logo-image

रानिल विक्रमसिंघे ने श्रीलंका के राष्ट्रपति पद की शपथ ली, जाने कौन हैं 'राजपक्षे विक्रमसिंघे'

गोटाबाया राजपक्षे और महिंद्रा राजपक्षे पर भड़की आमजनता का एक वर्ग उन्हें राजपक्षे का ही हिमायती मानता है. यही वजह है कि कुछ लोग रानिल विक्रमसिंघे को 'राजपक्षे विक्रमसिंघे' भी कहते हैं.

Updated on: 21 Jul 2022, 12:49 PM

highlights

  • आर्थिक-राजनीतिक संकट के बीच रानिल ने ली राष्ट्रपति पद की शपथ
  • आपातकाल लगा हिंसक विरोध प्रदर्शन करने वालों की दी सख्त चेतावनी
  • राजपक्षे परिवार के करीबी होने से जनता का एक धड़ा खिलाफ भी

नई दिल्ली:

श्रीलंका में ऐतिहासिक आर्थिक-राजनीतिक संकट के बीच रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) ने गुरुवार को नए राष्ट्रपति बतौर पद की शपथ ले ली. उनका राष्ट्रपति बनना कई मायनों में ऐतिहासिक है. एक तो यही अचंभित करने वाली बात है कि दो साल पहले हुए संसदीय चुनाव में विक्रमसिंघे की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी और आज वह राष्ट्रपति हैं. श्रीलंका (Sri Lanka) के कई बार प्रधानमंत्री रहे रानिल का चयन भी जनादेश से नहीं हुआ है, बल्कि उन्हें सांसदों ने सीक्रेट वोटिंग से अगले राष्ट्रपति के लिए चुना. 1978 के बाद राष्ट्रपति का चुनाव गुप्त मतदान से हुआ. उनका मुकाबला दुल्लास अल्हाप्पेरुमा और अनुरा कुमारा दिसानायके से था. हालांकि विक्रमसिंघे की जीत पहले से तय मानी जा रही थी, क्योंकि उन्हें राजपक्षे की पार्टी श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (SLPP) का समर्थन प्राप्त था, जो 225 सदस्यीय संसद में सबसे बड़ा गठबंधन है. 

समर्थन-विरोध दोनों है रानिल का
हालांकि रानिल विक्रमसिंघे के समक्ष चुनौतियों का पहाड़ खड़ा हुआ है. दूसरे गोटाबाया राजपक्षे और महिंद्रा राजपक्षे पर भड़की आमजनता का एक वर्ग उन्हें राजपक्षे का ही हिमायती मानता है. यही वजह है कि कुछ लोग रानिल विक्रमसिंघे को 'राजपक्षे विक्रमसिंघे' भी कहते हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करने वालों से रानिल बेहद सख्ती से निपटेंगे. इसके संकेत उन्होंने कार्यवाहक राष्ट्रपति बनते ही दे दिए थे. रानिल ने देश में आपातकाल लगा पुलिस और सुरक्षा बलों को असीमित अधिकार दे दिए हैं. इसके साथ ही उन्होंने बयान जारी कर अपने इरादे भी जाहिर कर दिए हैं. रानिल ने कहा अलोकतांत्रिक तरीका या रास्ता अपनाने वालों के खिलाफ वह कड़ाई से पेश आएंगे. उनका दो टूक कहना है कि यदि आप सरकार गिराने चाहेंगे. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के आवास पर हिंसा कर कब्जा करना चाहेंगे, तो इसे लोकतंत्र नहीं कहा जाएगा और सख्ती से काम लिया जाएगा. हालांकि श्रीलंका में एक वर्ग ऐसा भी है, जो रानिल को पसंद करता है. इस वर्ग को ऐसा लग रहा है कि रानिल विक्रमसिंघे उनके द्वीपीय देश को आर्थिक-राजनीतिक संकट से उबार लेंगे. 

यह भी पढ़ेंः China ने किया PHL-16 MLRS का सफल टेस्ट, भारतीय सैन्य अड्डे निशाने पर

पासपोर्ट ऑफिस में लगी लोगों की कतारें
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष समेत संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी श्रीलंका की स्थिति पर चिंता जाहिर की है. आईएमएफ रानिल के राष्ट्रपति बनते ही सहायता पैकेज पर फिर से बातचीत शुरू करने का संकेत दे चुका है. हालांकि इस सहायता पैकेज के बदले में आईएमएफ श्रीलंका पर कड़ी शर्तें थोपेगा, जिसको लेकर रानिल को पहले से गुस्साई जनता के लिए सख्त निर्णय करने होंगे. गौरतलब है कि फिलवक्त एक डॉलर 360 श्रीलंकाई रुपये पर आ गया है. लोग आसमान छूती महंगाई, जरूरी चीजों की कमी और ईंधन संकट से खाड़ी देशों में रोजगार के अवसर तलाश रहे हैं. आलम यह है आ गया है कि ईंधन और रसोई गैस का एक-एक सिलेंडर लेने के लिए लोगों को चार-पांच दिन इंतजार करना पड़ा रहा है. इन्हीं सब बातों को देख बीते कई हफ्तों से पासपोर्ट ऑफिसों में अच्छी-खासी भीड़ देखी जा रही है. हालांकि श्रीलंका को संकट से उबारने के लिए मोदी सरकार भी अपने स्तर पर प्रयास कर रही है. 

यह भी पढ़ेंः लश्कर आतंकी की गिरफ्तारी के बीच सुरक्षाबलों को मिली चौंकाने वाली जानकारियां

यह है पृष्ठभूमि
श्रीलंका के पहले कार्यकारी राष्ट्रपति जूनियस जयवर्धने के भतीजे रानिल ने वकालत भी पढ़ी है. कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही रानिल ने यूनाइटेड नेशनल पार्टी की यूथ लीग की सदस्यता ली. 1977 में रानिल ने सबसे कम उम्र के मंत्री के रूप में राष्ट्रपति जयवर्धने की सरकार में उप विदेश मंत्री का पद संभाला था.उस वक्त उनकी उम्र 28 साल की थी और वह 45 सालों से संसद में हैं.  अब तक कई बार विक्रमसिंघे श्रीलंका के पीएम बतौर जिम्मेदारी निभा चुके हैं.  पहली बार पीएम पद उन्हें 1993-94 में तत्कालीन राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदास की हत्या के बाद मिला था. इसके बाद रानिल 2001-2004 तक भी पीएम रहे. हालांकि, चंद्रिका कुमारतुंगा के जल्द चुनाव कराने के बाद, 2004 में उन्होंने सत्ता खो दी. 2018 में वह फिर पीएम बने, जिनकी सरकार को तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने 2018 पर बर्खास्त कर दिया था. हालांकि उच्चतम न्यायालय के एक फैसले ने राष्ट्रपति सिरिसेना को विक्रमसिंघे को बहाल करने के लिए मजबूर कर दिया, जिससे राजपक्षे का संक्षिप्त शासन समाप्त हो गया.