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एयर इंडिया के महाराजा शुभंकर के पीछे की कहानी, असल जीवन से हैं प्रेरित

आप में से लगभग सभी लोगों ने एअर इंडिया के विज्ञापनों में महाराजा जैसी छवि देखी होगी . एक गोल चेहरा, एक बड़ी मूंछें, एक धारीदार भारतीय पगड़ी और महाराजा की तरह एक लंबी तेज नाक वाला व्यक्तित्व. आपके सामने भी ऐसी ही छवि बन रही होगी.

आप में से लगभग सभी लोगों ने एअर इंडिया के विज्ञापनों में महाराजा जैसी छवि देखी होगी . एक गोल चेहरा, एक बड़ी मूंछें, एक धारीदार भारतीय पगड़ी और महाराजा की तरह एक लंबी तेज नाक वाला व्यक्तित्व. आपके सामने भी ऐसी ही छवि बन रही होगी.

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Nandini Shukla
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एयर इंडिया के महाराजा शुभंकर के पीछे की कहानी, असल जीवन से हैं प्रेरित( Photo Credit : file photo)

आप में से लगभग सभी लोगों ने  एअर इंडिया के विज्ञापनों में महाराजा जैसी छवि देखी होगी . एक गोल चेहरा, एक बड़ी मूंछें, एक धारीदार भारतीय पगड़ी और महाराजा की तरह एक लंबी तेज नाक वाला व्यक्तित्व. आपके सामने भी ऐसी ही छवि बन रही होगी. लेकिन, क्या आप इस छवि और इसके पीछे प्रेरणा कौन थे? तो चलिए हम आपको बताते है. महाराजा के स्टिकर और गुड्डा तमाम मध्यवर्गीय घरों में पहचाने जाने लगे थे, उन घरों में भी, जिनके लिए हवाई जहाज की यात्रा तब बहुत बड़ी बात मानी जाती थी. बता दें कि मुलाकात जब विज्ञापन की दुनिया के उस शख्स से हुई, जिसने बॉबी कुका के बारे में बताया. बॉबी कुका, जिसने उमेश राव के साथ मिलकर यह शुभंकर तैयार किया था. विनम्रता में हमेशा बंद रहने वाली आंखें, सिर पर पगड़ी (यानी ढका हुआ सिर) और पैर हमेशा जमीन से उठे हुए (लगभग न दिखाई देने वाले. महाराजा का इस्तेमाल भारत की राष्ट्रीय एयरलाइन द्वारा नए उड़ान मार्गों को शुरू करने के लिए किया गया था.

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उनकी अजीब हरकतों और विचित्र वाक्यों ने भी एयर इंडिया को सूक्ष्म हास्य और बेजोड़ पैनकेक के साथ अपनी सेवाओं को बढ़ावा देने की अनुमति दी. 1992-93 में कंपनी ने 333 करोड़ का मुनाफा कमाया और इसके बाद और इस दौरान यह लगातार मुनाफे में रही. हालांकि इस एयर लाइन्स की स्थापना 1932 में टाटा संस लिमिटेड की इकाई के रूप में हुई थी, लेकिन सरकार ने इसे 1953 में अपने हाथों में लिया. 1946 में इसका नाम बदलकर एअर इंडिया रख दिया गया. 1953 में सरकार ने एयर कॉरपोरेशन ऐक्ट पारित किया, तो इसी के साथ एअर इंडिया के अधिकांश शेयर आ गए. ठीक इसी वक्त सरकार ने इंडियन एयर लाइन्स का गठन किया.

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1938 की सदी को याद करेंगे तो टाटा एयरलाइंस, भारत की पहली वाणिज्यिक एयरलाइन सेवा, ने उड़ान भरना शुरू किया था. उसी वर्ष, मार्केटिंग के जादूगर बॉबी कूका भी टीम में शामिल हो गए थे. उसके तुरंत बाद, सोराब कैकुशरू (बॉबी) कूका महाराजा के विचार के साथ एयर इंडिया को फिर से नामित करने के लिए आए और एयर इंडिया के कई अभियानों का चेहरा भी बन गए. महाराजा विभिन्न वेश-भूषा में आए, लेकिन उनकी ट्रेडमार्क टवीली मूंछें और उनकी रोली-पॉली कद-काठी बनी रही - 2017 तक जब उन्होंने अपना थोड़ा सा फ्लेब खो दिया और नीली जींस, प्रशिक्षकों और एक कम-स्लंग सैचेल के लिए अपने पारंपरिक पोशाक को संरेखित करने के लिए आधुनिक समय के साथ कारोबार किया. बॉबी ने एयर इंडिया के इस सिंबल को बनाने के लिए जे. वाल्टर थॉम्पसन के उमेश राव के साथ काम किया. 1946 में अपनी उपस्थिति के बाद, महाराजा जल्द ही पूरी दुनिया में फैल गए. 

महाराजा ने विज्ञापन और प्रचार में एयर इंडिया के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं. दिलचस्प बात यह है कि एक समय में, शुभंकर के शाही अर्थों ने एक विवाद को जन्म दिया, जिसमें राजनेताओं ने समाजवादी आकांक्षाओं वाले राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए इस तरह के प्रतीक का उपयोग करने के बारे में संदेह व्यक्त किया गया. नतीजतन, एयर इंडिया ने 1989 में महाराजा को खत्म कर दिया. लेकिन अलग अलग हालातों के चलतें ऐसा शोर-शराबा हुआ कि लोकप्रिय शुभंकर को वापस लाना पड़ा.

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Source : News Nation Bureau

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