पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए इसलिए महत्वपूर्ण हो गए हैं नेताजी सुभाष
माना जा रहा है कि दोनों दलों के बीच बंगाल की राजनीतिक लड़ाई अब नेताजी की विरासत पर भी छिड़ गई है.
नई दिल्ली:
नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) की 125वीं जयंती के माध्यम से भाजपा पश्चिम बंगाल की जनता की भावनाओं से जुड़ने की कवायद में जुटी है. जयंती वर्ष के तहत पूरे साल तक कार्यक्रमों का सिलसिला चलेगा. केंद्र की मोदी सरकार (Modi Government) ने 23 जनवरी से सालभर तक चलने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाने के लिए बकायदा एक उच्चस्तरीय समित बनाई है. आयोजनों के केंद्रबिंदु में चुनावी राज्य पश्चिम बंगाल के होने के कारण सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (TMC) भाजपा पर हमलावर है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि चुनाव नजदीक आते देख भाजपा 'नेताजी की भक्त' बन गई है. माना जा रहा है कि दोनों दलों के बीच बंगाल की राजनीतिक लड़ाई अब नेताजी की विरासत पर भी छिड़ गई है.
यह है भाजपा की रणनीति
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को पहली बार जोर-शोर से मनाने के पीछे भाजपा की क्या रणनीति है? राजनीतिक विश्लेषक इसके पीछे मार्च-अप्रैल में होने जा रहे पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को वजह मानते हैं. बंगाल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है. बंगाल के वह गौरव माने जाते हैं. माना जा रहा है कि बंगाली गौरव के प्रतीक नेताजी की जयंती के जरिए भाजपा बंगाल की जनता को यह बताने की कोशिश में लगी है कि वह बंगाली अस्मिता की संरक्षक है. जब से ममता बनर्जी ने भाजपा नेताओं को बाहरी बताना शुरू किया है, तब से पार्टी ने बंगाल से जुड़े महापुरुषों को लेकर कार्यक्रमों का सिलसिला और तेज कर दिया है. यह भी गौर करने वाली बात है कि दिसंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व भारती यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में रवींद्रनाथ टैगोर की जमकर तारीफ करते हुए उनका बंगाल कनेक्शन भी बताया था.
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बीजेपी का लाजवाब तर्क
भाजपा का कहना है कि बंगाली गौरव के प्रतीक नेताजी देश की स्वाधीनता की लड़ाई को भारत से लेकर यूरोप की धरती तक लड़े, उन्हें वो सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे. ऐसे में भाजपा नेताजी को उचित सम्मान देने की दिशा में 125वीं जयंती वर्ष का आयोजन करने में जुटी है. नेताजी की जयंती को चुनाव से जोड़ने की बातों को भाजपा सिरे से खारिज करती है. पश्चिम बंगाल भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष रितेश तिवारी दो टूक कहते हैं कि नेताजी जी की 125वीं जयंती मनाने को लेकर भाजपा की मंशा पर सवाल उठाने वाले लोग राजनीति से प्रेरित हैं. पहली बार बड़े आयोजन पर रितेश तिवारी तर्क देते हैं कि कौन कहता है कि भाजपा पहली बार नेताजी से प्रेम दिखा रही है? यह भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ही थी, जिसने नेताजी के लापता होने के रहस्यों को उजागर करने के लिए मुखर्जी कमीशन का गठन किया था. जब 2014 में दोबारा केंद्र में जब भाजपा की सरकार आई तो प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर नेताजी से जुड़ीं फाइलों को सार्वजनिक करने की पहल हुई. नेताजी के परिवार के साथ लाल किले पर झंडा फहराकर उन्हें सम्मान दिया गया.
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पराक्रम दिवस बनाम देश नायक दिवस
भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भारत का पहला अंतर्राष्ट्रीय नेता बताते हुए कहा कि वह भारत की आजादी की लड़ाई को देश से विदेश तक लेकर गए. दूसरे देशों को भारत की मदद के लिए राजी करने में सफल रहे. देश के महापुरुषों को उचित सम्मान देकर उनकी विरासत और सिद्धांतों को आगे बढ़ाना भाजपा की विशेषता है. रितेश तिवारी ने कहा कि मोदी सरकार ने नेताजी ही नहीं, बल्कि पिछले साल से महात्मा गांधी की 150वीं जयंती वर्ष को भी धूमधाम से मनाने की पहल की. सरदार पटेल की भी जयंती पार्टी बहुत उत्साह से मनाती है. महापुरुष एक दल के नहीं सबके हैं. पश्चिम बंगाल के चुनावी मौसम में नेताजी जयंती के माध्यम से भाजपा और सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस जनता की भावनाओं को भुनाने की कोशिशों में जुटीं हैं. दोनों दलों की ओर से बड़े पैमाने पर कार्यक्रमों के आयोजन की तैयारी चल रही. केंद्र सरकार ने जहां प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में 125वीं जयंती वर्ष के कार्यक्रमों की रूपरेखा तय करने के लिए उच्चस्तरीय कमेटी बनाई है, वहीं टीएमसी की ममता बनर्जी सरकार ने भी पलटवार करते हुए नोबल विजेता अमर्त्य सेन के नेतृत्व में ऐसी ही एक कमेटी गठित की है. भाजपा 23 जनवरी को नेताजी की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाएगी. बंगाल में भाजपा गांव से लेकर शहरों तक सभाएं करेगी. उधर, सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने नेताजी की जयंती को 'देश नायक दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की है.
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