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नरम रवैया वाला बरादर तालिबान सरकार में पड़ गया है अलत-थलग.( Photo Credit : न्यूज नेशन)
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नरम रवैया वाला बरादर तालिबान सरकार में पड़ गया है अलत-थलग.( Photo Credit : न्यूज नेशन)
अफगानिस्तान (Afghanistan) की तालिबान सरकार पर अपनी गहरी पकड़ बनाने के फेर में पाकिस्तान (Pakistan) ने अपना ही नुकसान कर लिया है. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का आतंकी हमला इसका एक उदाहरण है. पहले ही तालिबान के अलग-अलग धड़ों में सरकार और पाकिस्तान को लेकर एक राय नहीं थी. इस मसले को सुलझाने के लिए पाकिस्तान ने अपनी खुफिया संस्था के चीफ फैज हमीद को काबुल भेजा था. फैज ने हक्कानी गुट का अंध समर्थन कर तालिबान (Taliban) की समावेशी सरकार के समीकरण बिगाड़ दिए. गौरतलब है कि फैज के काबुल दौरे के दौरान ही मुल्ला अब्दुल गनी बरादर (Mullah Baradar) का हक्कानी लड़ाके से संघर्ष हो गया था, जिसमें कथित तौर पर बरादर के घायल हो जाने की खबर थी. यही नहीं, हक्कानी की पक्षधरता के चक्कर में बरादर को कीमत चुकानी पड़ी. अब ऐसी खबरें आ रही हैं कि तालिबान में अंतरिम सरकार के गठन के बाद गंभीर मतभेद उभर आए हैं. इसमें बरादर के अलग-थलग पड़ने की चर्चाएं भी आम हैं.
बरादर है नरम रवैया वाला तालिबानी नेता
कुछ मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि बरादर को पाकिस्तान पोषित आतंकी समूह हक्कानी गुट से मतभेद की महंगी कीमत चुकानी पड़ी है. तालिबान की अंतरिम सरकार की घोषणा से पहले अमीर-उल-मुमनीन (मोमिन) करार दिए जा रहे बरादर को नरम रवैया वाला नेता माना जाता है. अमीर-उल-मुमनीन का अर्थ होता है विश्वासपात्रों का कमांडर. यह अलग बात है कि पाकिस्तान ने हस्तक्षेप कर तालिबान की अंतरिम सरकार के समीकरण बदल दिए. मौलवी हसन अखुंद को तालिबान की अंतरिम सरकार की कमान सौंप दी गई. अब स्थितियां बदल चुकी हैं.
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सरकार गठन की बैठक से ही खिंच गई तलवारें
जानकारी के मुताबिक इस महीने की शुरुआत में सरकार बनाने को लेकर हुई बैठक में बरादर गुट और हक्कानी गुट में तीखी नोंक-झोक हुई थी. अपने नरम रवैये के अनुरूप बरादर ने बैठक में समावेशी सरकार के लिए दबाव बनाया. इस बैठक में गैर-तालिबानी नेता और देश के अल्पसंख्यक समुदाय को भी सरकार में शामिल किए जाने की बात जोर देकर कही गई थी. बरादर गुट का मानना था कि समावेशी सरकार से तालिबान को दुनिया में मान्यता हासिल करने में मदद मिलेगी. हालांकि हुआ इसके विपरीत और बैठक में ही यह प्रस्ताव सुनते ही खलील उल रहमान हक्कानी ने बरादर से झगड़ा शुरू कर दिया. इस हिंसा में नौबत गोलीबारी तक आ गई, जिसमें बरादर घायल हो गया. फिर बरादर बैठक छोड़ कंधार चला गया, जो तालिबान का गढ़ माना जाता है.
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आईएसआई ने नहीं बनने दी बरादर की पसंद की सरकार
इस हंगामाखेज बैठक के बाद जब तालिबान ने अंतरिम सरकार के नामों की घोषणा की तो बरादर को डिप्टी पीएम का पद मिला. सामरिक विशेषज्ञों के मुताबिक पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने इस पूरे समीकरण में बड़ी भूमिका निभाई. सरकार में हक्कानी गुट को गृह मंत्रालय समेत चार पद मिले. मुल्ला अखुंद जैसे नेता को सरकार का मुखिया बनाया गया. सबसे ज्यादा हिस्सेदारी पश्तून समुदाय को मिली. समावेशी सरकार की बात बिल्कुल पीछे रह गई. इस आलोक में माना जा रहा है कि तालिबान में आंतरिक विवाद औऱ मतभेद अभी और बढ़ेंगे. बरादर के प्रमुख नहीं बनने से पश्चिमी देशों को भी दिक्कत है क्योंकि शांति वार्ता का मुख्य चेहरा बरादर ही था. जाहिर है तालिबान की अंतरिम सरकार में आतंकी हक्कानी गुट की मजबूती तालिबान के लिए मुश्किलें बढ़ा सकती है. इसे पहले से ही भांप कर बरादर ने समावेशी सरकार की बात कही थी, जिसे हक्कानी समूह ने नकार दिया.
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