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Tripura Assembly Elections 2023: टिपरा मोथा का प्रवेश बदल सकता है चुनावी गणित और परिणाम

त्रिपुरा में आगामी विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन को पूर्व प्रतिद्वंद्वियों कांग्रेस-वाम मोर्चा के संभावित गठबंधन का सामना करना पड़ सकता है. माना जा रहा है कि सत्ता की कुंजी टिपरा मोथा के पास ही होगी.

त्रिपुरा में आगामी विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन को पूर्व प्रतिद्वंद्वियों कांग्रेस-वाम मोर्चा के संभावित गठबंधन का सामना करना पड़ सकता है. माना जा रहा है कि सत्ता की कुंजी टिपरा मोथा के पास ही होगी.

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Nihar Saxena
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Tripura Assembly Elections 2023

टिपरा मोथा सत्तारूढ़ और विपक्ष दोनों के लिए बन रहा बड़ी चुनौती.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

त्रिपुरा (Tripura) में आगामी विधानसभा चुनावी समर (Tripura Assembly Elections 2023) में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले गठबंधन को पूर्व प्रतिद्वंद्वियों कांग्रेस (Congress) और वाम मोर्चे (Left Front) के संभावित गठबंधन का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि सरकार बनाने की चाभी किसी तीसरे खिलाड़ी के पास हो सकती है. इस त्रिकोणीय गणित में कांग्रेस राज्य इकाई के पूर्व  प्रमुख प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मा (Pradyot Bikram Manikya Deb Barma) और उनकी हालिया गठित टिपरा मोथा (TIPRA Motha) पार्टी का नाम लिया जा रहा है. हाल-फिलहाल तो देब बर्मा ने अपने पत्ते पूरी तौर पर नहीं खोले हैं. इतना जरूर कहा है कि वह उस पार्टी के साथ गठबंधन करेंगे जो राज्य में जनजातीय समूहों के लिए अलग टिपरालैंड राज्य की उनकी मांग को लिखित रूप में स्वीकार करेगी. बीते दिनों देब बर्मा ने दो टूक कहा, 'मैं नेताओं के मुंह से निकले शब्दों पर विश्वास नहीं करता. त्रिपुरा की मूल जनजातियों के लिए ग्रेटर टिपरालैंड राज्य बनाने की मांग पर लिखित आश्वासन मिलने तक किसी के साथ गठबंधन से जुड़ा कोई समझौता नहीं किया जाएगा.' इस समूह का राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में जबर्दस्त असर है और राज्य विधानसभा की 60 में से 20 सीटों पर चुनाव (Assembly Elections 2023) परिणाम प्रभावित कर सकने का माद्दा भी है. 

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इंडिजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा का विलय कर सकती है टिपरा मोथा
देब बर्मा इंडिजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) पार्टी के भी संपर्क में भी है. आईपीएफटी सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है और उसने 2018 विधानसभा चुनाव में नौ सीटों में से आठ पर जीत हासिल की थी. देब बर्मा आईपीएफटी के साथ संभावित विलय के प्रयास में हैं. गौरतलब है कि पिछले दो महीनों में आईपीएफटी के तीन सांसदों समेत कई कार्यकर्ताओं ने टिपरा मोथा का दामन थामा है. इस क्रम में आईपीएफटी के कार्याकारी अध्यक्ष प्रेम कुमार रियांग का संभावित विलय को लेकर हालिया पत्र प्रासंगिक हो जाता है. रियांग ने इस पत्र में लिखा था, 'दो दशकों के बाद मैं यह पत्र टिपरालैंड और ग्रेटर टिपरालैंड राज्य से जुड़ी अपनी मांग को सेकर लिख रहा हूं. राज्य के टिपरावासियों की उत्तरजीविता और अस्तित्व को ध्यान में रखते हुए आईपीएफटी और टिपरा को एकजुट करने का प्रस्ताव अभिभूत करने वाला है. मैं इसके लिए अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं.' दो दशकों के बाद 2018 विधानसभा चुनाव में वामपंथी सरकार को हटाने वाली बीजेपी ने 36 सीटें जीतकर इतिहास रचा था. इस बार भी बीजेपी का लक्ष्य विकास के मुद्दे पर सत्ता में वापसी करना है. त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने पिछले हफ्ते कहा ,'हमारा चुनावी एजेंडा राज्य में हुआ अभूतपूर्व विकास समेत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में डबल इंजन सरकार होगी.' 2022 में बिप्लब कुमार देब के स्थान पर साहा को मुख्यमंत्री बनाया गया था, जिसे एंटी-इनकंबेंसी को कम करने के प्रयास के रूप में देखा गया. गौरतलब है कि 2018 में बीजेपी ने 36 सीटें जीतीं, लेफ्ट ने 16 और कांग्रेस शून्य पर रही थी.

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विपक्ष राजनीति हिंसा समेत महंगाई-रोजगार को बनाएंगा प्रमुख हथियार
सत्तारूढ़ सरकार के विकास के दावे को खोखला बता विपक्षी पार्टियों का कहना है कि विकास की कमी, हिंसा में वृद्धि, कुछ सरकारी नौकरियों और अपर्याप्त शिक्षा से भाजपा को नुकसान होगा. राज्य में राजनीतिक हिंसा भी बढ़ी है. पिछले पांच वर्षों में राजनीतिक हिंसा के 700 से अधिक मामले सामने आए. इनमें भी सीपीएम नेताओं और कांग्रेस विधायक सुदीप रॉय बर्मन पर हमले प्रमुख रहे. ऐसे में आसन्न विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी नेता जितेंद्र चौधरी ने कहा, 'लोकतंत्र, कानून-व्यवस्था की बहाली और पर्याप्त भोजन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना हमारे लिए प्रमुख मुद्दे हैं.' कांग्रेस नेता आशीष कुमार साहा के मुताबिक, 'राजनीतिक लड़ाई लोगों को भाजपा के कुशासन से मुक्त कराने के लिए है.' उन्होंने कहा, 'हमारा उद्देश्य कानून व्यवस्था बहाल करना और शांति कायम करना है.' माना जा रहा है कि अगले कुछ दिनों में माकपा और कांग्रेस सीट बंटवारे की घोषणा कर देंगे.

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बीजेपी विकास के बल पर फिर जीत के प्रति आश्वस्त
विपक्ष की इस बयानबाजी के बीच भाजपा ने जन विश्वास रथयात्रा की शुरुआत कर दी है. इसके जरिये वह अपनी सरकार की उलब्धियों को उजागर चुनाव प्रचार अभियान के क्रम में बढ़त ले चुकी है. भाजपा प्रवक्ता नबेंदु भट्टाचार्य के मुताबिक, 'हमारा मूल मुद्दा विकास है. पांच साल में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर हर क्षेत्र में विकास हुआ है. विकास की बदौलत हम इस बार विधानसभा चुनाव अधिक सीटों से जीतकर फिर से अपनी सरकार बनाएंगे.' हालांकि वरिष्ठ राजनीतिक लेखक एस भट्टाचार्य मानते हैं कि आसन्न विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए एक बड़ी परीक्षा है. पिछली बार लोग पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और उनकी पार्टी से भारी उम्मीदों से प्रभावित हो हवा में बह से गए थे. 

HIGHLIGHTS

  • प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मा की टिपरा मोथा बनेगी सरकार की कुंजी
  • बीजेपी अपनी सरकार में हुए विकास कार्यों को लेकर चुनावी मैदान में है
  • कांग्रेस-लेफ्ट एंटी इनकंबेंसी समेत रोजगार-महंगाई मुद्दों की शरण में
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