तालिबान फिर मुकरा अपने ही किए वादे से, दुनिया पर मंडराया एक और खतरा
महिला और बच्चों के मानवाधिकार समेत शिक्षा के बाद तालिबान अब मादक पदार्थों के व्यापार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के अपने वादे से भी मुकर गया है.
highlights
- तालिबान के लिए अफीम प्रति वर्ष लगभग 6.6 अरब डॉलर का कारोबार
- नई सरकार के गठन के साथ अफीम के उत्पादन से किया था इंकार
- अब आर्थिक तंगी की वजह से तालिबान फिर लौटा अफीम की खेती पर
काबुल:
अफगानिस्तान (Afghanistan) में दोबारा काबिज होने के बाद तालिबान (Taliban) के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने एक के बाद एक कई वादे किए थे. यह अलग बात है कि महिला और बच्चों के मानवाधिकार समेत शिक्षा के बाद तालिबान अब मादक पदार्थों के व्यापार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के अपने वादे से भी मुकर गया है. गौरतलब है कि खुद को नई छवि के साथ पेश करते हुए देश को मादक पदार्थ मुक्त बनाने का भी दावा किया था. हालांकि विदेशी सहायता के रुकने, व्यापक बेरोजगारी, कीमतों में वृद्धि, भुखमरी और सूखे के कारण देश में उत्पन्न एक मानवीय संकट के कारण, अफगानिस्तान दुनिया में अफीम का सबसे बड़ा अवैध आपूर्तिकर्ता बना हुआ है. अफगानिस्तान में नशीले पदार्थो के व्यापार के फलते-फूलते उद्योग के संबंध में अनुमान है कि यह प्रति वर्ष लगभग 6.6 अरब डॉलर का कारोबार है. इसके बाद उत्पादन को अफ्रीका, यूरोप, कनाडा, रूस, मध्य पूर्व और एशिया के अन्य हिस्सों सहित कई देशों में तस्करी (Smuggling) करके निर्यात किया जाता है.
पैसों की तंगी से हेरोइन बेचने पर मजबूर
काबुल की सड़कों पर देखा जा सकता है कि स्थानीय लोग जीवनयापन के लिए अपने घरेलू सामान को बिक्री के लिए रखने पर मजबूर हैं, जबकि छोटे अस्थायी सेटअप हेरोइन को ऊंचे दामों पर बेचते हैं. अफगानिस्तान में ड्रग्स के अवैध व्यापार और बिक्री में वृद्धि का मुख्य कारण युद्ध के दौरान व्यापक विनाश है, जिसके कारण लाखों लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए हैं. विदेशी सहायता में कटौती ने आर्थिक और मानवीय संकट को बढ़ा दिया है, जिससे अधिकांश अफगानों के पास जीवित रहने के लिए नशीले पदार्थों के व्यापार को अपनाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है.
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तालिबान के लिए वरदान है अफीम का उत्पादन
यह निर्भरता अफगानिस्तान में और अधिक अस्थिरता लाने और तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार के लिए और भी अधिक चुनौतियां लाने के लिए नियत है, क्योंकि कई सशस्त्र समूहों, एथनिक वॉरलॉर्ड्स और यहां तक कि सार्वजनिक अधिकारियों ने अपने लाभ और शक्ति के लिए अवैध नशीले पदार्थों के व्यापार का उपयोग किया है. यह कहना गलत नहीं होगा कि अफीम का उत्पादन तालिबान के लिए एक संभावित वरदान रहा है. यूएन ऑफिस ऑफ ड्रग्स एंड क्राइम्स (यूएनओडीसी) के काबुल कार्यालय के प्रमुख सीजर गुड्स ने कहा, 'तालिबान ने अपनी आय के मुख्य स्रोतों में से एक के रूप में अफगान अफीम व्यापार पर भरोसा किया है. अधिक उत्पादन के साथ एक सस्ती और अधिक आकर्षक कीमत के साथ ड्रग्स उपलब्ध होती है और इसलिए इसकी व्यापक पहुंच है.' गुड्स ने कहा, 'ये सबसे अच्छे क्षण हैं, जिनमें ये अवैध समूह अपने व्यवसायों का विस्तार करने के लिए खुद को उस स्थिति में लाते हैं.'
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अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश बंद किए हैं आंखें
दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका और अन्य देशों ने भी अफगानिस्तान के अवैध ड्रग कारोबार से उत्पन्न खतरों को नजरअंदाज करने का विकल्प चुना है, क्योंकि उन्होंने शायद ही कभी इसका उल्लेख किया हो. यूएनओडीसी के अनुमान के अनुसार, वैश्विक अफीम और हेरोइन की आपूर्ति का 80 प्रतिशत से अधिक अफगानिस्तान से आ रहा है. अमेरिका ने पिछले 15 वर्षों में संदिग्ध प्रयोगशालाओं पर लक्षित हवाई हमलों के माध्यम से अफीम और हेरोइन व्यापार के माध्यम से मुनाफाखोरी से तालिबान पर पकड़ मजबूत करने के अपने प्रयास में 8 अरब डॉलर से अधिक खर्च किए हैं. हालांकि रणनीति बुरी तरह विफल रही, क्योंकि अफगानिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा अफीम आपूर्तिकर्ता बना हुआ है, जिसके रुकने की कोई संभावना नहीं है. वर्तमान में अफगान किसान अपने खेतों में अफीम उगा रहे हैं और बो रहे हैं, जबकि गेहूं की कीमत, जो बारिश पर निर्भर है, सूखे की वजह से सिकुड़ रही है.
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