भाजपा में नई परिपाटी: मोदी युग में आम कार्यकर्ता भी देख सकता है सीएम बनने का सपना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपने भाषणों में यह कहते हैं कि जिन्हें कोई नहीं पूछता उन्हें मोदी पूजता है. आज मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जिस तरह से सीएम के नामों का ऐलान हुआ है उससे तो यही लगता है कि नई बीजेपी में होता वही है जो पार्टी को मजबूत कर सके.
नई दिल्ली:
पहले छत्तीसगढ़ फिर मध्य प्रदेश और अब राजस्थान में बीजेपी ने सीएम के नाम का ऐलान कर दिया है. बीजेपी ने राजस्थान में भजन लाल शर्मा को प्रदेश की बागडोर सौंपी है. भजन लाल सांगानेर विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने हैं और पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया है. इसी तरह मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई है और छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय को सीएम बनाया गया है. बीजेपी आलाकमान ने तीनों राज्यों में सीएम के नाम का ऐलान कर सभी को चौंका दिया. इसी के साथ नए भारत में नई बीजेपी के मोदी-शाह युग की चर्चा भी जोरों पर चल रही है. तीनों राज्यों में जिस तरह सीएम के नए नाम सामने आए हैं. उससे तो यह साफ हो गया है कि भाजपा में नई परिपाटी की शुरुआत हो गई है. मोदी युग में आम कार्यकर्ता भी खुद को पार्टी की टॉप पोस्ट पर पहुंचने का सपना देख सकते हैं.
मोदी-शाह युग में बड़े-बड़े बैनर पोस्टर पर लगने वाले नेताओं की तस्वीरों को आगे नहीं किया जाता बल्कि साइलेंट मोड में काम करने वाले जमीनी कार्यकर्ता के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी जाती है. केंद्रीय नेतृत्व ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बड़े-बड़े दिग्गजों और सीएम पद के लिए तथाकथित चेहरों को जानबूझकर साइड लाइन कर दिया है.
स्टार प्रचारकों को नहीं मिला सीएम पद
हाल ही में हिंदी हार्ट लैंड के राज्यों में हुए चुनावों में प्रदेश स्तर के नेताओं ने जमकर पसीना बहाया. शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह और राजस्थान में वसुंधरा राजे ने तूफानी प्रचार किया. ये तीनों नाम ऐसे हैं जिनकों समर्थक अपने-अपने नेताओं को एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनना देखना चाह रहे थे. लेकिन मोदी-शाह युग की बीजेपी में स्टार प्रचारकों को सीएम पद का मौका नहीं मिला. बीजेपी आलाकमान वही फैसला करता है जो पार्टी हित में हो. यानी आने वाले सालों में पार्टी को कौन कितना फायदा पहुंचा रहा है. इससे अलग ना तो आपको मोदी शाह की दोस्ती काम आएगी और ना ही किसी नेता का शक्ति प्रदर्शन. मोदी शाह युग की बीजेपी में जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं का मनोबल हाई हुआ है. तीनों राज्यों में अपने जैसे कार्यकर्ताओं को प्रदेश की बागडोर संभालते देख पार्टी के कार्यकर्ता खुश नजर आ रहे हैं कि पार्टी में दरी जाजिम बिछा रहे हैं तो एक दिन सीएम की कुर्सी पर भी बैठ सकते हैं.
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मोदी-शाह का जोर पोलिंग स्तर पर पार्टी को मजबूत बनाना
भारतीय जनता पार्टी सभी वर्गों में अपनी पैठ बनाने के लिए अलग-अलग फॉर्मूलों पर काम कर रही हैं. पार्टी अब चर्चित और दिग्गजों को ज्यादा तवज्जो देने के मूड में नजर नहीं है. पार्टी आलाकमान को पता है कि हॉट सीट पर वही व्यक्ति बैठेगा, जिसका जनाधार प्रदेश और देश में अच्छा खासा हो. बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व को यह बात अच्छी तरह से पता है कि सीएम का चेहरा लोकप्रिय नहीं होगा तब भी हम चुनाव जीत लेंगे. तभी तो पार्टी ने तीनों राज्यों में बिना सीएम चेहरा घोषित किए प्रचंड बहुमत से चुनाव जीत गई. पार्टी अलाकमान यह जानता है कि अगर सामान्य कार्यकर्ता पार्टी को लंबे समय तक और व्यापाक रूप से फायदा पहुंचा रहा है तो उसे भी मौका देने में कोई गुरेज नहीं है. मोदी-शाह जानते हैं कि चुनाव कैसे लड़ना है और चुनाव में जीत कैसे हासिल करनी है. तभी तो मोदी-शाह का जोर मोदी-शाह का जोर पोलिंग स्तर पर पार्टी को मजबूत बनाना है. हर चुनाव से पहले पीएम मोदी मेरा बूथ सबसे मजबूत अभियान का नेतृत्व करते हैं. इसमें वो कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र भी देते हैं. मध्य प्रदेश से शिवराज, छत्तीसगढ़ से रमन सिंह और राजस्थान से वसुंधरा राजे को आउट कर यह संदेश दिया है कि पिछली पंक्ति में बैठने वाले नेता भी उनके लिए बहुत उपयोगी है जो पार्टी को लंबे वक्त तक सत्ता में बनाई रख सकती है.
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मोदी शाह को जनाधार वाले नेता हैं पसंद
नई बीजेपी में सबसे अधिक जनाधार देने वाले नेताओं को ही प्रमुख पदों पर बैठाया जा रहा है. छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज से आने वाले विष्णु देव साय को मुख्यमंत्री बनाया गया है तो दो डिप्टी सीएम में एक ब्राह्मण और एक ओबीसी को जगह दी गई है. इसी तरह राजस्थान में ब्राह्मण को मुख्यमंत्री बनाया गया है तो क्षत्रिय और ओबीसी से आने वाले नेता को डिप्टी सीएम का पद सौंपा गया है. वैसे ही मध्य प्रदेश में ओबीसी को सीएम बनाया गया है तो ब्राह्मण और अन्य को डिप्टी सीएम बनाया गया है. बीजेपी आलाकमान अच्छी तरह से जानता है कि वोटबैंक कहा है. पार्टी के ऊंचे पोस्ट पर उन्हें बैठाया जाता है जिसका ब्लक में फायदा हो सके. यहां तक कि राज्यपाल, उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति के पदों पर भी नियुक्ति नहीं की जाएगी. इसका ताजा उदाहरण राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू की नियुक्ति है. पार्टी अलाकमान ने सोच समझकर उन्हें इस पद पर बैठाया है. मुर्मू को रा्ष्ट्रपति बनाकर मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बीच अच्छी पैठ बनाई और पार्टी इस फॉर्मूले में कामयाब भी हुई. जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाने के पीछे भी जाटों के बीच बीजेपी के बीच छवि को चमकाने की रही है. इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भी पार्टी ने रणनीति के तहत राष्ट्रपति बनाया था.
नहीं चलेगी गुटबाजी और खेमेबाजी
पार्टी आलाकमान ने साफ संदेश दे दिया है कि आप अपने प्रदेश में बहुत ताकतवर और जनाधार वाले नेता हैं और गुटबाजी करते हैं तो आप पार्टी के लिए फायदेमंद नहीं हैं. वह दौर गुजर गया जब अलग-अलग कुनबे बनाकर पार्टी को अंदर से कमजोर करने की कोशिश कर रहे थे. खेमेबाजी करने वाले नेताओं का इस युग में कोई गुजारा नहीं है. ऊपर से चला एक निर्देश सभी के लिए बराबर होगा. अगर आपको यह अच्छा नहीं लगता तो आप स्वतंत्र और आजाद हैं.
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