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मध्यप्रदेश के मन में 'मोहन' 36गढ़ में 'विष्णु' पर विश्वास, नए चेहरों के पीछे छुपे हैं बीजेपी के ये 5 बड़े संदेश

भाजपा ने ये संकेत देने की भी कोशिश की है कि देश में अब प्रोजेक्शन की राजनीति नहीं चलेगी. पार्टी आलाकमान ने दिल्ली दरबार की कल्चर को खत्म कर दिया है. पार्टी का लक्ष्य अगले 20-25 साल का है. इसीलिए पार्टी नई लिडरशिप को आगे बढ़ा रही है.

Updated on: 12 Dec 2023, 06:45 AM

नई दिल्ली:

बीजेपी ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सीएम के नाम का ऐलान कर दिया है. शिवराज सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री रहे मोहन यादव को मध्य प्रदेश की कमान सौंपी गई है. वहीं, छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय को नई जिम्मेदारी दी गई है. ये दोनों नेता बालकाल्य से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े हुए हैं. साथ ही विद्यार्थी परिषद के लिए भी दोनों मनोनित मुख्यमंत्रियों ने पसीना बहाया है. पार्टी आलाकमान ने यह बताया है कि संघ की नर्सरी से निकले नेताओं को तवज्जो मोदी-शाह के युग में भी उतना ही मिलता है. जितना की जनसंघ में दिया जाता था. दो राज्यों में नए चेहरों को मौका देकर पार्टी ने एक नए युग की शुरुआत की है. साथ ही अटल-आडवाणी युग को पूर्ण रूप से खत्म कर दिया.

बीजेपी ने नए चेहरों को मुख्यमंत्री बनाकर यह तय कर दिया कि यह अटल-आडवाणी वाली नहीं बल्कि नई बीजेपी है. यहां फैसले अप्रत्याशित होते हैं. पार्टी ने यह भी बताने की कोशिश की राज्यों में नेताओं का कद कितना भी बड़ा क्यों ना हो लेकिन भविष्य में पार्टी हित के लिए जो होगा उसे ही कमान सौंपी जाएगी. मध्य प्रदेश में मोहन यादव और छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने पांच बड़े संदेश दिए हैं. आइए समझते हैं इन संदेश के मायने क्या हैं. 

ओबीसी वोटबैंक पर पार्टी की नजर

अगले साल यानी अप्रैल मई में लोकसभा चुनाव होने हैं. पार्टी ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है. तीन राज्यों में बीजेपी की जबरदस्त जीत के बाद तो पार्टी का मनोबल और हाई है. छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने आदिवासी चेहरा को मुख्यमंत्री बनाया है. वहीं, मध्य प्रदेश में ओबीसी चेहरे पर दांव लगाया है. ऐसे में समझा जा सकता है कि बीजेपी की सोच क्या है. दरअसल, बीजेपी मध्य प्रदेश के जरिए हिंदी भाषी राज्यों में ओबीसी वोट बैंक खासतौर पर यादव वोट बैंक को साधने की कोशिश में है. उत्तर प्रदेश और बिहार में ओबीसी और यादवों का वोट निर्णायक होता है. दोनों राज्यों में करीब 12-15 फीसदी की आबादी यादवों की है. उत्तर प्रदेश में यादवों का समर्थन समाजवादी पार्टी के साथ होता था, जबकि बिहार में आरजेडी को यादवों का वोट जाता था. हरियाणा में भी यादवों की जनसंख्या अच्छी खासी है. आलाकमान को ये बात खल रही थी कि वोट का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी से दूर है. ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व ने मोहन यादव को मध्य प्रदेश की कमान और विष्णुदेव साय को छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी सौंपकर उत्तर भारत में एक बड़ा संदेश देने का प्रयास किया है. पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने संदेश देने की कोशिश की है कि हरियाणा का यादव वोटर भी अब पार्टी के साथ हो सकती है. 

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भाजपा का भविष्य की लिडरशिप में निवेश

मध्य प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मिश्रा कहते हैं कि बीजेपी का ये फैसला आने वाले दिनों में मील का पत्थर साबित होगा. नई पीढ़ी के नेताओं को आगे बढ़ाकर पार्टी ने सर्वव्यापी और सर्व समावेशी की बात पर मुहर लगा दी है. पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व सर्वव्यापी और सर्व समावेशी की जो बात कह रही थी वह अब लीडरशिप में भी दिख रहा है. पार्टी एक तीर से कई निशाने लगाने की कवायद में जुटी हुई है. हिंदी हार्ट लैंड में ओबीसी एक बड़ा तबका है. आप मोदी मंत्रिमंडल में भी देख सकते हैं कि कितने ओबीसी नेताओं को शामिल किया गया है. राजनीतिक विश्लेषक अरविंद कहते हैं कि मोहन यादव की जिम्मेदारी इस बात का भी संकेत है बीजेपी तथाकथित अलाकमान की पार्टी नहीं है. यह भाजपा की वैचारिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है. भाजपा ने ये संकेत देने की भी कोशिश की है कि भाजपा ने प्रोजेक्शन की राजनीति को भी झटका दिया है. पार्टी के आलाकमान ने दिल्ली दरबार की कल्चर को खत्म कर दिया है. इसे ऐसे समझे कि कोई 8 से 10 बार के विधायक रहे हों उन्हें आगे नहीं बढ़ाया गया है. बल्कि ऐसे नेताओं पर भरोसा जताया है जो अंतिम पंक्ति में खड़े होते थे. वह ये भी कहते हैं कि बीजेपी 5-10 की राजनीति में यकीन नहीं करती. पार्टी का लक्ष्य अगले 20-25 साल का है. इसीलिए पार्टी नई लिडरशिप को आगे बढ़ा रही है.

छुपे रूस्तम पर पार्टी ने जताया भरोसा

छत्तीसगढ़ में भी सीएम के नाम का ऐलान हुआ है वह भी अप्रत्याशित ही है. क्योंकि जो नाम ज्यादा चर्चा में थी उसे जिम्मेदारी नहीं देकर एक ऐसे नाम पर भरोसा जताया गया जो सीएम की रेस में सबसे आखिरी में था. भाजपा यह संदेश दे रही है कि उनकी पार्टी में हर जाति वर्ग का नेतृत्व है. निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा समेत आदिवासी समाज में इसका लाभ पार्टी को मिलेगा. पार्टी अपनी हित के लिए बड़े नेताओं को कुर्बान करने पड़े उसमें भी कोई कोताही नहीं बरत रही है. राजनीतिक पार्टी होने के नाते पॉलिटिक्ल माइलेज लेना बीजेपी की मजबूरी भी है और जरूरी भी है. पार्टी सभी वर्गों को साथ लेकर आगे चलने की जो बात कह रही है वह अब साफ दिख रहा है. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का मानना है कि सबका साथ और सबका विकास और सबका विश्वास हो. इसी लाइन को लेकर पार्टी आगे बढ़ रही है. तभी तो दोनों राज्यों में सीएम के नए नामों को ऐलान कर सभी को चौंका दिया है. पार्टी ने छुपे रुस्तमों पर जिम्मेदारी सौंपकर राजनीति में एक नई इबारत लिखी है.  

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पार्टी में नहीं चलेगा किसी तरह का दबाव

मध्य प्रदेश में मोहन यादव और छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय, झारखंड में रघुबर दास, हरियाणा में मनोहर खट्टर या फिर बिहार में नीतीश कुमार के साथ रहे डिप्टी सीएम तार किशोर प्रसाद को पार्टी ने कमान सौंपकर बड़े नेताओं को यह संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी में किसी तरह का राजनीतिक दबाव नहीं चलेगा. पार्टी जो चाहेगी वही करेगी. अगर कोई यह समझ रहा है कि उनकी वजह से चुनाव जीता जा रहा है या उनके दम पर महिलाओं का वोट मिला, तो वह भ्रम में है. पार्टी अपने लाभ के लिए किसी बड़े नेता को भी दरकिनार कर सकती है.

मोदी-शाह युग में चौंकाने वाले होते हैं फैसले

मध्यप्रदेश चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार महिलाओं से मुलाकात कर रहे थे. और प्रदेश के उन क्षेत्रों में जा रहे थे, जहां बीजेपी कमजोर थी. साथ ही उनके समर्थक भी यह मांग कर रहे थे कि उनके नेता को एक मौका और मिलना चाहिए, क्योंकि मामा प्रदेश में बेहद ही लोकप्रिय हैं. राजनीतिक पंडित भी यह मानकर चल रहे थे कि एक बार फिर शिवराज युग लौटेगा, लेकिन पार्टी अलाकमान ने साफ कर दिया कि किसी नेता के दम पर हम चुनाव नहीं जीते हैं, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर पार्टी ने चुनाव लड़ा और मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान में ऐतिहासिक विजय प्राप्त की. पार्टी ने दोनों राज्यों में नए चेहरों को मौका देकर यह साबित कर दिया कि मोदी-शाह के युग में पार्टी ऐसा निर्णय ले सकती है जिसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता है.