बुंदेलखंड के पानी की कहानी, उजले इतिहास का स्याह वर्तमान
बुंदेलखंड में मार्च माह से ही बड़े हिस्से में पानी का संकट गहराने लगा है, कुओं से लेकर अन्य जलस्त्रोंतों पर पानी पाने की चाहत में भीड़ जमा होने लगी है, आने वाले दिनों में क्या हाल होगा इसका अंदाजा यहां के लोग अभी से लगाने लगे हैं.
highlights
- दुनिया में सोमवार यानी 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाएगा
- जल संकट से सबसे ज्यादा जूझने वाले बुंदेलखंड इलाके की चर्चा भी खूब होगी
- बुंदेलखंड में मार्च माह से ही बड़े हिस्से में पानी का संकट गहराने लगा है
भोपाल:
दुनिया में सोमवार यानी 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाएगा, पानी बचाने की कसमें खाई जाएंगी और पानी बचाने के लिए किए गए प्रयासों पर अपनी-अपनी पीठ थपथपाने की कोशिश भी होगी. वर्तमान दौर में जल संकट से सबसे ज्यादा जूझने वाले बुंदेलखंड इलाके की चर्चा भी खूब होगी. इस इलाके का पानी को लेकर इतिहास उजला रहा रहा है मगर वर्तमान स्याह है. संभवत: देश और दुनिया में कम ही ऐसे इलाके होंगे जहां के पूर्वज जल संरचनाओं के निर्माण को लेकर गंभीर रहे हों. बुंदेलखंड ऐसा ही इलाका है जहां चंदेल और बुंदेला राजाओं के काल में ऐसी जल संरचनाओं का निर्माण किया गया जिससे इस इलाके की पहचान जल समृद्धि इलाके के तौर पर रही है. यहां सिर्फ एक तालाब नहीं बनता था बल्कि उससे जोड़कर कई तालाबों का निर्माण भी किया जाता था, ताकि लगभग हर हिस्से में तो पानी पहुंचे ही साथ ही बाढ़ के हालात भी न बने.
इतना ही नहीं तालाबों का निर्माण ऐसे स्थानों पर किया जाता था, जहां बारिश का पानी आसानी से संग्रहित हो सके. उदाहरण के तौर पर पहाड़ों के किनारे या अन्य ऐसे स्थान जहां पानी आसानी से पहुंच जाता था. यहां का चरखारी एक नायाब उदाहरण है जहां एक साथ सात तालाब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि यह ऐसे तालाब हैं जो हर मौसम में भरे रहते हैं. इन तालाबों को कुछ इस तरह बनाया गया था कि पानी फिल्टर हो जाता था और शुद्ध पेयजल आसानी से सुलभ था. बुंदेलखंड के बड़े हिस्से में भी इसी तरह एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे तालाब को जोड़कर बनाया गया.
जल संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहे कृपाशंकर तिवारी का कहना है कि इस इलाके में जल संरक्षण, संग्रहण और प्रबंधन की बड़ी जरुरत है, सिर्फ जल येाजनाओं के बनाने से कुछ नहीं होने वाला, जब जल ही नहीं हेागा तो योजनाओं का क्या. इस क्षेत्र का दुर्भाग्य है कि नई जल संरचनाएं बनाने की तो खूब बात होती है मगर पहले जो जल संरचनाएं थी वे कहां गई, इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
बुंदेलखंड में मार्च माह से ही बड़े हिस्से में पानी का संकट गहराने लगा है, कुओं से लेकर अन्य जलस्त्रोंतों पर पानी पाने की चाहत में भीड़ जमा होने लगी है, आने वाले दिनों में क्या हाल होगा इसका अंदाजा यहां के लोग अभी से लगाने लगे हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता पवन घुवारा का कहना है कि हमेशा से ही बुंदेलखंड छला गया है, पानी की अनेक योजनाएं आई, बजट मंजूर हुए मगर लोगों को पानी नहीं मिला. कोरोना वैक्सीन के लिए जिस तरह से जागृति अभियान चलाया जा रहा है, ठीक उसी तरह इस क्षेत्र में पानी के संरक्षण के लिए अभियान चलाया जाना चाहिए. अब तक तो लोगों ने खूब लूटा है इस इलाके को.
जल संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता ने सोशल मीडिया पर लिखा है बुंदेलखन्ड मे पानी का अभाव शुरू. अब पानी के बाबा, चाचा, काका, नाती-पोते सब सक्रिय होंग,े सभायें होंगी, रैलियां निकलेंगी, प्रशिक्षण होंगे. पर काम का पता नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि यह मार्केटिंग का दौर है.
बुंदेलखंड मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सात-सात जिलों को मिलाकर बनता है, यहां कुल 14 जिले हैं, जहां कभी 10 हजार से ज्यादा जल संरचनाएं हुआ करती थी. इसके साथ ही बीते दशकों में अनेक अभियान चलाकर जल संरचनाओं के निर्माण और संरक्षण पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए. अब फिर विश्व बैंक सहित अनके संस्थाओं ने इस इलाके के लिए करोड़ों रुपये की योजनाएं बनाई हैं, मगर ये योजनाएं जमीन पर मूर्त रुप ले पाएंगी इसमें हर किसी को संदेह है.
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