून भेजा. इसमें पृथ्वी से जुड़ी विभिन्न जानकारी भेजी गई थी. इसके साथ ही अंतरिक्ष में आधा दर्जन से अधिक टाइम कैप्सून भेजे जा चुके हैं.